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श्री भैरव चालीसा ( Shri Bhairav ​​Chalisa)

भैरव चालीसा की रचना और महत्त्व


भैरव बाबा शिवजी के अवतार हैं। जिनके नाम का अर्थ है जो देखने में भयंकर और भय की रक्षा करते हों। ऐसा माना जाता है कि प्रतिदिन भगवान भैरव की पूजा करने से व्यक्ति को किसी भी बाधा और नकारात्मकता से सुरक्षा मिलती है। भगवान भैरव की चालीसा का जाप करना उनका आशीर्वाद पाने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है। भैरव चालीसा बाबा भैरव को समर्पित अवधी भाषा में लिखित 40 छंदों का भक्ति भजन है, जिसमें भैरव बाब के महत्व, गुणों, शक्तियों, कर्मों इत्यादि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी है। भगवान भैरव भगवान शिव का एक रूप हैं जो भय का नाश करते हैं। माना जाता है कि भगवान भैरव अपने भक्तों को लालच, वासना और क्रोध से मुक्त करते हैं। पुराणों के अनुसार, भगवान भैरव को भगवान शिव ने असुरों और देवताओं के बीच राक्षसों का नाश करने के लिए बनाया था। अगर हम चालीसा को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लें तो भगवान भैरव हमें लालच, वासना और क्रोध जैसे शत्रुओं से मुक्ति दिलाते हैं। अगर आप हर रोज चालीसा पढ़ते हैं तो आपके जीवन में होने वाली बुराइयां कम हो जाती हैं और आपकी समृद्धि बढ़ती है। काल भैरव की कृपा मात्र से ही इंसान सारी तकलीफों से दूर हो जाता है और वो तेजस्वी बनता है। इसका पाठ अकाल मृत्यु का भय दूर करने के साथ आपके समस्त कष्टों को भी दूर करता है। इसके अलावा भी भैरव चालीसा के पाठ से कई लाभ होते हैं, जैसे... 



१) कष्टों से मुक्ति

२) भैरव चालीसा सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करती है

३) दरिद्रता दूर करने के लिए भैरव चालीसा

४) भैरव चालीसा अहंकार को नियंत्रण में रखती है

५) भैरव चालीसा शत्रुओं से लड़ने में मदद करती है



।।दोहा।।


श्री गणपति गुरु गौरी पद, प्रेम सहित धरि माथ ।

चालीसा वंदन करो, श्री शिव भैरवनाथ ॥

श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल ।

श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल ॥

 

॥ चौपाई ॥


जय जय श्री काली के लाला । जयति जयति काशी-कुतवाला ॥

जयति बटुक-भैरव भय हारी । जयति काल-भैरव बलकारी ॥

जयति नाथ-भैरव विख्याता । जयति सर्व-भैरव सुखदाता ॥

भैरव रूप कियो शिव धारण । भव के भार उतारण कारण ॥


भैरव रव सुनि हवै भय दूरी । सब विधि होय कामना पूरी ॥

शेष महेश आदि गुण गायो । काशी-कोतवाल कहलायो ॥

जटा जूट शिर चंद्र विराजत । बाला मुकुट बिजायठ साजत ॥

कटि करधनी घुंघरू बाजत । दर्शन करत सकल भय भाजत ॥


जीवन दान दास को दीन्ह्यो । कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो ॥

वसि रसना बनि सारद-काली । दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली ॥

धन्य धन्य भैरव भय भंजन । जय मनरंजन खल दल भंजन ॥

कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा । कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोडा ॥


जो भैरव निर्भय गुण गावत । अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत ॥

रूप विशाल कठिन दुख मोचन । क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन ॥

अगणित भूत प्रेत संग डोलत । बम बम बम शिव बम बम बोलत ॥

रुद्रकाय काली के लाला । महा कालहू के हो काला ॥


बटुक नाथ हो काल गंभीरा । श्वेत रक्त अरु श्याम शरीरा ॥

करत नीनहूं रूप प्रकाशा । भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा ॥

रत्न जड़ित कंचन सिंहासन । व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन ॥

तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं । विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं ॥


जय प्रभु संहारक सुनन्द जय । जय उन्नत हर उमा नन्द जय ॥

भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय । वैजनाथ श्री जगतनाथ जय ॥

महा भीम भीषण शरीर जय । रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय ॥

अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय । स्वानारुढ़ सयचंद्र नाथ जय ॥


निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय । गहत अनाथन नाथ हाथ जय ॥

त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय । क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ॥

श्री वामन नकुलेश चण्ड जय । कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ॥

रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर । चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ॥


करि मद पान शम्भु गुणगावत । चौंसठ योगिन संग नचावत ॥

करत कृपा जन पर बहु ढंगा । काशी कोतवाल अड़बंगा ॥

देयं काल भैरव जब सोटा । नसै पाप मोटा से मोटा ॥

जनकर निर्मल होय शरीरा । मिटै सकल संकट भव पीरा ॥


श्री भैरव भूतों के राजा । बाधा हरत करत शुभ काजा ॥

ऐलादी के दुख निवारयो । सदा कृपाकरि काज सम्हारयो ॥

सुन्दर दास सहित अनुरागा । श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ॥

श्री भैरव जी की जय लेख्यो । सकल कामना पूरण देख्यो ॥


॥ दोहा ॥ 


जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार ।

कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार ॥

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