श्रावण मास, जिसे सावन भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार सबसे पवित्र और पुण्यदायी महीनों में से एक माना गया है। यह पूरा महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और इसमें विशेष पूजा, व्रत और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। आमतौर पर सावन के सोमवार व्रत की अधिक चर्चा होती है, लेकिन धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं के अनुसार सावन के 11 विशेष दिन भी अत्यंत महत्वपूर्ण माने गए हैं। इन दिनों का पालन करने से व्यक्ति को सुख, शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सावन मास में आने वाला प्रत्येक त्रयोदशी तिथि का दिन प्रदोष व्रत के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है और इसे संध्या काल में किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
सावन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को सावन शिवरात्रि मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पावन विवाह का पर्व होता है। यह दिन विशेष रूप से भक्तों के लिए मनोकामना पूर्ति का अवसर होता है।
सावन के प्रत्येक मंगलवार को विवाहित स्त्रियां माता पार्वती की आराधना करती हैं। इस दिन माता को सोलह श्रृंगार अर्पित कर सुहाग, संतान और सौभाग्य की कामना की जाती है।
सावन मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहते हैं। यह दिन पर्यावरण संरक्षण और हरियाली को बढ़ावा देने के लिए भी मनाया जाता है। धार्मिक रूप से इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करके वृक्षारोपण करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।
सावन शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है। इस दिन नाग देवता की पूजा कर विष से बचाव और संतान की रक्षा की कामना की जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस दिन मिट्टी से नाग की आकृति बनाकर पूजन करने की परंपरा है।
सावन मास की पूर्णिमा को श्रावणी पूर्णिमा कहा जाता है। यह दिन रक्षाबंधन जैसे प्रमुख त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और परिवार में प्रेम और रक्षा का संकल्प लिया जाता है।
करूँ वंदन हे शिव नंदन,
तेरे चरणों की धूल है चन्दन,
करुणामयी किरपामयी,
मेरी दयामयी राधे ॥
सुनके भक्तो की पुकार,
होके नंदी पे सवार,
पूछे प्यारी शैलकुमारी
कथा कहिए भोले भण्डारी जी ।