श्रावण मास, जिसे सावन कहा जाता है, भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना का सबसे पावन महीना माना जाता है। इस महीने में मंगलवार के दिन मंगला गौरी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत विशेषकर सुहागन स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए किया जाता है। कुंवारी कन्याएं भी यह व्रत अच्छे वर की प्राप्ति के लिए रखती हैं। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को लगातार पांच वर्षों तक रखने की मान्यता है।
प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें। फिर शांत चित्त होकर देवी पार्वती का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। संकल्प में माता से अखंड सौभाग्य, पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना करें।
घर के पूजा स्थान को अच्छे से स्वच्छ करें। वहां भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर देवी को विराजित करें।
मंगला गौरी व्रत में सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व होता है। देवी को लाल रंग के वस्त्र पहनाएं और 16 प्रकार के श्रृंगार की सामग्री जैसे चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर, मेहंदी, काजल, इत्र, आदि अर्पित करें। इससे देवी अत्यंत प्रसन्न होती हैं।
घी का दीपक प्रज्वलित करें और देवी को पुष्प, फल, धूप, चंदन, नैवेद्य और मिठाई चढ़ाएं। व्रती स्त्री को पूर्ण श्रद्धा के साथ देवी की पूजा करनी चाहिए।
मंगला गौरी व्रत की कथा का श्रवण या पाठ अवश्य करें। यह कथा देवी पार्वती की शक्ति, समर्पण और सुहाग रक्षा की प्रतीक मानी जाती है।
पूजन उपरांत माता पार्वती की आरती करें। आरती के समय यह भाव रखें कि आप देवी से सौभाग्य, सुख-शांति और वैवाहिक जीवन की मिठास के लिए प्रार्थना कर रही हैं।
हे जग त्राता विश्व विधाता,
हे सुख शांति निकेतन हे।
हे माँ मुझको ऐसा घर दे, जिसमे तुम्हारा मंदिर हो,
ज्योत जगे दिन रैन तुम्हारी, तुम मंदिर के अन्दर हो।
गौरा जी को भोले का,
योगी रूप सुहाया है,
गोविंद चले आओ,
गोपाल चले आओ,