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कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और आस्था का महापर्व है। जिसका इतिहास 850 वर्ष पुराना है। इसकी शुरुआत आदि शंकराचार्य द्वारा मानी जाती है, लेकिन इसकी कथा समुद्र मंथन की पौराणिक घटना से जुड़ी है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले अमृत के लिए देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ। इस दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिरीं। इसी कारण इन चार पवित्र स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है। हर 12 वर्षों में इन स्थानों पर यह महोत्सव आयोजित होता है, जबकि 144 वर्षों में महाकुंभ का विशेष आयोजन होता है।
कुंभ मेला भारत का सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन में से एक है। इसका उल्लेख कई पौराणिक और ऐतिहासिक ग्रंथों में भी मिलता है। ऐसी मान्यता है कि इसका इतिहास कम से कम 850 वर्ष से भी अधिक पुराना है।
ऐसा माना जाता है कि 8वीं शताब्दी में महान संत और दार्शनिक आदि शंकराचार्य ने कुंभ मेले को एक संगठित स्वरूप दिया। उन्होंने धर्म, संस्कृति और एकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस कुंभ मेले की शुरुआत की थी। हालांकि, कुछ मान्यताओं के अनुसार कुंभ मेला उससे भी प्राचीन है और इसकी जड़ें सीधे पौराणिक समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी हुई है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण देवता कमजोर हो गए थे। जिससे असुरों ने उन पर आक्रमण शुरू कर दिया। तब सभी देवी देवता विष्णु भगवान के पास गए। इसके बार भगवान विष्णु से उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया।
समुद्र मंथन से अमृत कलश प्राप्त हुआ, जिसे इंद्र के पुत्र जयंत ने असुरों से बचाने हेतु अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ान भरी। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार पवित्र स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक में गिर पड़ीं। इन्हीं स्थानों को सबसे पवित्र माना गया और कालांतर में यहीं कुंभ मेले का आयोजन शुरू हुआ।
कुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 साल में एक बार चार स्थानों पर होता है। इसका आयोजन एक निर्धारित क्रम में किया जाता है।
मान्यता है कि हर 144 वर्षों में एक विशेष महाकुंभ का आयोजन होता है। इसे स्वर्गीय कुंभ से जोड़कर देखा जाता है।
कुंभ मेला ना सिर्फ धार्मिक, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यह लोगों को एकजुट करता है और भारतीय संस्कृति के विविध रंगों को भी प्रदर्शित करता है। लाखों करोड़ों श्रद्धालु यहां आस्था की डुबकी लगाने और अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए पहुंचते हैं। बता दें कि कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का अद्वितीय प्रतीक भी है। ये अध्यात्म, इतिहास और आस्था को एक साथ जोड़ता है। इसका आयोजन भारतीय संस्कृति की गहराई और उसकी जड़ों को समझने का एक सरल माध्यम है। यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक स्तर पर भी प्रस्तुत करता है।
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