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दाहिना पैर का अंगूठा कालीघाट मंदिर में महिला पुजारी करती हैं मां की सेवा, संतान प्राप्ति के लिए जोड़े लगाते हैं डुबकी
कालीघाट शक्तिपीठ या दक्षिण काली कोलकाता में स्थित काली देवी का मंदिर है। इस शक्तिपीठ में स्थित प्रतिमा की प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी ने की थी। यहां माता सती के दाहिना पैर का अंगूठा का गिरा था। इस मंदिर में देवी काली के प्रचण्ड रूप की प्रतिमा स्थापित है। देवी काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखी हुई हैं। उनके गले में नरमुंड की माला है, हाथ में कुल्हाड़ी और कुछ नरमुंड हैं, कमर में भी कुछ नरमुंड बंधे हुए हैं। उनकी स्वर्ण से बनी जीभ बाहर निकली हुई है और जीभ में से कुछ रक्त की बूंदे भी टपक रही हैं। यहां माता सती को कालिका देवी और भगवान शिव को नकुलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता हैं।
1809 में बना मौजूदा मंदिर का स्वरूप
मंदिर का निर्माण सन् 1809 में सबर्ण रॉय चौधरी नाम के धनी व्यापारी के सहयोग से पूरा किया गया था। भारतीय पुरातत्व विभाग को मंदिर में गुप्त वंश के कुछ सिक्के भी मिले थे जिसके बाद ये पता चला कि गुप्त काल के दौरान भी इस मंदिर में श्रद्धालुओं का आना-जाना रहता था। कालीघाट मंदिर पहले हुगली नदी के किनारे स्थित हुआ करता था लेकिन समय के साथ भागीरथी दूर होती चली गई और अब कालीघाट मंदिर आदि गंगा नहर के किनारे स्थित है जो हुगली नदी से जाकर मिलती है। मंदिर में प्रार्थना करने का समय सुबह 5 बजे से लेकर दोपहर 2 और शाम 5 बजे से लेकर रात 10:30 बजे तक है।
हुगली नदी में मिला था माता सती के पैर का अंगूठा
कहा जाता है कि मंदिर की स्थापना चौरांगा गिरि नामक एक संत ने की थी जिन्होंने काली के चेहरे की छाप की खोज की थी और एक छोटी सी झोपड़ी में काली मंदिर का निर्माण किया था। कालीघाट मंदिर से जुड़ी और भी कहानियाँ हैं। सबसे लोकप्रिय कहानियों में से एक आत्मा राम नामक ब्राह्मण की है, जिसने भागीरथी (हुगली) नदी में एक मानव पैर जैसे पत्थर का टुकड़े को चमकते हुए देखा। ब्राह्मण ने भगवान से प्रार्थना की कि वह उसे बचाए। संत को सपने में माता पार्वती ने कहा कि यह पत्थर का टुकड़ा माता सती के पैर का अंगूठा है जिसका उसे मंदिर बनाना होगा। इसके आलावा संत को नकुलेश्वर नाम के शंभू लिंगम की तलाश करने के लिए भी कहा गया। ब्राह्मण को शंभू लिंगम मिला, और लिंगम और पैर के अंगूठे की पूजा करना शुरू कर दिया।
गंगा के पवित्र जल का तालाब
इस मंदिर की स्नान यात्रा भी बहुत प्रसिद्ध है। पुजारी अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर मूर्तियों को स्नान कराते हैं। यह मंदिर अपनी खूबसूरत और अनूठी वास्तुकला के लिए जाना जाता है। देवी षष्ठी, शीतला और मंगल चंडी का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन पत्थर हैं। यहां सभी पुजारी महिलाएं हैं। माना जाता है कि मंदिर के एक तालाब में गंगा का पानी है, जिसे बहुत पवित्र माना जाता है। यह स्थान काकू-कुंड के नाम से जाना जाता है। कई निःसंतान दम्पति संतान प्राप्ति के लिए यहां स्नान करते हैं। स्नान घाट को जोर-बांग्ला के नाम से जाना जाता है।
कोलकाता से कुछ ही दूरी पर स्थित है मंदिर
कोलकाता के कालीघाट मंदिर तक हवाई रास्ते या ट्रेन के रास्ते से पहुंचा जा सकता है। कालीघाट मंदिर से नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की दूरी लगभग 25 किलोमीटर (किमी) है। प्रसिद्ध हावड़ा जंक्शन, कालीघाट मंदिर से महज 10 किमी दूर है। कोलकाता आने के बाद मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
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