बुहा खोल के माये,
जरा तक ते ले,
तेरे मंदिरा दे वेडे दाती,
कौन आया है,
मान बच्चिया दा अज मायें,
रख ते ले,
तेथो मंगियां मुरादा पान,
कौन आया है ॥
खाके ठोकरा जहान दिया,
दुःख सह के,
जामा तन दा भवानी,
लीरो लीर हो गया,
हाल कोई नइयो पुछदा,
निमानिया दा,
तेरे नाम दा दीवाना माँ,
फकीर हो गया,
आके गुफा विचो बाहर हाल,
तक ते ले,
तेनू दुखड़े सुनान दाती,
कौन आया है,
बुहा खोल के मायें,
जरा तक ते ले,
तेरे मंदिरा दे वेडे दाती,
कौन आया है ॥
जिथे आसरा मिले माँ,
गम दे मारेया नू,
थक हार के सवाली,
उस दर जांवदा,
हो चोगा पँछिया नू,
जा के जिस थां मिलदा,
बुहे मुड़के उसे दे पंछी,
फेरा पाँवदा,
कोल आके भवानी गल,
सुन ते लै,
गेड़ा रोज दा मुकान,
अज कौन आया है,
बुहा खोल के मायें,
जरा तक ते ले,
तेरे मंदिरा दे वेडे दाती,
कौन आया है ॥
तू जे दातिए झोलिया,
कदे ना भरदी,
कोई बनके सवाली,
ना खैर मंगदा,
हो तेरी रहमता दा,
चर्चा जे होंवदा ना,
ना जमाना माँ मुरादा,
अट्ठे पहर मंगदा,
दर डिगिया दी बांह हुन,
फड़ वी लै,
दीपक दर ते जगान,
मायें कौन आया है,
बुहा खोल के मायें,
जरा तक ते ले,
तेरे मंदिरा दे वेडे दाती,
कौन आया है ॥
बुहा खोल के माये,
जरा तक ते ले,
तेरे मंदिरा दे वेडे दाती,
कौन आया है,
मान बच्चिया दा अज मायें,
रख ते ले,
तेथो मंगियां मुरादा पान,
कौन आया है ॥
........................................................................................................हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देव शयनी एकादशी को भगवान नारायण विष्णु योग मुद्रा यानी शयन मुद्रा में चार माह के लिए चले जाते हैं।
देव उठनी एकादशी पर सनातन धर्म में तुलसी विवाह का बहुत महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु का विवाह गन्ने के मंडप में होता है। इसकी भी अलग ही मान्यता है और इससे संबंधित कथाएं भी हैं।
कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी के दिन से सभी मंगल कार्य आरंभ करने की परंपरा है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद योग निद्रा से जागते हैं और उनके जागते ही चातुर्मास भी समाप्त होता है।
कार्तिक मास की एकादशी को देव उठनी एकादशी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं और इस दिन से ही शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य की भी शुरुआत होती है।