अब दया करो हे भोलेनाथ,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में,
मेरे सर पर रख दो अपना हाथ,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में,
अब दया करो हें भोलेनाथ,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में ॥
तेरे चरणों में हो मेरा माथ,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में,
अब दया करो हें भोलेनाथ,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में ॥
तेरे द्वार खड़े है रख ले लाज,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में,
अब दया करो हें भोलेनाथ,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में ॥
मैं तो झूम झूम के नाचूं आज,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में,
अब दया करो हें भोलेनाथ,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में ॥
जपू हर हर भोले दिन और रात,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में,
अब दया करो हें भोलेनाथ,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में ॥
मेरे मन में बसे हो भोलेनाथ,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में,
अब दया करो हें भोलेनाथ,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में ॥
अब दया करो हे भोलेनाथ,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में,
मेरे सर पर रख दो अपना हाथ,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में,
अब दया करो हें भोलेनाथ,
मस्त रहूं तेरी मस्ती में ॥
हिंदू पंचांग के अनुसार, कालाष्टमी हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा की जाती है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और जीवन में शांति, समृद्धि और सुरक्षा का संचार होता है।
हिंदू धर्म में एक वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना विशेष महत्व होता है। इन्हीं में से एक है वरुथिनी एकादशी, जो वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है।
हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म उत्सव ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ बड़े श्रद्धा और पवित्र भाव के साथ मनाया जाता है। वैसे तो श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी भाद्रपद मास में मनाई जाती है, लेकिन हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में भी यह पर्व मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है और हर महीने की त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाता है।