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पार्वती की तपस्या और भगवान शिव के धैर्य से पूरी हुई जन्मों की प्रेम कहानी
हरियाली तीज, जिसे श्रावण तीज के नाम से भी जाना जाता है, एक पारंपरिक हिंदू त्योहार है जो भारत और नेपाल में मनाया जाता है। हरियाली तीज का अर्थ है "हरियाली की तीज" या "हरित तीज"। यह नाम इसलिए पड़ा है क्योंकि यह त्योहार मानसून के मौसम में मनाया जाता है, जब प्रकृति में हरियाली का प्रवेश होता है। यह पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर जुलाई या अगस्त में पड़ती है। इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा का विधान है। हरियाली तीज का त्योहार प्रेम, सौंदर्य और हरियाली का प्रतीक है, और यह महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखकर अपने अखंड सुहाग की कामना करती हैं, वहीं जो कुंवारी कन्याएं होती हैं, वो इस दिन महादेव और माता पार्वती की पूजा करके अपने लिए अच्छे वर की कामना करती हैं। ये दिन सुहाग का दिन होता है, ऐसे में हर महिला इस दिन 16 श्रृंगार करके तैयार होती है। इस दिन व्रत रखने का भी खास महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान व्रत का पालन करने से मनोवांक्षित फल की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि इस त्यौहार को मनाने के पीछे की पौराणिक कथा क्या है? और कैसे ये त्योहार भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ा हुआ है? जानेंगे bhaktvatsal.com के इस आर्टिकल में...
हरियाली तीज की पौराणिक कथा
हरियाली तीज के पीछे एक पौराणिक कथा है, जो भगवान शिव और पार्वती की कहानी से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए 107 जन्मों तक तपस्या की थी। सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान शिव ने माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिया और उनसे विवाह करने का वचन दिया। लेकिन भगवान शिव ने माता पार्वती के सामने एक शर्त रखी कि वे हर साल तीज के दिन उनकी पूजा करेंगी और व्रत रखेंगी। माता पार्वती ने भगवान शिव की शर्त मान ली और हर साल तीज के दिन उनकी पूजा करने और व्रत रखने का वचन दिया। इस तरह हरियाली तीज का त्योहार मनाया जाने लगा। इसलिए इस त्योहार को पार्वती की तपस्या और भगवान शिव के प्रति उनके प्रेम की याद में मनाया जाता है।
हरियाली तीज का महत्व
हरियाली तीज का त्योहार महिलाओं को अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करने का अवसर प्रदान करता है। महिलाएं इस त्योहार को अपने पति के लिए प्रेम और समर्पण का प्रतीक मानती हैं। इस त्योहार के दौरान, महिलाएं अपने घरों को साफ करती हैं और उन्हें फूलों और पत्तियों से सजाती हैं। इस दिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और उन्हें भोग लगाती हैं। वे सूर्योदय से सूर्यास्त तक व्रत रखती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती से आशीर्वाद मांगती हैं।
हरियाली तीज की पूजा और अनुष्ठान
हरियाली तीज के दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और नए कपड़े पहनती हैं। वे भगवान शिव और पार्वती की पूजा करती हैं और उन्हें फूल, फल और मिठाई चढ़ाती हैं। इस त्योहार के दौरान महिलाएं मेहंदी लगाती हैं, जो सौंदर्य और प्रेम का प्रतीक है। हरियाली तीज की पूजा के बाद घर के गेट के बाहर हल्दी के हाथ की छाप लगाएं। ऐसा करना शुभ माना जाता है। पीला रंग गुरु का प्रतीक होता है। इससे कुंडली में गुरु ग्रह की स्थिति मजबूत होती है। ऐसे में भाग्य का साथ मिलता है। महिलाएं इस दिन जागरण (पूरी रात जागना) भी करती हैं, भगवान शिव और पार्वती के भजन गाती हैं, और अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर त्योहार का आनंद लेती हैं।
कब है हरियाली तीज?
वैदिक पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी हरियाली तीज 6 अगस्त, 2024 को रात्रि 07 बजकर 52 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 7 अगस्त, 2024 को रात्रि 10 बजे होगा। पंचांग को देखते हुए हरियाली तीज का व्रत 7 अगस्त 2024 को रखा जाएगा।
इन मंत्रों का करें जाप
शास्त्रों के अनुसार, हरियाली तीज पर भगवान शिव और पार्वती माता को प्रसन्न करने के लिए इन मंत्रों का जाप करना चाहिए:
"ऊं शिवायै नमः"
"ऊं पार्वत्यै नमः"
"ऊं गौरी शंकराय नमः"
"ऊं शिव-पार्वत्यै नमः"
"ऊं ह्रीं शिव-पार्वत्यै नमः"
हरियाली तीज व्रत कथा
भगवान शिव ने पार्वतीजी को उनके पूर्व जन्म के बारे में याद दिलाने के लिए यह सुनाई थी। हरियाली तीज व्रत कथा इस प्रकार है :
शिवजी कहते हैं- हे पार्वती! बहुत समय पहले तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था। इस दौरान तुमने अन्न- जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किए थे। किसी भी मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया। तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुखी थे।
ऐसी स्थिति में नारदजी तुम्हारे घर पधारे। जब तुम्हारे पिता ने नारदजी से उनके आगमन का कारण पूछा, तो नारदजी बोले- 'हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं। आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता। हूं।'
नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- हे नारदजी। यदि स्वयं भगवान विष्णु मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं, तो इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती। मैं इस विवाह के लिए तैयार हूं।'
फिर शिवजी पार्वतीजी से कहते हैं- 'तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी, विष्णुजी के पास गए और यह शुभ समाचार सुनाया। लेकिन जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हें बहुत दुख हुआ। तुम मुझे यानि कैलाशपति शिव को मन से अपना पति मान चुकी थी। तुमने अपने व्याकुल मन की बात अपनी सहेली को बताई। तुम्हारी सहेली से सुझाव दिया कि वह तुम्हें एक घनघोर वन में ले जाकर छुपा देगी और वहां रहकर तुम शिवजी को प्राप्त करने की साधना करना।'
इसके बाद तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुखी हुए। वह सोचने लगे कि यदि विष्णुजी बारात लेकर आ गए और तुम घर पर ना मिली तो क्या होगा। उन्होंने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन तुम ना मिली। तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी। भाद्रपद तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना की जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की।
इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा कि 'पिताजी, मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है। अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे।' पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गए। कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि-विधान से हमारा विवाह किया।'
भगवान शिव ने इसके बाद कहा कि- 'हे पार्वती! तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका। इस व्रत का महत्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मनवांछित फल देता हूं। भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा।
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