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सावन में कौन से दिन किस की पूजा करें

सावन में कौन से दिन किस की पूजा करें

Sawan Puja 2025: श्रावण मास में सप्ताह के अनुसार व्रत और तपस्या, हर दिन एक अलग देवी-देवता को समर्पित

श्रावण मास हिन्दू पंचांग का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। जहाँ एक ओर चंद्र तिथि के अनुसार व्रत-त्योहार होते हैं, वहीं दूसरी ओर सप्ताह के प्रत्येक दिन का भी विशेष धार्मिक महत्व होता है। श्रावण में सप्ताह के दिन केवल कैलेंडर की तारीख नहीं रह जाते, बल्कि हर दिन एक विशेष देवी-देवता की पूजा के लिए निर्धारित होता है।

रविवार से शनिवार तक का पूजनीय क्रम

  • रविवार - श्रावण के हर रविवार को सूर्य देव की उपासना की जाती है। व्रत रखकर सूर्य को जल अर्पित करना, रोग निवारण और तेज वृद्धि के लिए शुभ माना जाता है।
  • सोमवार - सोमवार को भगवान शिव का व्रत विशेष महत्त्व रखता है। यही ‘सावन सोमवार व्रत’ कहलाता है, जो शिव भक्तों द्वारा पूरे श्रावण मास में श्रद्धा से रखा जाता है।
  • मंगलवार - मंगलवार का दिन मङ्गला गौरी को समर्पित होता है। विवाहित स्त्रियाँ अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए यह व्रत करती हैं।
  • बुधवार - बुधवार को बुध ग्रह तथा विष्णु के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। यह व्रत बुद्धि, वाणी और व्यापार में सफलता के लिए किया जाता है।
  • गुरूवार - गुरूवार को गुरु बृहस्पति और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पीला वस्त्र, चना दाल और केले अर्पित कर श्रद्धालु आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
  • शुक्रवार - शुक्रवार को जीवन्तिका देवी की पूजा होती है, जो संतान की रक्षा और गृहस्थ सुख देने वाली मानी जाती हैं।
  • शनिवार - शनिवार का दिन हनुमान जी और नृसिंह भगवान की पूजा के लिए शुभ होता है। इस दिन व्रत करने से भय और बाधाएँ दूर होती हैं।

श्रावण में तपस्या और संकल्प का विशेष महत्त्व

केवल व्रत ही नहीं, इस महीने में भक्तगण विभिन्न तपों का भी संकल्प लेते हैं। जैसे -

  • पत्तेदार सब्जियों का त्याग
  • ब्रह्मचर्य और संयम का पालन
  • जमीन पर सोना
  • "ॐ नमः शिवाय" और गायत्री मंत्र का नियमित जप

ऐसा माना जाता है कि श्रावण मास में किसी भी देवी-देवता की आराधना अंततः भगवान शिव तक पहुँचती है।

अगस्त्य अर्घ्य का विशेष प्रसंग

श्रावण मास में एक विशेष अनुष्ठान ‘अगस्त्य अर्घ्य’ भी किया जाता है। जब अगस्त्य तारा पुनः आकाश में प्रकट होता है, तब पहले दिन ऋषि अगस्त्य को जल अर्पित कर विशेष पूजा की जाती है। यह अनुष्ठान ऋषियों की परंपरा और वेद परंपरा के सम्मान का प्रतीक है।

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