वृश्चिक संक्रांति पर विशेष योग

वृश्चिक संक्रांति पर बन रहें हैं यह विशेष योग, करें यह ख़ास उपाय, जानिए तिथि, महत्व और पूजा विधि भी 


हर संक्रांति में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इसे संक्रांति कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सूर्य भगवान की पूजा करने से धन और वैभव की प्राप्ति होती है। साथ ही स्वास्थ्य भी अच्छा होता है। नवम्बर के महीने में जो संक्रांति पड़ती है, उसे वृश्चिक संक्रांति कहा जाता है क्योंकि इस समय सूर्य तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करता है। इस दिन सूर्य पूजा का विशेष महत्व है जिसके साथ कुछ खास उपाय करने से बहुत लाभ होता है। तो आइए जानते हैं  वृश्चिक संक्रांति पर किन खास उपायों से जीवन में होता है अद्भुत लाभ।


संक्रांति पर करें यह उपाय


  • हर संक्रांति पर भगवान सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है जिससे सूर्य दोष और पितृ दोष समाप्त होता है। संक्रांति के दिन दान-पुण्य का खास महत्व होता है। इसलिए इस दिन गरीब लोगों को भोजन, वस्त्र आदि दान करना चाहिए।
  • संक्रांति के दिन पूजा-अर्चना करने के बाद गुड़ और तिल का प्रसाद बांटा जाता है। मान्यता के अनुसार वृश्चिक संक्रांति के दिन गाय दान करना सबसे बड़ा पुण्य माना गया है। 
  • इस दिन श्राद्ध और तर्पण करने से पितृों को मुक्ति मिलती है और पितृ दोष समाप्त होता है।
  • संक्रांति काल दान-पुण्य तथा श्राद्ध व पितृ तर्पण का काल भी माना जाता है। ऐसे में वृश्चिक संक्रांति में भी मनुष्य को तीर्थ स्नान कर पितृों का श्राद्ध व तर्पण करना चाहिए। 
  • देवीपुराण के अनुसार जो मनुष्य संक्रांति काल में भी तीर्थ स्नान नहीं करता है, वह सात जन्मों तक रोगी और निर्धन रहता है। इसलिए जीवन में इन कष्टों से मुक्ति के लिए सूर्य पूजा करनी चाहिए।
  • इस दिन ब्राह्मणों व गरीबों को भोजन, कपड़े व गाय आदि का दान करना भी श्रेष्ठ माना गया है।


इस दिन बनने वाले योग


वृश्चिक संक्रांति बेहद खास है। इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं। वृश्चिक संक्रांति पर परिघ योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग का अभ्यास किया जाता है। साथ ही इस दिन बेहद खास शिववास योग भी बन रहा है।


वृश्चिक संक्रांति कब है?


वैदिक पंचांग के अनुसार देखें तो सूर्य ग्रह कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी 16 नवंबर को सुबह 7 बजकर 41 मिनट पर तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। इस राशि में सूर्य देव 14 दिसंबर तक रहेंगे। इसके अगले दिन 15 दिसंबर को सूर्य देव राशि परिवर्तन करेंगे।

इस दौरान सूर्य दो बार नक्षत्र परिवर्तन भी करेंगे। सबसे पहले 19 नवंबर 2024 को सूर्य अनुराधा नक्षत्र में गोचर करेंगे, फिर 2 दिसंबर 2024 को ज्येष्ठा नक्षत्र में गोचर करेंगे। इसलिए इस साल वृश्चिक संक्रांति 16 नवंबर को मनाई जाएगी।


वृश्चिक संक्रांति पूजा विधि


वृश्चिक संक्रांति के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए। साथ ही तांबे के लोटे में पानी डालकर उसमें लाल चंदन, रोली, हल्दी और सिंदूर मिलाकर भगवान सूर्य को अर्पित करना चाहिए। उसके बाद धूप-दीप से सूर्य देव की आरती करें और सूर्य देव के मंत्रों का जाप करना शुभ माना जाता है। फिर घी और लाल चंदन का लेप लगाकर भगवान के सामने दीपक जलाएं। इसके साथ ही सूर्य देव को लाल फूल अर्पित करना चाहिए और अंत में गुड़ से बने हलवे का भोग लगाएं।


जानिए वृश्चिक संक्रांति का महत्व


सभी राशियों का अपना अलग महत्व होता है। वृश्चिक राशि सभी राशियों में सबसे संवेदनशील राशि है जो शरीर में तामसिक ऊर्जा, घटना-दुर्घटना, सर्जरी, जीवन के उतार-चढ़ाव को प्रभावित और नियंत्रित करती है। यह साथ में जीवन के छिपे रहस्यों का प्रतिनिधित्व भी करती है। वृश्चिक राशि खनिज और भूमि संसाधनों जैसे कि पेट्रोलियम तेल, गैस और रत्न आदि के लिए कारक होती है। वृश्चिक राशि में सूर्य अनिश्चित परिणाम देता है। इस दिन श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और पितृ दोष समाप्त होता है।

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वृश्चिक संक्रांति का महत्व

वृश्चिक संक्रांति पौराणिक कथाओं के अनुसार एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योंहार है। यह हिंदू संस्कृति में सौर दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान सूर्य जी की पूजा के लिए विशेष माना होता है। वृश्चिक संक्रांति के समय सूर्य उपासना के साथ ही मंगल ग्रह शांति एवं पूजा करने से मंगल ग्रह की कृपा होती है।

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