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आदि गुरु शंकराचार्य की जीवन कथा

आदि गुरु शंकराचार्य की जीवन कथा

Adi Guru Shankaracharya Katha: आदि गुरु शंकराचार्य को माना जाता है शिव  का अवतार, 8 साल की उम्र में किया था वेदों का ज्ञान प्राप्त


हिंदू धर्म में अनेक संत और महापुरुष हुए हैं, लेकिन आदि गुरु शंकराचार्य का स्थान उनमें सर्वोच्च है। उन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है और हर साल वैशाख मास की शुक्ल पंचमी के दिन उनकी जयंती श्रद्धा और भक्ति से मनाई जाती है। इस साल आदि शंकराचार्य जयंती 2 मई को मनाई जाएगी। 


मात्र 8 साल की उम्र में किया था हिंदू ग्रंथों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त  

आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में केरल के कालड़ी गांव में एक नम्बूदरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवगुरु और माता का नाम आर्यम्बा था। जन्म से ही वे एक अनोखे मनुष्य थे। ऐसा कहा जाता है कि मात्र 8 साल की उम्र में उन्होंने वेद, उपनिषद, पुराण तथा अन्य हिंदू ग्रंथों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया था। फिर बहुत छोटी उम्र में ही उन्होंने संन्यास धारण कर भारत की यात्रा आरंभ की और 32 वर्ष की आयु में समाधि लिया था।


आदि गुरु शंकराचार्य की महत्वपूर्ण कृतिया

  • आदि शंकराचार्य का सबसे बड़ा दार्शनिक (फिलॉसफी) योगदान अद्वैत वेदांत की स्थापना है। यह दर्शन कहता है कि ‘ब्रह्म सत्यं, जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः’ अर्थात् ब्रह्म (ईश्वर) ही एकमात्र सत्य है, यह संसार माया है, और आत्मा तथा ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। 
  • ऐसा कहा जाता है कि उनकी व्याख्याओं और भाष्यों ने उपनिषद, भगवत गीता और ब्रह्मसूत्र जैसे ग्रंथों की बातों को सरल रूप में सामान्य मनुष्य तक पहुँचाया है। 
  • 8वीं शताब्दी में अज्ञान और अंधविश्वास ने हिंदू धर्म को जकड़ लिया था। ऐसे समय में शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत की मूल भावना को समझाया और समाज को आत्मज्ञान व भक्ति का मार्ग दिखाया था।


गुरु शंकराचार्य के मठों में दी जाती है धर्म की शिक्षा

आदि गुरु शंकराचार्य ने भारत के चार कोनों में चार प्रमुख मठों की स्थापना की थी, जिससे सनातन धर्म की एकता और अखंडता बनी रहें। 

  • गोवर्धन मठ, पुरी, उड़ीसा (पूर्व दिशा) 
  • श्रंगेरी पीठ, कर्नाटक (दक्षिण दिशा) 
  • शारदा मठ, द्वारका, गुजरात (पश्चिम दिशा)
  • ज्योतिर्मठ, बद्रीनाथ, उत्तराखंड (उत्तर दिशा)


इन मठों का उद्देश्य वेदों के ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना, साधुओं को मार्गदर्शन देना और धर्म की रक्षा करना है। 


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