हे वामदेव शिवशङ्कर दीनबन्धो
काशीपते पशुपते पशुपाशनाशिन् ।
हे विश्वनाथ भवबीज जनातिंहारिन्
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ १॥
हे भक्तवत्सल सदाशिव हे महेश
हे विश्वतात जगदाश्रय हे पुरारे ।
गौरीपते मम पते मम प्राणनाथ
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ २॥
हे दुःखभञ्जक विभो गिरिजेश शूलिन्
हे वेदशास्त्रविनिवेदी जनैकबन्धो ।
हे व्योमकेश भुवनेश जगद्विशिष्ट
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ३॥
हे धूर्जटे गिरिश हे गिरिजार्धदेह
हे सर्वभूतजनक प्रमथेश देव ।
हे सर्वदेवपरिपूजितपादपद्य
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ४॥
हे देवदेव वृषभध्वज नन्दिकेश
कालीपते गणपते गजचर्मवास ।
हे पार्वतीश परमेश्वर रक्ष शम्भो
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ५॥
हे वीरभद्र भववैद्य पिनाकपाणे
हे नीलकण्ठ मदनान्त शिवाकलत्र ।
वाराणसीपुरपते भवभीतिहारिन्
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ६॥
हे कालकाल मृड शर्व सदासहाय
हे भूतनाथ भवबाधक हे त्रिनेत्र ।
हे यज्ञशासक यमान्तक योगिवन्द्य
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ७॥
हे वेदवेद्य शशिशेखर हे दयालो
हे सर्वभूतप्रतिपालक शूलपाणे ।
हे चन्द्रसूर्यशिखिनेत्र चिदेकरूप
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ८॥
श्रीशङ्कराष्टकमिदं योगानन्देन निर्मितम् ।
सायं प्रातः पठेन्नित्यं सर्वपापविनाशकम् ॥ ९॥
॥ इति श्रीयोगानन्दतीर्थविरचितं श्रीशङ्कराष्टकं सम्पूर्णम् ॥
हे वामदेव, शिवशंकर, दीनों के बन्धु, काशी के अधिपति, हे पशुपति — जो प्राणियों के बंधन को काटते हैं, हे विश्वनाथ, संसार के मूल कारण और भक्तों की पीड़ा के विनाशक, हे जगदीश्वर! इस संसार के गहन दुःखों से मेरी रक्षा कीजिए।
हे भक्तवत्सल सदाशिव, हे महेश्वर, सम्पूर्ण जगत् के पिता, संसार के आधार, हे पुरारि (त्रिपुरासुर विनाशक), गौरीपति, मेरे आराध्य एवं प्राणनाथ — हे जगदीश्वर! मुझे संसार के गहन दुःखों से बचाइए।
हे दुःखों के नाशक, हे विभु, गिरिजापति, हे शूलधारी, वेद-शास्त्रों से जानने योग्य, चराचर जीवों के एकमात्र सखा, हे व्योमकेश, त्रिभुवन नायक — आप जगद्गुरु हैं, मुझे संसार के दुःखों से बचाइए।
हे धूर्जटे (जटाजूटधारी), गिरिश (कैलाशपति), अर्धनारीश्वर, समस्त जीवों के उत्पत्तिकर्ता, प्रमथगणों के स्वामी, जिनके चरणों की पूजा स्वयं देवता करते हैं — हे जगदीश्वर! मुझे संसार की पीड़ा से मुक्त कीजिए।
हे देवों के देव, वृषभध्वज, नंदीश्वर, काली के पति, गणों के अधिपति, गजचर्म धारण करने वाले, हे पार्वतीपति, हे परमेश्वर, हे शम्भु — मुझे इस संसार के कष्टों से मुक्त कीजिए।
हे वीरभद्रस्वरूप, संसाररूपी रोग के वैद्य, पिनाकधारी, नीलकण्ठ, कामनाशक, पार्वती के स्वामी, वाराणसीपति, भय को नष्ट करने वाले प्रभु — मुझे इस दुःखमय संसार से उबारिए।
हे कालों के काल, मृड (कल्याण स्वरूप), सदाशिव, भूतनाथ, जन्म-मरण से रक्षा करने वाले, त्रिनेत्रधारी, यज्ञनियंता, यमनाशक, योगियों के पूज्य — हे जगदीश्वर! मेरी रक्षा कीजिए।
हे वेदों से जानने योग्य, चन्द्रशेखर, दयालु, प्राणियों के रक्षक, त्रिशूलधारी, सूर्य-चन्द्र-अग्निरूप नेत्रोंवाले, चैतन्यस्वरूप प्रभु — आप मुझे संसार के कठिन दुखों से बचाइए।
जो भक्तजन इस श्रीयोगानन्दतीर्थ विरचित "श्रीशंकराष्टक" का प्रतिदिन प्रातः एवं सायंकाल श्रद्धापूर्वक पाठ करते हैं — उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
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