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Shri Vishwanath Mangalastotram (श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रम्)

Shri Vishwanath Mangalastotram (श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रम्)

श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित 

गङ्गाधरं शशिकिशोरधरं त्रिलोकी-
रक्षाधरं निटिलचन्द्रधरं त्रिधारम् ।
भस्मावधूलनधरं गिरिराजकन्या-
 दिव्यावलोकनधरं वरदं प्रपद्ये ॥१॥
काशीश्वरं सकलभक्तजनार्तिहारं
विश्वेश्वरं प्रणतपालनभव्यभारम् ।
रामेश्वरं विजयदानविधानधीरं
गौरीश्वरं वरदहस्तधरं नमामः ॥२॥
गङ्गोत्तमाङ्ककलितं ललितं विशालं
तं मङ्गलं गरलनीलगलं ललामम् ।
श्रीमुण्डमाल्यवलयोज्ज्वलमञ्जुलीलं
लक्ष्मीशवरार्चितपदाम्बुजमाभजामः ॥३॥
दारिद्र्यदुःखदहनं कमनं सुराणां
दीनार्तिदावदहनं दमनं रिपूणाम् ।
दानं श्रियां प्रणमनं भुवनाधिपानां
मानं सतां वृषभवाहनमानमामः ॥४॥
श्रीकृष्णचन्द्रशरणं रमणं भवान्याः
शश्वत्प्रपन्नभरणं धरणं धरायाः ।
संसारभारहरणं करुणं वरेण्यं
सन्तापतापकरणं करवै शरण्यम् ॥५॥
चण्डीपिचण्डिलवितुण्डधृताभिषेकं
श्रीकार्तिकेयकलनृत्यकलावलोकम् ।
नन्दीश्वरास्यवरवाद्यमहोत्सवाढ्यं
सोल्लासहासगिरिजं गिरिशं तमीडे ॥६॥
श्रीमोहिनीनिविडरागभरोपगूढं
योगेश्वरेश्वरहदम्बुजवासरासम् ।
सम्मोहनं गिरिसुताञ्चितचन्द्रचूडं
श्रीविश्वनाथमधिनाथमुपैमि नित्यम् ॥७॥
आपद्विनश्यति समृध्यति सर्वसम्पद्विघ्नाः
प्रयान्ति विलयं शुभमभ्युदेति ।
योग्याङ्गनाप्तिरतुलोत्तमपुत्रलाभो
विश्वेश्वरस्तवमिमं पठतो जनस्य ॥८॥
वन्दी विमुक्तिमधिगच्छति तूर्णमेति
स्वास्थ्यं रुजार्दित उपैति गृहं प्रवासी ।
विद्यायशोविजय इष्टसमस्तलाभः
सम्पद्यतेऽस्य पठनात्स्तवनस्य सर्वम् ॥९॥
कन्या वरं सुलभते पठनादमुष्य
स्तोत्रस्य धान्यधनवृद्धिसुखं समिच्छन् ।
किं च प्रसीदति विभुः परमो दयालुः
श्रीविश्वनाथ इह सम्भजतोऽस्य साम्बः ॥१०॥
काशीपीठाधिनाथेन शङ्कराचार्यभिक्षुणा ।
महेश्वरेण ग्रथिता स्तोत्रमाला शिवार्पिता ॥११॥

॥ इति श्रीकाशीपीठाधीश्वरशङ्कराचार्यश्रीस्वामीमहेश्वरानन्दसरस्वतीविरचितं

 श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

भावार्थ - 

1.

 गंगा एवं बालचन्द्र को धारण करनेवाले, त्रिलोकी की रक्षा करनेवाले,

 मस्तक पर चन्द्रमा व गंगाजी की तीन धार को धारण करनेवाले,

 भस्म से विभूषित व गिरिराजकुमारी पार्वती को दिव्य दृष्टि से देखनेवाले,

 वरदाता भगवान शंकर की मैं शरण में हूँ।

2.

 काशी के ईश्वर, भक्तों की पीड़ा दूर करनेवाले,

 प्रणतजनों के रक्षक, रामेश्वर, विजयदायक,

 गौरीश्वर एवं वरमुद्रा से भक्तों को वर देनेवाले

 भगवान को हम प्रणाम करते हैं।

3.

 जिनके मस्तक पर गंगा विराजती हैं, जो विशाल, सौम्य और कल्याणमय हैं,

 गरल के कारण जिनका कण्ठ नील है, मुण्डमाला धारण किए हैं,

 भव्य कंगनों से शोभायमान हैं, लक्ष्मीपति विष्णु जिनके चरणकमलों की पूजा करते हैं —

 ऐसे शिव को मैं भजता हूँ।

4.

 जो दरिद्रता व दुःख को नष्ट करते हैं,

 देवों के प्रिय हैं, दीनों के कष्ट का अंत करते हैं,

 शत्रुनाशक हैं, सम्पत्ति के दाता,

 राजाओं के द्वारा वंदनीय तथा सत्पुरुषों में सम्मानित वृषभवाहन को मैं नमस्कार करता हूँ।

5.

 श्रीकृष्णचन्द्र के शरण, भवानी के प्रिय,

 शरणागत का पालन करनेवाले, पृथ्वी को धारण करनेवाले,

 संसारभार का हरण करनेवाले, करुणामय, वरेण्य,

 संताप का नाश करनेवाले शिव की मैं शरण ग्रहण करता हूँ।

6.

 चण्डी व गणेश आदि के द्वारा अभिषिक्त,

 कार्तिकेय के नृत्य को देखनेवाले,

 नन्दीश्वर के वाद्य से युक्त उत्सवप्रिय,

 गिरिजा को हँसानेवाले गिरीश की मैं स्तुति करता हूँ।

7.

 मोहिनी के प्रेम से आलिंगित, योगेश्वरों के हृदय में रास स्वरूप से निवास करनेवाले,

 मोह उत्पन्न करनेवाले, पार्वती द्वारा पूजित चन्द्रशेखर,

 श्रीविश्वनाथ को मैं नित्य प्रणाम करता हूँ।

8.

 इस स्तोत्र का पाठ करनेवाले की आपत्ति नष्ट होती है,

 सम्पत्ति बढ़ती है, विघ्न नष्ट होते हैं,

 शुभ फल प्राप्त होता है, योग्य पत्नी और उत्तम पुत्र की प्राप्ति होती है।

9.

 बन्धन में पड़ा व्यक्ति मुक्त होता है,

 रोगी स्वस्थ होता है, प्रवासी घर लौटता है,

 विद्या, यश, विजय और सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।

10.

 कन्या को उत्तम वर मिलता है, धन-धान्य बढ़ता है,

 सुख की प्राप्ति होती है और परमदयालु श्रीविश्वनाथ

 पार्वती सहित प्रसन्न होते हैं।

11.

 काशीपीठ के अधिपति शंकराचार्य श्रीस्वामी महेश्वरानन्द सरस्वतीजी ने

 इस स्तोत्रमाला की रचना कर भगवान विश्वनाथ को समर्पित किया।

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