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दिवाली पूजा की कथा

दिवाली पूजा की कथा

Diwali Pujan Katha: दिवाली पूजन के दौरान अवश्य पढ़ें यह कथा, मिलेगा माता लक्ष्मी का आशीर्वाद

सनातन धर्म में दीपावली का पर्व सबसे शुभ और मंगलमय माना गया है। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी, भगवान गणेश, कुबेर और सरस्वती की पूजा का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक अमावस्या की रात्रि को धन की देवी महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जो भी व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति से उनका पूजन करता है, उसके घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इसीलिए दीपावली की रात को दीप जलाना, घर को सजाना और लक्ष्मी पूजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

महालक्ष्मी की पौराणिक कथा

पुराणों में वर्णन मिलता है कि प्राचीन समय में एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसकी एक बेटी अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति की थी। वह प्रतिदिन पीपल देवता की पूजा किया करती थी। उसकी निष्ठा और भक्ति से प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उसे दर्शन दिए और कहा – "पुत्री, मैं तुमसे प्रसन्न हूँ, क्या तुम मेरी सहेली बनोगी?"

लड़की ने विनम्रता से उत्तर दिया – "मां, मैं पहले अपने माता-पिता से आज्ञा लेकर ही कुछ कह सकती हूँ।" माता-पिता की अनुमति मिलने पर वह देवी लक्ष्मी की सहेली बन गई। देवी ने उससे बहुत स्नेह किया और एक दिन उसे अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया।

जब वह लक्ष्मीजी के निवास पर गई, तो देवी ने सोने की चौकी पर बैठाकर, सोने-चांदी के बर्तनों में भोजन परोसा। चारों ओर अलौकिक वैभव देखकर वह लड़की अभिभूत हो गई। भोजन के बाद लक्ष्मीजी ने कहा – "अब कल मैं तुम्हारे घर भोजन करने आऊंगी।"

यह सुनकर लड़की चिंतित हो गई। उसने अपने माता-पिता से कहा – "मां लक्ष्मी जी का वैभव असाधारण है, मैं उनके योग्य सत्कार कैसे कर पाऊंगी?" तब उसके पिता बोले – "बेटी, श्रद्धा और सच्चे मन से जो भी अर्पित करेगी, वही उन्हें प्रसन्न करेगा।"

अगले दिन एक चमत्कार हुआ। अचानक एक चील उड़ते हुए आई और किसी रानी का नौलखा हार उस लड़की के आंगन में गिरा गई। उसने उसे थाल में रखकर वस्त्र से ढक दिया। उसी दिन लक्ष्मीजी अपने गणेशजी के साथ उसके घर भोजन के लिए आईं।

लड़की ने उन्हें ससम्मान सोने की चौकी पर बैठाया। पहले तो लक्ष्मीजी ने संकोच किया, परंतु लड़की के प्रेम और भक्ति से वे प्रसन्न हो गईं। उन्होंने श्रद्धा से परोसे भोजन को ग्रहण किया और वरदान दिया कि – "तेरे घर में सदा धन-धान्य, सुख-समृद्धि और मंगल का वास रहेगा।"

मां लक्ष्मी की कृपा से उस साहूकार का घर वैभव और आनंद से भर गया। माना जाता है कि जो व्यक्ति दीपावली की रात्रि को इस कथा का पाठ करता है, उसके घर में लक्ष्मी स्थायी रूप से निवास करती हैं।

दिवाली से जुड़ी अन्य पौराणिक मान्यताएं

दिवाली से अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हैं।

  • श्रीराम का अयोध्या आगमन: कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान श्रीराम 14 वर्ष का वनवास पूरा कर और रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया, तभी से दीपावली मनाने की परंपरा चली।
  • नरकासुर वध: इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया और 16,000 स्त्रियों को बंधन से मुक्त कराया। इस विजय के उपलक्ष्य में दीप जलाए गए, जो आज नरक चतुर्दशी और दीपावली के रूप में मनाई जाती है।
  • राजा बलि और भगवान विष्णु: इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था। स्वर्ग की पुनर्प्राप्ति की खुशी में देवताओं ने दीप जलाए।
  • समुद्र मंथन से लक्ष्मी प्राकट्य: समुद्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी क्षीरसागर से प्रकट हुई थीं। इसलिए दीपावली को लक्ष्मी पूजन का सर्वोत्तम दिन कहा गया है।

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