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16 सोमवार व्रत कथा

16 सोमवार व्रत कथा

Solah Somvar Vrat Katha: जानिए सोलह सोमवार व्रत की पूरी कथा, जिससे पूरी होती हैं सभी मनोकामनाएं

Solah Somvar Vrat Katha: हिंदू धर्म में सोलह सोमवार व्रत को अत्यंत शुभ और फलदायक माना गया है। यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं अपने दांपत्य जीवन की सुख-शांति और समृद्धि के लिए करती हैं, वहीं कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए पूरी श्रद्धा से करती हैं। मान्यता है कि यदि इस व्रत की शुरुआत सावन माह से की जाए, तो यह और भी शुभ फल देने वाला होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सबसे पहले मां पार्वती ने इस व्रत का संकल्प लिया था। उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए सोलह सोमवार का व्रत रखा और कठोर तपस्या की। उनकी भक्ति और निष्ठा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस व्रत से भगवान शंकर की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

ऐसा माना जाता है कि यह व्रत न केवल वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाता है, बल्कि शारीरिक रोगों और पापों से भी मुक्ति दिलाने में सहायक होता है। यदि आप भी इस व्रत का पालन कर रही हैं, तो हर सोमवार व्रत के साथ उसकी कथा का पाठ करना आवश्यक होता है। कहा जाता है कि व्रत कथा के बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है। तो आइए, जानें सोलह सोमवार व्रत की संपूर्ण कथा...

सोलह सोमवार व्रत कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती मृत्युलोक के भ्रमण पर निकले। वे चलते-चलते विदर्भ देश के एक नगर कुंदनपुर पहुंचे। वहां एक प्राचीन शिव मंदिर था, जिसके वातावरण में दिव्यता और शांति समाई हुई थी। यह स्थान उन्हें इतना प्रिय लगा कि वे कुछ समय वहां रुक गए। एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से चौसर खेलने की इच्छा जताई। खेल शुरू होने से पहले माता पार्वती ने वहीं पूजा करने आए मंदिर के एक पुजारी से पूछ लिया, 'बताओ, इस खेल में हम दोनों में से कौन जीतेगा?' पुजारी शिवभक्त था, उसने स्वाभाविक रूप से उत्तर दिया, 'भगवान शिव ही विजयी होंगे।'

यह देखकर माता पार्वती को पुजारी की बात पर क्रोध आ गया। उन्होंने उसे दंडस्वरूप कोढ़ का श्राप दे दिया, जबकि शिवजी ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की कि यह केवल भाग्य का खेल था और पुजारी ने कुछ भी गलत नहीं कहा था। फिर भी माता ने अपना व्रत नहीं तोड़ा और पुजारी को कोढ़ी बना दिया गया।

वर्षों बीते, वह पुजारी अपनी पीड़ा में तपता रहा। एक दिन एक अप्सरा मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आई। उसने पुजारी की दशा देखी और उससे कारण पूछा। पुजारी ने पूरी कथा सुनाई। उस पुजारी को अप्सरा ने कहा कि इस कोढ़ से छुटकारा पाने के लिए सोलह सोमवार व्रत करना चाहिए। उस पुजारी ने पूछा कि व्रत करने का क्या तरीका है।

अप्सरा ने कहा, हर सोमवार स्नान करके साफ कपड़े पहनकर आधा किलो गेहूं के आटे से पंजीरी बनाकर तीन भागों में बांट लें। उसके बाद प्रदोष काल में शिवजी की पूजा करें। एक भाग शिव जी को अर्पित करें, एक भाग स्वयं लें और शेष भाग आरती में आए लोगों को प्रसाद रूप में बांट दें। ऐसा लगातार सोलह सोमवार तक यह विधि अपनाना चाहिए। सत्रहवें सोमवार को चूरमा बनाकर भगवान को अर्पित कर लोगों में बांट देना। इससे आपका रोग और दोष समाप्त होंगे। पुजारी ने श्रद्धा और निष्ठा से इस व्रत को निभाया। सोलहवें सोमवार के बाद उसका कोढ़ पूरी तरह ठीक हो गया। उसका चेहरा चमक उठा और उसका मन फिर से भगवान की भक्ति में रम गया।

कुछ समय पश्चात माता पार्वती और शिवजी पुनः उसी मंदिर में आए। पुजारी को पूर्ण स्वस्थ देख माता को आश्चर्य हुआ। उन्होंने कारण पूछा, तब पुजारी ने सोलह सोमवार व्रत की महिमा बताई। यह सुनकर माता पार्वती प्रसन्न हुईं और उन्होंने इस व्रत को लोक कल्याण के लिए अत्यंत प्रभावशाली घोषित किया।

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गोवर्धन पूजा विधि

गोवर्धन पूजा का त्योहार दिवाली के बाद मनाया जाता है। यह पर्व उस ऐतिहासिक अवसर की याद दिलाता है जब भगवान कृष्ण ने अपने भक्तों को प्रकृति के प्रकोप से बचाने के लिए इंद्र के अहंकार को कुचल दिया था।

श्री नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम्

नरसिंह द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के सिंह अवतार की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था।

होली से पहले आने वाला होलाष्टक क्या है

एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार जब प्रह्लाद भगवान विष्णु की स्तुति गाने के लिए अपने पिता हिरण्यकश्यप के सामने अड़ गए, तो हिरण्यकश्यप ने भगवान हरि के भक्त प्रह्लाद को आठ दिनों तक यातनाएं दीं।

होलाष्टक से जुड़े पौराणिक कथा

होलाष्टक का सबसे महत्वपूर्ण कारण हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा से जुड़ा है। खुद को भगवान मानने वाला हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद की भक्ति से नाराज था।

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