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श्रावण मास का महत्व

श्रावण मास का महत्व

Sawan Maha 2025: शिव के महीने का नाम श्रावण कैसे पड़ा? जानिए इस पवित्र महीने के नाम के पीछे की कथा

Sawan 2025: सावन का पावन महीना जल्द ही शुरू होने वाला है। श्रावण मास में भगवान शिव के भक्त व्रत रखते हैं, मंदिरों में दर्शन करते हैं और हर सोमवार को विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। पंचांग के अनुसार, सावन साल का पांचवां मास होता है, जिसे श्रावण के नाम से जाना जाता है। इस महीने को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसका नाम श्रावण ही क्यों पड़ा? ऐसे में आइए जानते हैं श्रावण मास क्या है। साथ ही, जानिए इसका महत्व...

क्यों है इस महीने का नाम श्रावण

श्रावण मास के नाम के पीछे होने के एक कारण है कि इस महीने की पूर्णिमा के दिन चंद्रमा श्रवण नक्षत्र में स्थित होते हैं, और इसी वजह से इस मास को 'श्रावण' कहा गया। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, श्रवण नक्षत्र का स्वामी गुरु (बृहस्पति) ग्रह होता है और ‘श्रवण’ शब्द का अर्थ है – सुनना या श्रवण करना। ऐसा माना जाता है कि इस माह में भगवान की कथाओं, पुराणों और उपदेशों को सुनने से मन के दोष और नकारात्मक विचार दूर होते हैं। यही कारण है कि श्रावण मास में धार्मिक ग्रंथों का श्रवण करना और सत्संग में भाग लेना विशेष रूप से पुण्यदायी माना गया है।

सावन में शुरू होती है कांवड़ यात्रा

सावन का महीना आते ही देशभर में शिवभक्ति का वातावरण छा जाता है। इस पावन अवसर पर हजारों श्रद्धालु कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं। सिर पर गंगाजल लेकर, नंगे पांव लंबी दूरी तय कर, ये भक्त शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। सावन में व्रत रखकर, भजन-कीर्तन करते हुए, शिवभक्ति में लीन रहना एक आध्यात्मिक साधना मानी जाती है। यह यात्रा न केवल शारीरिक तपस्या, बल्कि आस्था, समर्पण और विश्वास का अद्भुत प्रतीक मानी जाती है, जो हर साल करोड़ों लोगों को शिव के प्रति भक्ति से जोड़ती है।

पौराणिक कथाओं में सावन की कथा

पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि श्रावण मास का भगवान शिव से गहरा संबंध है। मान्यता है कि इसी पवित्र माह में समुद्र मंथन हुआ था, जिसमें जब हलाहल विष निकला, तो उसकी तीव्रता से पूरी सृष्टि संकट में आ गई। तब भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में रोक लिया और इस ब्रह्मांड की रक्षा की।इस विष को पी लेने से उनका कंठ नीला पड़ गया, जिससे वे नीलकंठ कहलाए। विष का प्रभाव अत्यंत तीव्र था, जिससे उनका कंठ जलने लगा। तब सभी देवताओं और ऋषियों ने उन्हें शीतलता देने के लिए जल अर्पित किया। इसी घटना के स्मरण में श्रावण मास में शिवलिंग पर जल चढ़ाने और अभिषेक करने की परंपरा आरंभ हुई। ऐसा माना जाता है कि इस माह में शिवाभिषेक करने से सभी दुख, दोष और कष्ट दूर हो जाते हैं और जीवन में शांति व सुख का आगमन होता है।

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