Logo

शिव-पार्वती विवाह की कथा

शिव-पार्वती विवाह की कथा

Shiv Parvati Vivah Katha: कैसे हुआ था भगवान शिव और पार्वती का अनोखा विवाह? भूत-प्रेत और गण बने थे बाराती

Shiv Parvati Vivah Katha: हिंदू धर्म में भगवान शिव को सबसे शक्तिशाली और महान देवता माना गया है। वे जितने सरल, भोले और करुणामयी हैं, उतने ही रौद्र और क्रोधी भी हैं। शास्त्रों के अनुसार सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है और इस दिन भक्त व्रत रखकर उन्हें प्रसन्न करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव का विवाह साधारण नहीं था? यह विवाह पौराणिक कथाओं में एक अद्भुत और रहस्यमयी घटना के रूप में वर्णित है। आइए जानते हैं भगवान शिव और पार्वती के विवाह की रोचक कथा।

सती और शिव का पहला विवाह

भगवान शिव के विवाह के बारे में पुराणों में वर्णन मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने सबसे पहले दक्ष प्रजापति की पुत्री सती से विवाह किया था। हालांकि, सती के पिता दक्ष भगवान शिव को अपनी बेटी के योग्य नहीं मानते थे। लेकिन ब्रह्मा जी के कहने पर यह विवाह संपन्न हुआ। कुछ समय बाद, राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया। जिसकी वजह से अपमानित महसूस करके माता सती ने यज्ञ यज्ञ में कूदकर अपनी जान दे दी। सती की मृत्यु से आहत होकर भगवान शिव ने खुद को तपस्या में लीन कर लिया। उधर, माता सती ने हिमालय और मैना के घर में पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया। पार्वती बचपन से ही भगवान शिव को पति रूप में स्वीकार कर चुकी थीं और उन्होंने शिव को पाने के लिए कठोर तप किया।

तारकासुर का आतंक और देवताओं की चिंता

इसी समय एक राक्षस तारकासुर का आतंक पूरे ब्रह्मांड में फैला हुआ था। उसे वरदान मिला था कि केवल भगवान शिव का पुत्र ही उसका वध कर सकता है। लेकिन भगवान शिव तो तपस्या में लीन थे और विवाह की कोई संभावना नहीं दिख रही थी। ऐसे में देवताओं ने मिलकर शिव और पार्वती के विवाह की योजना बनाई। देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने के लिए भेजा। कामदेव ने अपनी शक्तियों से वातावरण में प्रेम का संचार किया, लेकिन शिव जी ने आंखें खोलते ही उसे भस्म कर दिया। हालांकि, बाद में पार्वती की तपस्या और देवताओं की प्रार्थना से भगवान शिव विवाह के लिए तैयार हुए।

शिव जी की बारात

जब विवाह तय हुआ, तो भगवान शिव की बारात भी निकली। लेकिन यह बारात किसी सामान्य राजा की बारात जैसी नहीं थी। इसमें भूत, पिशाच, गण, दानव, नाग, देवता, जानवर तक शामिल थे। शिव जी खुद एकदम अघोरी रूप में थे। ऐसी बारात को देखकर माता पार्वती की मां डर गईं और कहा कि वे ऐसे वर को अपनी पुत्री को नहीं सौंप सकती हैं। तब देवताओं ने शिव जी को परंपरागत दूल्हे के रूप में सजाया। उन्हें सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाए गए। तब जाकर पार्वती की मां ने विवाह को स्वीकृति दी। इसके बाद धूमधाम से भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ। 

........................................................................................................
होली आई रे होली आई रे(Holi Ae Re Holi Aae Re)

होली आई रे होली आई रे होली आई वृन्दावन खेले गोरी
भागन पे आयो है फागण महीना कभू प्रेम की होरी बईं न,

हे ज्योति रूप ज्वाला माँ (Hey Jyoti Roop Jwala Maa)

हे ज्योति रूप ज्वाला माँ,
तेरी ज्योति सबसे न्यारी है ।

होली खेल रहे बांकेबिहारी आज रंग बरस रहा(Holi Khel Rahe Banke Bihari Aaj Rang Baras Raha)

होली खेल रहे बांकेबिहारी आज रंग बरस रहा
और झूम रही दुनिया सारी,

हे त्रिपुरारी गंगाधरी(Hey Tripurari Gangadhari)

हे त्रिपुरारी गंगाधरी
सृष्टि के आधार,

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang