हर संक्रांति में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इसे संक्रांति कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सूर्य भगवान की पूजा करने से धन और वैभव की प्राप्ति होती है। साथ ही स्वास्थ्य भी अच्छा होता है। नवम्बर के महीने में जो संक्रांति पड़ती है, उसे वृश्चिक संक्रांति कहा जाता है क्योंकि इस समय सूर्य तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करता है। इस दिन सूर्य पूजा का विशेष महत्व है जिसके साथ कुछ खास उपाय करने से बहुत लाभ होता है। तो आइए जानते हैं वृश्चिक संक्रांति पर किन खास उपायों से जीवन में होता है अद्भुत लाभ।
वृश्चिक संक्रांति बेहद खास है। इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं। वृश्चिक संक्रांति पर परिघ योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग का अभ्यास किया जाता है। साथ ही इस दिन बेहद खास शिववास योग भी बन रहा है।
वैदिक पंचांग के अनुसार देखें तो सूर्य ग्रह कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी 16 नवंबर को सुबह 7 बजकर 41 मिनट पर तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। इस राशि में सूर्य देव 14 दिसंबर तक रहेंगे। इसके अगले दिन 15 दिसंबर को सूर्य देव राशि परिवर्तन करेंगे।
इस दौरान सूर्य दो बार नक्षत्र परिवर्तन भी करेंगे। सबसे पहले 19 नवंबर 2024 को सूर्य अनुराधा नक्षत्र में गोचर करेंगे, फिर 2 दिसंबर 2024 को ज्येष्ठा नक्षत्र में गोचर करेंगे। इसलिए इस साल वृश्चिक संक्रांति 16 नवंबर को मनाई जाएगी।
वृश्चिक संक्रांति के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए। साथ ही तांबे के लोटे में पानी डालकर उसमें लाल चंदन, रोली, हल्दी और सिंदूर मिलाकर भगवान सूर्य को अर्पित करना चाहिए। उसके बाद धूप-दीप से सूर्य देव की आरती करें और सूर्य देव के मंत्रों का जाप करना शुभ माना जाता है। फिर घी और लाल चंदन का लेप लगाकर भगवान के सामने दीपक जलाएं। इसके साथ ही सूर्य देव को लाल फूल अर्पित करना चाहिए और अंत में गुड़ से बने हलवे का भोग लगाएं।
सभी राशियों का अपना अलग महत्व होता है। वृश्चिक राशि सभी राशियों में सबसे संवेदनशील राशि है जो शरीर में तामसिक ऊर्जा, घटना-दुर्घटना, सर्जरी, जीवन के उतार-चढ़ाव को प्रभावित और नियंत्रित करती है। यह साथ में जीवन के छिपे रहस्यों का प्रतिनिधित्व भी करती है। वृश्चिक राशि खनिज और भूमि संसाधनों जैसे कि पेट्रोलियम तेल, गैस और रत्न आदि के लिए कारक होती है। वृश्चिक राशि में सूर्य अनिश्चित परिणाम देता है। इस दिन श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और पितृ दोष समाप्त होता है।
भक्त वत्सल इस लेख के माध्यम से आपको बता रहा है कि चैत्र नवरात्रि के दौरान यदि घर में सही दिशा में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना और विशेष उपाय किए जाएं तो नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और वास्तु दोष समाप्त हो सकता है
नवरात्रि वर्ष में चार बार मनाई जाती है—चैत्र, आषाढ़, अश्विन और पौष माह में. इनका संबंध केवल देवी उपासना से नहीं बल्कि ऋतु परिवर्तन, ऊर्जा संतुलन और साधना के विशेष काल से भी है.
चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो रही है। इस दौरान मां दुर्गा की आराधना से भक्तों को मानसिक शांति, भौतिक सुख और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। दुर्गा सप्तशती का पाठ विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है, लेकिन हर राशि के लिए अलग-अलग अध्यायों का पाठ करने का महत्व बताया गया है।
नवरात्रि के अष्टमी-नवमी तिथि के संधि काल में की जाने वाली संधि पूजा का विशेष महत्व है। इस पूजा में देवी महागौरी और मां सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस पूजा के दौरान 108 दीये जलाने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।