गंडकी चंडी शक्तिपीठ, नेपाल (Gandaki Chandi Shaktipeeth, Nepal)

हाथी और मगरमच्छ से जुड़ी है इस शक्तिपीठ की कथा, इस स्थान पर गिरी थी माता की कनपटी


गंडकी चंडी शक्तिपीठ मंदिर नेपाल के मुक्तिधाम में चंडी नदी के तट पर स्थित है। पौराणिक ग्रंथो के अनुसार इसी जगह पर माता सती की कनपटी गिरी थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी नदी में शालिग्राम नामक पत्थर मौजूद हैं जोकि भगवान विष्णु का स्वरूप है। यहाँ माता सती को गंडकी चंडी का और भगवान शिव को चक्रपाणि के नाम से पूजा जाता है। 


गंडकी चंडी शक्तिपीठ से एक हाथी और मगरमच्छ की प्राचीन कथा जुड़ी है। इस कथा के अनुसार एक राज्य में इन्द्रदमन राजा रहता था, जोकि भगवान विष्णु का भक्त था। राजा ने अपना राज-पाट त्यागकर भगवान की भक्ति आराधना करना चाहा। इसके साथ ही वह संसार की हर मोह माया से दूर हो गया।


राजा कहीं दूर जाकर भगवान विष्णु के ध्यान में लीन हो गया। कई महीने और साल बीत गए राजा ध्यान में ही लीन रहा। एक बार एक ऋषि अपने शिष्यों के साथ उसी पथ से जा रहे थे जहाँ पर इन्द्रदमन भगवान विष्णु के ध्यान में लीन थे। जब ऋषि ने राजा को तपस्या करते देखा तो वह उनके पास गए और उन्हें जागृत होने का आग्रह किया। लेकिन राजा ने उनकी बात को अनसुना कर दिया और ध्यान से जागृत नहीं हुए।


राजा का ऐसा घमंड देखकर ऋषि ने राजा को श्राप दे दिया कि वह हमेशा के लिए हाथी के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे, परिणामस्वरूप राजा एक हाथी के स्वरूप में जंगल में रहने लगे। एक बार जब इस हाथी को प्यास लगी तो यह पानी की तलाश में हर जगह भटकने लगा, आखिर में जाकर वह एक नदी के पास पहुंचा जहा पर विशाल नदी बह रही थी। नदी के अन्दर जाकर हाथी ने अपनी प्यास बुझा ली, लेकिन तभी अचानक से नदी में मगरमच्छ आ जाता है और उस हाथी के एक पैर को अपने जबड़ों में दबा लेता है।


हाथी यह देख मगरमच्छ प्रहार कर देता है, और दोनों जानवरों के बीच घमासान युद्ध होता है। यह युद्ध कई सालों तक चलता है जिसमे मगरमच्छ को कुछ भी नहीं होता, परन्तु हाथी की दशा दयनीय हो चुकी थी, इस अवस्था में राजा रूपी हाथी ने भगवान विष्णु जी का स्मरण किया, तब विष्णु जी नदी के पास ही प्रकट हो जाते हैं और अपने भक्त का यह हाल देखकर, चिंतित हो उठते हैं। अपनी भक्त की रक्षा हेतु भगवान अपने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का सिर धड़ से अलग कर देते हैं और हाथी नदी से बाहर आ जाता है। इस तरह से भगवान विष्णु अपनी भक्त की रक्षा करते हैं।


मंदिर तक पहुंचने के दो प्रमुख रास्ते हैं


ट्रेन या बस से गोरखपुर की यात्रा करें। पूर्वी भारत से, सिलीगुड़ी या काकरभिट्टा की ओर जाएं।

गोरखपुर से: काठमांडू या पोखरा के लिए सीधी बस लें। वैकल्पिक रूप से, आप ट्रेन से गोरखपुर तक यात्रा कर सकते हैं और फिर बस ले सकते हैं।


सिलीगुड़ी/काकरभिट्टा से: काठमांडू या पोखरा के लिए बसें और साझा जीपें उपलब्ध हैं। वैकल्पिक रूप से, प्रमुख भारतीय शहरों (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता) से काठमांडू के लिए उड़ान भरें। काठमांडू से, पोखरा के लिए उड़ान भरें या सड़क यात्रा करें। पोखरा से शक्ति पीठ तक टैक्सी या स्थानीय बस किराये पर लें।


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