शुक्रवार व्रत कथा

Shukravar Vrat Katha: शुक्रवार के दिन जरूर पढ़ें ये पौराणिक कथा,  हर मनोकामना होगी पूरी


Shukrawar Vrat Katha: हिंदू धर्म में शुक्रवार के दिन मां संतोषी और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि शुक्रवार को माता संतोषी और माता लक्ष्मी की पूजा करने से सभी दुखों का नाश होता है और माता रानी अपने भक्तों को सभी कष्टों से बचाती हैं। साथ ही उनकी जो भी मनोकामनाएं होती हैं उसे भी पूर्ण करती हैं। मान्यता है कि इस दिन पूजा-पाठ के साथ-साथ आपको शुक्रवार व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। इससे जीवन में सुख-समृद्धि आती है। ऐसे में आइए, इस आर्टिकल में आपको बताते हैं कि शुक्रवार व्रत की पूरी कथा के बारे में...

शुक्रवार व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक विशाल नगर था। व्यवसाय की दृष्टि से तो वह नगर बहुत अच्छा था। काफी दूर से वहां लोग काम की तलाश में आते थे। लेकिन इस नगर की एक बुराई भी थी और वह बुराई यह थी कि वहां निवास करने वाले ज्यादातर लोग बुरे कर्मों में लिप्त रहते थे। बुरे कर्मों जैसे- जुआ खेलना, शराब का सेवन, गंदी भाषा का प्रयोग इस शहर में अत्यधिक मात्रा में होता था। इसी नगर में मनोज और शीला नामक दंपती भी रहते थे। वे दोनों ही अपना ज्यादातर समय प्रभु भजन में व्यतीत करते थे। ऐसा कहा जाता है कि मनोज पूरी ईमानदारी से कार्य करता था और शीला कुशल तरीके से घर संभालती थी। उनको जो भी जानते ते वे सभी दंपती की व्यवहार की काफी सराहना करते थे। 

जब गृहस्थी को लग गई किसी की नजर

कुछ समय बाद समय ने करवट ली और इनकी गृहस्थी को किसी की नजर लग गई। हुआ यूं कि मनोज की संगत बिगड़ गई। मनोज को जल्द से जल्द धनी बनने का भूत सवार हो गया। ऐसा भूत सवार हुआ कि करोड़पति बनने की तीव्र आकांक्षा ने उसे जुए का आदी बना दिया। उसे ऐसी लत लगी कि इसके कारण उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती चली गई। शीला को ये सब देखकर बहुत दुःख हुआ, लेकिन उसने अपने आप को संभालते हुए ईश्वर की पूजा-अर्चना जारी रखी। 

शीला को मिली असीम शांति

वहीं, एक दिन की बात है, उसके घर में किसी ने दरवाजा खटखटाया, उसने दरवाजा खोला तो सामने मांजी खड़ी थी। उसके मुखमंडल पर अलौकिक तेज था। उसको देखते ही शीला के मन को एक असीम शांति मिली। शीला उस मां जी को आदर-सत्कार के साथ घर के अंदर ले आई। घर की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब होने के कारण बैठाने के लिए कुछ नहीं था। लेकिन शीला ने एक फटी हुई चादर बिछाई और उसी पर मांजी को बैठा दिया। इसके बाद माता जी ने शीला से कहा कि बेटी क्या तुमने मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर में भजन-कीर्तन के समय मैं भी वहां आती हूं। शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी। फिर मांजी बोली कि असल में तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं इसलिए मैं तुमसे मिलने आ गई।

माता जी को अपने दुखों की कहानी बताई

इसके बाद मांजी के इन प्रेम भरे शब्दों को सुनकर शीला भावुक हो गईं। उसकी आंखों से आंसू की धारा निकल पड़ी और उनके कंधे पर सिर रखकर रोने लगी। मांजी ने उसे स्नेहपूर्वक समझाते हुए कहा, 'बेटी! सुख और दुख तो जीवन में आता जाता रहता है। तुम धैर्य रखो बेटी! मुझे बताओ क्या परेशानी है तुम्हें? माता जी के ऐसा कहने पर उसे काफी मानसिक बल मिला और उसने मांजी को पूरी बात बता दी। शीला की पूरी बात सुनकर मां जी ने उससे कहा, 'बेटी! 'कर्म की गति बड़ी ही अनोखी होती है।' प्रत्येक इंसान को अपने कर्म का फल भुगतना ही पड़ता है। ये अटल सत्य है। तू अब चिंता मत कर। तुम्हारे सुख के दिन जल्दी ही वापस आएंगे। 

मां लक्ष्मी की व्रत करने की दी सलाह

मां जी ने कहा कि मां लक्ष्मी स्नेह का सागर हैं। वे अपने भक्तों को संतान की भांति प्रेम प्रदान करती हैं। तुम धैर्यपूर्वक मां लक्ष्मी जी का व्रत करो। इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा। मां लक्ष्मी जी का व्रत करने की बात से शीला का चेहरा खिल उठा। उसने पूछा, ‘माँ! लक्ष्मी जी का व्रत कैसे किया जाता है, कृपया मुझे इसके बारे में विस्तार से बताइए। मैं यह व्रत अवश्य करूँगी।’ मांजी ने कहा, 'बेटी! ये व्रत बहुत ही सरल। इसे वैभव लक्ष्मी व्रत या वरलक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है। उन्होंने शीला को व्रत विधि के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि इस व्रत को करने से तुम्हारे समस्त मनोरथ पूर्ण होंगे। शीला यह सुनकर आनंदित हो गई। शीला ने उसी समय आंखे बंद की और मां लक्ष्मी का ध्यान किया पर जब आंखें खोली तो सामने कोई न था। मां वहां से विस्मित हो गईं थी? शीला को तत्काल यह समझते देर न लगी कि मां और कोई नहीं अपितु साक्षात्‌ लक्ष्मी मां ही थीं।

21 शुक्रवार का व्रत करने के बाद हुआ चमत्कार

वहीं, माता जी के जाने के बाद शीला ने 21 शुक्रवार तक पूरी भक्ति भाव से वैभव लक्ष्मी का व्रत किया। 21वें शुक्रवार को माता जी द्वारा बताई गई विधि के अनुसार शीला ने व्रत का उद्यापन किया और मां से प्रार्थना करते हुए कहा, हे वैभव लक्ष्मी मां! 'मेरी विनती स्वीकार करो। मेरे सारे कष्ट हर लो। हम सबका कल्याण करो।' वहीं, व्रत के प्रभाव से धीरे -धीरे शीला का पति सुधरने लगा। उसने सारी बुरी आदतों को त्याग दिया। अब वो पहले की तरह ईमानदारी से अपने काम पर लग गया। इस तरह मां लक्ष्मी की कृपा से शीला और मनोज का घर फिर से सम्पन्नता और समृद्धि से भर गया।

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