जानें शक्तिपीठ हरसिद्धि मंदिर के बारे में, गुप्त नवरात्रि में यहां जलाई जाती है विशेष दीपमालिका

सनातन परंपरा के अनुसार पृथ्वी पर जहां-जहां सती के अंग या फिर उनसे जुड़ी चीजें वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां- वहां शक्तिपीठ बन गए। ये तीर्थ न सिर्फ देश में बल्कि पड़ोसी देशों में भी मौजूद है। एक ऐसा ही शक्तिपीठ महाकाल की नगरी यानि कि उज्जैन में स्थित है। इस पावन शक्तिपीट को लोग हरसिद्धि माता के मंदिर के नाम से जानते हैं। मान्यता है कि, जिस स्थान पर देवी सती की कोहनी गिरी थी, वह उज्जैन के रुद्रसागर तालाब के पश्चिमी तट पर स्थित है। हरसिद्धि माता के मंदिर की विशेषता यह है कि इसमें देवी को कोई विग्रह नहीं है, बल्कि सिर्फ कोहनी ही है, जिसे हरसिद्धि माता के रुप में पूजा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में माता हरसिद्धि के आस-पास महालक्ष्मी और महासरस्वती भी विराजित हैं।


दीपमाला का विशेष महत्व


आषाढ़ गुप्त नवरात्र का पर्व बहुत ही शुभ माना जाता है। ये देवी दुर्गा की 10 महाविद्याओं की पूजा के लिए समर्पित है। गुप्त नवरात्र में साधक शक्तिपीठ हरिसिद्धि, गढ़तालिका माता आदि प्राचीन देवी मंदिरों में गुप्त साधना करेंगे। हरिसिद्धि मंदिर में हर दिन शाम को संध्या आरती के वक्त भक्तों के सहयोग से दीपमाला प्रज्वलित की जाएगी। शक्तिपीठ हरिसिद्धि मंदिर में संध्या आरती के दौरान दीपमाला प्रज्वलित कराने का विशेष महत्व हैं। पहले सिर्फ शारदीय नवरात्र के दिनों में दीपमालिका प्रज्वलित की जाती थी। लेकिन अब बीते कुछ सालों से मंदिर में दीपमालिका प्रज्वलित कराने के लिए लगातार भक्तों की संख्या बढ़ रही है।


दीपमाला के संबध में कुछ खास बातें


मंदिर परिसर में मराठा कालीन दो दीपस्तंभ हैं, इन्हे दीपमाला कहा जाता है। दीपमाला प्रज्वलित करने के लिए तेल के चार डिब्बों का उपयोग किया जाता है। एक बार दीपमाला प्रज्वलित कराने में करीब 15 हजार रुपये का खर्चा आता है।


हरिसिद्धि मंदिर का परिचय


हरिसिद्धि मंदिर की चारदिवारी के अंदर चार प्रवेशद्वार है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है। द्वार पर सुंदर बंगले बने हुए हैं। बंगले के पास में दक्षिण-पूर्व के कोण में एक बावड़ी बनी हुई हैं जिसके अंदर एक स्तंभ हैं। यहां श्रीयंत्र बना हुआ स्थान है। इसी स्थान के पीछे भगवती अन्नपूर्णा की बहुत ही सुंदर सी प्रतिमा है। मंदिर के पूर्व द्वार से लगा हुआ रुद्रसागर तालाब है। रुद्रसागर तालाब के सुरम्य तट पर चारों ओर मजबूत प्रस्तर दीवारों के बीच यह सुंदर मंदिर बना हुआ हैं। मंदिर के ठीक सामने दो बड़े स्तंभ खड़े हुए हैं। हर साल नवरात्र के दिनों में 5 दिन तक इन पर दीप मालाएं लगाई जाती है। मंदिर के पीछे अगस्तेश्वर का प्राचीन सिद्ध स्थान है जो महाकालेश्वर के भक्त हैं। मंदिर का सिंहस्थ 2004 के वक्त पुन: जीर्णोद्धार किया गया है।


हरिसिद्धि मंदिर का महत्व


हरिसिद्धि मंदिर एक शक्तिपीठ होने की वजह से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। यहां जो भी आता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। इस मंदिर और देवी का पुराणों में उल्लेख मिलता है। नवरात्रि में यहां उत्सव का माहौल रहता है। यहां की देवी का तांत्रिक महत्व भी है। यहां श्रीसूक्त और वेदोक्त मंत्रों के साथ पूजा होती है। मान्यता के अनुसार यहां पर स्तंभ दीप जलाने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता है। कहते हैं कि स्तंभ दीप जलाते वक्त बोली गई मनोकामना पूर्ण हो जाती है। यहां दुर्गा से संबंधित भव्य यज्ञ और पाठ का आयोजन होता रहा है।

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