नमः श्रीविश्वनाथाय देववन्द्यपदाय ते ।
काशीशेशावतारे मे देवदेव ह्युपादिश ॥ १॥
मायाधीशं महात्मानं सर्वकारणकारणम् ।
वन्दे तं माधवं देवं यः काशीं चाधितिष्ठति ॥ २॥
वन्दे तं धर्मगोप्तारं सर्वगुह्यार्थवेदिनम् ।
गणदेवं ढुण्ढिराजं तं महान्तं स्वविघ्नहम् ॥ ३॥
भारं वोढुं स्वभक्तानां यो योगं प्राप्त उत्तमम् ।
तं सढुण्ढिं दण्डपाणिं वन्दे गङ्गातटस्थितम् ॥ ४॥
भैरवं दंष्ट्राकरालं भक्ताभयकरं भजे ।
दुष्टदण्डशूलशीर्षधरं वामाध्वचारिणम् ॥ ५॥
श्रीकाशीं पापशमनीं दमनीं दुष्टचेतसः ।
स्वनिःश्रेणिं चाविमुक्तपुरीं मर्त्यहितां भजे ॥ ६॥
नमामि चतुराराध्यां सदाऽणिम्नि स्थितिं गुहाम् ।
श्रीगङ्गे भैरवीं दूरीकुरु कल्याणि यातनाम् ॥ ७॥
भवानि रक्षान्नपूर्णे सद्वर्णितगुणेऽम्बिके ।
देवर्षिवन्द्याम्बुमणिकर्णिकां मोक्षदां भजे ॥ ८॥
इति काशीविश्वेश्वरादिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
हे देवदेव !
आपने काशी में शासन करने के हेतु मंगलमूर्ति शिव के रूप में अवतार लिया है।
आप विश्व के नाथ हैं, देवता आपके चरणों की वन्दना करते हैं,
आप मुझे उपदेश दें, आपको नमस्कार है ॥ १ ॥
जो मायाके अधीश्वर हैं,
महान् आत्मा हैं, सभी कारणों के कारण हैं
और जो काशी को सदा अपना अधिष्ठान बनाये हुए हैं,
ऐसे उन भगवान् माधव को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ २ ॥
जो बड़े-से-बड़े विघ्न को अनायास ही,
बिना किसी प्रकार का श्रम किये ही नष्ट कर देते हैं,
धर्म के रक्षक और सभी गुह्य (रहस्यपूर्ण) अर्थों के वेत्ता हैं,
ऐसे उन महान् दुण्ढिराज गणपति को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ३ ॥
जिन्होंने अपने भक्तों का भार वहन करने के लिये
उत्तम योग प्राप्त किया है,
ऐसे गंगातट पर स्थित उन दुण्ढिराज सहित भगवान् दण्डपाणि को
मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ४ ॥
बड़ी-बड़ी दाढ़ों वाले, भक्तों को अभय देनेवाले,
वाममार्ग का आचरण करनेवाले,
दुष्टों को दण्ड देने के लिये शूल तथा शीर्ष (कपाल) धारण करनेवाले
भगवान् भैरव को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ५ ॥
श्रीकाशी
पापों का शमन तथा दुष्टचित्त वालों का दमन करनेवाली और स्वर्ग की सीढ़ी है।
यह भगवान् शिव के द्वारा कभी न परित्याग की जानेवाली है,
(इसीलिए इसे 'अविमुक्तपुरी' कहा जाता है)
मृत्युलोक के प्राणियों के लिये यह हितकारिणी है।
इस पुरी का मैं सेवन करता हूँ ॥ ६ ॥
विद्वानों द्वारा आराध्य,
अणिमा ऐश्वर्य में स्थित गुहा को मैं नमस्कार करता हूँ।
हे कल्याणस्वरूपिणी गंगे!
आप मेरी भैरवी यातना को दूर कर दें ॥ ७ ॥
हे अन्नपूर्णे, हे अम्बिके,
हे सत्पुरुषों द्वारा वर्णित गुणोंवाली भवानी!
आप हमारी रक्षा कीजिए।
देवताओं और ऋषियों द्वारा वन्द्य तथा
समस्त संसार को मोक्ष प्रदान करनेवाली
जलमयी मणिकर्णिका का मैं सेवन करता हूँ ॥ ८ ॥
॥ इस प्रकार श्रीकाशीविश्वेश्वरादि स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥
आज 21 जून 2025 को आषाढ़ माह का दसवां दिन है। साथ ही आज पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष तिथि दशमी है। आज शनिवार का दिन है। सूर्य मिथुन राशि में रहेंगे।
आज 22 जून 2025 को आषाढ़ माह का चौथा दिन है। साथ ही आज पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष तिथि द्वादशी है। आज रविवार का दिन है। सूर्य देव मिथुन राशि में रहेंगे। वहीं चंद्रमा मेष से वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे।
आज 23 जून 2025 को आषाढ़ माह का 13वां दिन है। साथ ही आज पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष तिथि त्रयोदशी है। आज सोमवार का दिन है। सूर्य देव मिथुन राशि में रहेंगे। वहीं चंद्रमा वृषभ राशि में रहेंगे।
आज 24 जून 2025 को आषाढ़ माह का 14वां दिन है। साथ ही आज पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष तिथि चतुर्दशी है। आज मंगलवार का दिन है। सूर्य मिथुन में रहेंगे। चंद्र देव वृषभ से मिथुन राशि में रहेंगे।