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हिंगलाज देवी शक्तिपीठ, पाकिस्तान (Hinglaj Devi Shaktipeeth, Pakistan)

हिंगलाज देवी शक्तिपीठ, पाकिस्तान (Hinglaj Devi Shaktipeeth, Pakistan)

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है देवी हिंगलाज का मंदिर, दर्शन से पहले लेनी होती हैं दो शपथ


पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिंगोली नदी के तट पर स्थित हिंगलाज माता का मंदिर स्थित है। जहां माता सती सिर गिरा था। 2000 साल से भी पुराना ये मंदिर एक गुफा के अंदर है। जहां जाने का रास्ता अमरनाथ यात्रा से भी कठिन है। यहां माता सती को हिंगलाज और भगवान शिव को भीमलोचन के नाम से पूजा जाता है। बताया जाता है कि हिंगलाज माता के इस मंदिर में मनोरथ सिद्धि के लिए गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव और दादा मखान जैसे आध्यात्मिक संत भी यहां आ चुके हैं। मंदिर में कोई दरवाजा नहीं है।


युद्ध में हुई बमों की वर्षा लेकिन मंदिर को कुछ नहीं हुआ

मान्‍यता है कि हिंगलाज माता यहां सुबह प्रतिदिन स्नान करने आती हैं। मंदिर परिसर में श्री गणेश, कालिका माता की प्रतिमा भी स्थापित है। यहां ब्रह्मकुंड और तीर कुंड दो प्रसिद्ध तीर्थ भी हैं। 1965 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई के बाद यह मंदिर देश-विदेश में चर्चित हो गया। लड़ाई में पाकिस्तानी सेना की तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर पर खरोच तक नहीं ला सके। यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम तो फटे तक नहीं। ये बम अब मंदिर परिसर में बने एक संग्रहालय में भक्तों को देखने के लिए रखे हुए हैं।


मंदिर में दर्शन से पहले लेनी होती है दो शपथ 


हिंगलाज माता के दर्शन के लिए जाने वाले यात्रियों को 2 शपथ लेनी पड़ती है.पहली माता के मंदिर के दर्शन करके वापस लौटने तक संन्यास ग्रहण करने की।.दूसरी पूरी यात्रा में कोई भी यात्री अपने सहयात्री को अपनी सुराही का पानी नहीं देगा। भले ही वह प्यास से तड़प कर वीराने में मर जाए। इसके अलावा पाकिस्तान सरकार से भी कागजी इजाजत लेनी होती है। 


हिंगोल राक्षस के नाम पर पड़ा मंदिर का नाम 


कुलार्णव तंत्र में 18 पीठों का उल्लेख है और तीसरी  पीठ के रूप में हिंगुला का उल्लेख है। कुब्जिका तंत्र में हिंगुला को 42 शाक्त या सिद्ध पीठों में सूचीबद्ध किया गया है, जिसमें हिंगलाज पांचवें स्थान पर है।16वीं शताब्दी के गैर-शास्त्रीय बंगाली कार्य चंडीमंगल में, मुकुंदराम ने दक्ष-यज्ञ-भंग खंड में नौ पीठों को सूचीबद्ध किया है। हिंगलाज पीठों में से एक है। अंतिम पीठ वह स्थान है जहाँ सती का माथा गिरा था।


एक और किंवदंती है कि देवी ने हिंगोल को मार डाला क्योंकि उसने लोगों को सताया था। वह हिंगोल का पीछा करते हुए गुफा तक पहुँची, जो वर्तमान में हिंगलाज माता का मंदिर है। मारे जाने से पहले हिंगोल ने देवी से अनुरोध किया कि वह उस स्थान का नाम उसके नाम पर रखने को कहा, जिसे उसने स्वीकार कर लिया।


यात्रा से पहले इन बातों का ध्यान रखें


पाकिस्तानी वीजा प्राप्त करके शुरुआत करें, जिसे भारत में पाकिस्तान उच्चायोग या वाणिज्य दूतावास से प्राप्त किया जा सकता है। सुनिश्चित करें कि यात्रा कार्यक्रम, आवास का प्रमाण और पहचान सहित सभी आवश्यक दस्तावेज हों। सबसे आम मार्ग दिल्ली, मुंबई या बैंगलोर जैसे प्रमुख भारतीय शहरों से पाकिस्तान के वित्तीय केंद्र कराची तक उड़ान भरना है।


कराची एक प्रमुख प्रवेश बिंदु के रूप में कार्य करता है और आगे की यात्रा के लिए बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करता है। कराची से, आपको हिंगोल नेशनल पार्क के नजदीक एक शहर उथल की यात्रा करनी होगी। 


आप एक निजी टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या बस ले सकते हैं। दूरी लगभग 250 किलोमीटर है। आमतौर पर 4-5 घंटे लगते हैं। उथल से, आपको हिंगलाज तक पहुँचने के लिए एक स्थानीय वाहन या जीप की व्यवस्था करनी होगी। हिंगलाज की सड़क चुनौतीपूर्ण हो सकती है, इसलिए ऐसे वाहन का उपयोग करना उचित है जो उबड़-खाबड़ इलाकों को संभाल सके। हिंगलाज से, मंदिर लगभग 120 किलोमीटर दूर है। यात्रा के अंतिम चरण में ऑफ-रोड यात्रा शामिल हो सकती है। सुनिश्चित करें कि आपके साथ कोई स्थानीय गाइड या ड्राइवर हो जो मार्ग से परिचित हो।


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राम नाम मतवाला,

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राम कहानी सुनो रे राम कहानी ।
कहत सुनत आवे आँखों में पानी ।

राम कहने से तर जाएगा (Ram Kahne Se Tar Jayega Par Bhav Se Utar Jayega)

राम कहने से तर जाएगा,
पार भव से उतर जायेगा।

राम कथा सुनकर जाना (Ram Katha Sunkar Jana)

जीवन का निष्कर्ष यही है,
प्रभु प्रेम में लग जाना,

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