Sawan 2025: सनातन धर्म में भगवान शिव को अविनाशी, अनादि-अनंत और वैराग्य के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। भोलेनाथ उन देवों में माने जाते हैं जो बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। उनका रूप, रहन-सहन और पूजा-पद्धति भी अन्य देवी-देवताओं से अलग होती है। खासतौर पर सावन का महीना भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे पवित्र माना गया है। इस माह में श्रद्धालु विशेष रूप से शिव पूजा, रुद्राभिषेक और व्रत करते हैं। सावन की शिवरात्रि पर तो शिवभक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए विशेष उपाय करते हैं। शास्त्रों में भगवान शिव के रूप और आचरण को लेकर कई रहस्यमय बातें कही गई हैं। इन्हीं में से एक है - शिवजी का अपने शरीर पर भस्म धारण करना। वे अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं और शिवलिंग पर भी इसे अर्पित किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों भगवान शिव पूरे शरीर पर भस्म रमाते हैं? आइए जानते हैं कि आखिर क्यों शिव को भस्म प्रिय है और इसके पीछे की धार्मिक मान्यताएं क्या कहती हैं।
'भस्म' दो शब्दों से मिलकर बना है – 'भ' का अर्थ है भर्त्सनम यानी विनाश और 'स्म' का अर्थ है स्मरण यानी याद। इस तरह भस्म का अर्थ हुआ - पापों का विनाश और ईश्वर का स्मरण। यह न केवल एक पवित्र वस्तु है, बल्कि आत्मा को जगाने और अहंकार को मिटाने का प्रतीक भी है।
शिव पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति श्रद्धा से भस्म धारण करता है और भगवान शिव का स्मरण करता है, उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है। भस्म को शिव का ही एक रूप माना गया है। यह न केवल शरीर को शुद्ध करती है, बल्कि आत्मा को भी उन्नत बनाती है। शिव पुराण में वर्णित है कि ब्रह्माजी ने नारद मुनि को भस्म की महिमा बताते हुए कहा कि यह दिव्य भस्म सभी पापों का नाश करती है और जो व्यक्ति श्रद्धा से इसे अपने शरीर पर लगाता है, उसके जीवन से दुःख, शोक और भय समाप्त हो जाते हैं।
भगवान शिव वैरागी देवता हैं और उन्हें सादा जीवन और सच्चा भाव पसंद है। इसी कारण भस्म उनका मुख्य श्रृंगार माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिवलिंग पर भस्म अर्पित करने से भक्त के सारे कष्ट दूर होते हैं और भक्त का मन सांसारिक मोह माया से मुक्त होता है। हालांकि मान्यता है कि स्त्रियों को शिवलिंग पर भस्म नहीं चढ़ाना चाहिए, क्योंकि यह अशुभ माना जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने देखा कि कुछ लोग राम नाम लेते हुए एक शव को श्मशान ले जा रहे हैं। उन्होंने प्रभु राम के नाम का आदर करते हुए शव की चिता की भस्म को अपने शरीर पर लगा लिया। एक अन्य कथा के अनुसार, जब देवी सती ने यज्ञ में आत्मदाह किया और भगवान शिव उनकी मृत्यु से व्याकुल होकर तांडव करने लगे, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को भस्म कर दिया। उस समय भगवान शिव ने उसी भस्म को अपने शरीर पर लगा लिया। तभी से भस्म उनका अभिन्न अंग बन गई।
सत्य, सनातन, सुंदर, शिव! सबके स्वामी ।
अविकारी, अविनाशी, अज, अंतर्यामी ॥
बन्दौं रघुपति करुना निधान, जाते छूटै भव-भेद ग्यान॥
रघुबन्स-कुमुद-सुखप्रद निसेस, सेवत पद-पन्कज अज-महेस॥
ॐ जय जानकीनाथा, प्रभु! जय श्रीरघुनाथा।
दोउ कर जोरें बिनवौं, प्रभु! सुनियेबाता॥
ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन।
हरण दुख द्वन्द, गोविन्द आनन्दघन॥