Logo

पुरूषों को सावन का व्रत रखना चाहिए या नहीं?

पुरूषों को सावन का व्रत रखना चाहिए या नहीं?

क्या पुरुष भी रख सकते हैं सावन सोमवार का व्रत? जानिए पौराणिक और सामाजिक नजरिया

सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति का सबसे पावन समय माना जाता है। इस दौरान हर सोमवार को रखे जाने वाले व्रत का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक होता है। पर वर्षों से एक सवाल लगातार चर्चा में रहा है। क्या पुरुष भी सावन सोमवार का व्रत रख सकते हैं? या यह व्रत केवल महिलाओं के लिए ही है?

व्रत की परंपरा और आम धारणा

लोक परंपरा में यह मान्यता रही है कि सावन सोमवार का व्रत अविवाहित कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए करती हैं। इस परंपरा के चलते यह धारणा बन गई कि यह व्रत केवल महिलाओं के लिए ही है। यहां तक कि कुछ घरों में पुरुषों को इस व्रत से दूर रहने की सलाह भी दी जाती है, यह कहकर कि इससे भगवान शिव रुष्ट हो सकते हैं।

लेकिन क्या सच में शिव नाराज होते हैं?

पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में ऐसा कोई स्पष्ट निषेध नहीं मिलता जिसमें पुरुषों को सावन सोमवार का व्रत रखने से मना किया गया हो। बल्कि शिव को तो भोलेनाथ कहा गया है। ऐसे देवता जो भाव के भूखे हैं, और भक्ति में किसी प्रकार का भेद नहीं करते।

जिस प्रकार रावण जैसे राक्षसों ने भी शिव की तपस्या करके उनका आशीर्वाद पाया, वैसे ही आज का कोई भी भक्त, चाहे स्त्री हो या पुरुष, शिव की आराधना कर सकता है। व्रत श्रद्धा का विषय है, न कि लिंग का।

क्या कहते हैं ज्योतिष और संत?

ज्योतिष के अनुसार सोमवार का दिन चंद्र ग्रह से जुड़ा होता है, जो मन और भावनाओं का कारक है। अक्सर पुरुषों में मन का अस्थिर होना, निर्णय न ले पाना या तनाव जैसी समस्याएं देखी जाती हैं। ऐसे में सोमवार का व्रत पुरुषों के लिए भी उतना ही लाभकारी हो सकता है जितना महिलाओं के लिए।

वहीं संत परंपरा भी कहती है कि सावन का समय तप और उपवास का है, और इसमें भेदभाव की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

व्रत से मिलने वाले लाभ पुरुषों को भी मिलते हैं

  • मानसिक शांति और मनोबल में वृद्धि
  • नौकरी और कारोबार में स्थिरता
  • वैवाहिक जीवन में सामंजस्य
  • चंद्र दोष या मानसिक तनाव से मुक्ति
  • पापों का क्षय और आत्मबल की प्राप्ति

........................................................................................................
कब और किसने शुरू किया कुंभ मेला?

कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और आस्था का महापर्व है। जिसका इतिहास 850 वर्ष पुराना है। इसकी शुरुआत आदि शंकराचार्य द्वारा मानी जाती है, लेकिन इसकी कथा समुद्र मंथन की पौराणिक घटना से जुड़ी है।

कुंभ की तारीखें कैसे तय होती हैं?

सनातन धर्म में कुंभ मेला सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में एक माना जाता है। ये प्रयागराज समेत हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है।

कुंभ की पौराणिक कथाएं क्या हैं?

कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है, जो पौराणिक और ज्योतिषीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसका आयोजन हर 12 साल में चार प्रमुख स्थलों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में होता है।

यज्ञ में स्वाहा क्यों बोला जाता है ?

नया घर, दुकान, बिजनेस या फिर शादी-ब्याह जैसे तमाम मौकों पर हवन और यज्ञ जरूर किया जाता है। हमारे देश में हवन की परंपरा बहुत पुरानी है। हवन के दौरान अगर आपने कभी ध्यान दिया हो तो देखा होगा कि मंत्र के बाद स्वाहा शब्द जरूर बोला जाता है।

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeBook PoojaBook PoojaTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang