Solah Somvar Vrat: सोलह सोमवार का व्रत दांपत्य जीवन में सुख-शांति और मनचाहा जीवनसाथी पाने की कामना के लिए किया जाता है। इस व्रत से भगवान शिव और माता पार्वती दोनों की कृपा प्राप्त होती है। पौराणिक मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इसी व्रत का पालन किया था। ऐसे में यह व्रत खासतौर पर अविवाहित कन्याओं के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है। हालांकि कई बार लोगों को यह भ्रम होता है कि सोलह सोमवार व्रत की शुरुआत कब करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार श्रावण मास से इस व्रत का आरंभ करना बेहद शुभ और फलदायक होता है। ऐसे में आइए जानते हैं सोलह सोमवार व्रत से जुड़ी जरूरी जानकारियां…
सोलह सोमवार का व्रत कार्तिक और मार्गशीर्ष मास से भी आरंभ किया जा सकता है, लेकिन श्रावण मास को इस व्रत की शुरुआत के लिए सबसे शुभ और फलदायक माना गया है। मान्यता है कि श्रावण मास में सोमवार को भगवान शिव की आराधना विशेष फल देती है। इस बार सावन का पहला सोमवार 14 जुलाई 2025 को पड़ रहा है। ऐसे में जो साधक सोलह सोमवार का व्रत रखना चाहते हैं, वे इसी शुभ तिथि से इसकी शुरुआत कर सकते हैं। यह व्रत भक्तों को सुखमय वैवाहिक जीवन और मनचाहा जीवनसाथी की प्राप्ति का आशीर्वाद देता है।
सोलह सोमवार व्रत भगवान शिव की कृपा पाने के लिए रखा जाता है। यह व्रत वैवाहिक जीवन में सुख-शांति लाने और विवाह से जुड़ी रुकावटों को दूर करने में अत्यंत प्रभावी माना गया है। विशेष रूप से अविवाहित कन्याएं इस व्रत को अच्छे वर की प्राप्ति के लिए करती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए सोलह सोमवार व्रत का पालन किया था। यही कारण है कि श्रावण मास में इस व्रत की शुरुआत को अत्यधिक शुभ और फलदायी माना जाता है। जो भी श्रद्धा से इस व्रत का पालन करता है, उसकी सभी इच्छाएं भोलेनाथ पूरी करते हैं।
श्रावण मास के पहले सोमवार को भगवान शिव की पूजा के साथ 16 सोमवार व्रत का संकल्प अवश्य लें। संकल्प लेने से व्रत विधिपूर्वक और पूर्ण फल देने वाला माना जाता है। संकल्प के बाद लगातार 16 सोमवार तक व्रत रखें और 17वें सोमवार को व्रत का विधिवत उद्यापन करें।
प्रातः स्नान आदि कर शुद्ध होकर पूजा स्थल पर बैठ जाएं। अब हाथ में पान का पत्ता, सुपारी, अक्षत, जल और एक सिक्का लें। शिवलिंग के समक्ष बैठकर इस मंत्र का जाप करें। मंत्र इस प्रकार है - 'ॐ शिवशंकरमीशानं द्वादशार्द्धं त्रिलोचनम्। उमासहितं देवं शिवं आवाहयाम्यहम्।।' इसके बाद सभी सामग्री शिवजी को अर्पित कर दें और व्रत का संकल्प करें कि श्रद्धा से 16 सोमवार का पालन करेंगे।
श्रावण मास के पहले सोमवार से सोलह सोमवार व्रत की शुरुआत होती है। इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नहाने के जल में काले तिल डालकर स्नान करें। फिर स्वच्छ वस्त्र पहनकर व्रत का संकल्प लें और पूरे दिन व्रत का पालन करें।इस व्रत की पूजा प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त से पहले करना शुभ माना जाता है। अगर आप घर पर पूजा कर रहे हैं तो शिवलिंग की स्थापना करें और पूजा आरंभ करें। सबसे पहले शिवलिंग को गंगाजल व स्वच्छ जल से स्नान कराएं। फिर 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जप करते हुए पंचामृत से अभिषेक करें। अब पुनः शुद्ध जल से स्नान कराकर शिवलिंग को सफेद चंदन लगाएं। शिवजी को बेलपत्र, सफेद फूल, भस्म, भांग, धतूरा, धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
चंदन अर्पण के बाद शिवलिंग पर विधिपूर्वक बेलपत्र, धतूरा, आक का पुष्प, गन्ना, गन्ने का रस, अष्टगंध, सफेद वस्त्र, इत्र और विभिन्न पुष्प चढ़ाएं। इसके पश्चात मां पार्वती की पूजा करें और उन्हें सोलह श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें। भगवान शिव को भोग में चूरमा, खीर, बेर, मौसमी फल, नैवेद्य आदि अर्पित करें। इसके बाद घी का दीपक जलाएं, धूप अर्पित करें और शिव-पार्वती का ध्यान करते हुए पूजा संपन्न करें। अब सोलह सोमवार की व्रत कथा का पाठ करें। साथ ही महामृत्युंजय मंत्र या ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप करें और शिव चालीसा पढ़ें। अंत में भगवान शिव की आरती करके पूजा पूर्ण करें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सोलह सोमवार व्रत का उद्यापन व्रत की पूर्णता के बाद 17वें सोमवार को किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से 16 जोड़े स्त्री-पुरुषों को आदरपूर्वक भोजन कराना चाहिए। उद्यापन के दिन गेहूं के आटे से बना हुआ चूरमा भगवान शिव को भोग के रूप में अर्पित करें। इसे प्रसाद रूप में सभी को वितरित करें। साथ ही श्रद्धा से पूजा कर भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद लें।
नर से नारायण बन जायें, प्रभु ऐसा ज्ञान हमें देना॥
दुखियों के दुःख हम दूर करें, श्रम से कष्टों से नहीं डरें।
प्रेम प्रभु का बरस रहा है
पीले अमृत प्यासे
नारायणी शरणम
दोहा – माँ से भक्ति है,
ओ सांवरे हमको तेरा सहारा है,
तेरी रहमतो से चलता,