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कुंभ संक्रांति पौराणिक कथा

कुंभ संक्रांति पौराणिक कथा

Kumbh Sankranti Katha: आखिर क्यों मनाई जाती है कुंभ संक्रांति? जानिए पीछे की दिलचस्प कहानी


आत्मा के कारक सूर्य देव हर महीने अपना राशि परिवर्तन करते हैं। सूर्य देव के राशि परिवर्तन करने की तिथि पर संक्रांति मनाई जाती है। इस शुभ अवसर पर गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान किया जाता है। साथ ही सूर्य देव की पूजा की जाती है। संक्रांति तिथि पर स्नान-ध्यान एवं पूजा-पाठ के बाद सामर्थ्य अनुसार दान किया जाता है। सूर्य देव की पूजा से आरोग्य जीवन के साथ मानसिक एवं शारीरिक कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। तो आइए, इस आर्टिकल में कुंभ संक्रांति मनाने के पीछे की पूरी कहानी विस्तार से जानते हैं। 

कुंभ संक्रांति क्या है? 


सूर्य का राशि परिवर्तन संक्रांति कहलाता है। सूर्य के कुंभ राशि में प्रवेश को कुंभ संक्रांति कहते हैं। सूर्यदेव मकर से निकलकर अब कुंभ में प्रवेश करेंगे। दृक पंचांग के अनुसार इस वर्ष कुंभ संक्रांति का पर्व 12 फरवरी 2025, बुधवार को मनाया जाएगा। कुंभ संक्रांति में ही विश्‍वप्रसिद्ध कुंभ मेले का संगम पर आयोजन होता है। इस दिन स्नान, दान और यम एवं सूर्यपूजा का खासा महत्व होता है।

अमृत के बटवारे से जुड़ी है कुंभ संक्रांति 


प्राचीन काल में देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। समुद्रा से 14 रत्न उत्पन्न हुए और अंत में अमृत भरा घड़ा निकला। अमृत बंटवारे को लेकर देवता और असुरों में संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में चार जगहों पर अमृत की बूंदे गिरी थी। प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। जब सूर्य कुंभ राशि में गोचर करता है तब हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन होता है। यहां पर स्नान, दान और पूजा का खास महत्व होता है।

जानिए कुंभ संक्रांति की पुराणिक कथा 


प्राचीनकाल में हरिदास नाम का एक धार्मिक और दयालु स्वभाव का ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम गुणवती था। वह भी पति की तरह धर्मपरायण थी। गुणवती ने सभी देवी-देवताओं का व्रत रखा और पूजा की परंतु धर्मराज की कभी पूजा नहीं की और ना ही उनके नाम से कोई व्रत या दान-पुण्य ही किया। मृत्यु के बाद जब चित्रगुप्त उनके पापों का लेखा-जोखा पढ़ रहे थे। 

तब उन्होंने गुणवती को अनजाने में हुई अपनी इस गलती के बारे में बताया कि तुमने कभी धर्मराज के नाम से ना व्रत रखा और ना ही कोई दान-पुण्‍य ही किया। यह बात सुनकर गुणवती ने कहा, “हे देव! यह भूल मुझसे अनजाने में हुई है। ऐसे में इसे सुधारने का कोई उपाय बताएं।” 

तब धर्मराज ने कहा कि, जब सूर्य देवता उत्तरायण होते हैं अर्थात मकर संक्रांति के दिन से मेरी पूजा प्रारंभ करके पूरे वर्ष भर मेरी कथा सुननी और पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद यथाशक्ति दान करना चाहिए। 

इसके बाद सालभर के बाद उद्यापन करने से ऐसे व्यक्ति के जीवन में सभी तरह की सुख-समृद्धि अवश्य प्राप्त होती है। मेरे साथ चित्रगुप्त जी की भी पूजा अवश्य करनी चाहिए। उन्हें सफेद और काले तिलों के लड्डू का भोग अर्पित करें और सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को अन्नदान और दक्षिणा दें। इससे व्यक्ति के जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार का कोई कष्ट नहीं रहता है और उसके जीवन में समस्त सुख जीवन पर्यंत बने रहते हैं। 

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