सनातन धर्म में गणेश चतुर्थी का पर्व बेह द खास माना जाता है। यह दिन विघ्नहर्ता गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गणपति की विशेष पूजा और घर-घर में उनकी प्रतिमा स्थापित कर श्रद्धा भाव से सेवा की जाती है। लेकिन इस पर्व से जुड़ी एक अनोखी परंपरा है—गणेश चतुर्थी की रात चंद्रमा का दर्शन वर्जित माना गया है। कहा जाता है कि यदि इस दिन कोई व्यक्ति चंद्रमा को देख लेता है, तो उसे बिना कारण ही कलंक का सामना करना पड़ सकता है। आइए जानते हैं इस मान्यता के पीछे की कथा और धार्मिक विश्वास।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान गणेश अपनी सवारी मूषक पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकले थे। सभी देवी-देवता उन्हें नमन कर रहे थे, लेकिन चंद्रमा अपने सौंदर्य और तेज के अहंकार में डूबा हुआ था। उसने गणेशजी के गजानन स्वरूप का मजाक उड़ाते हुए उपहास किया। चंद्रमा का यह व्यवहार भगवान गणेश को अपमानजनक लगा।
गणपति बप्पा ने क्रोधित होकर चंद्रमा को श्राप दिया कि उसकी चमक सदा के लिए नष्ट हो जाएगी और वह काला पड़ जाएगा। यह श्राप सुनकर चंद्रमा भयभीत हो गया। उसने तुरंत गणेशजी से क्षमा मांगी और अपनी गलती स्वीकार की।
चंद्रमा की विनती सुनकर गणेशजी का हृदय पिघल गया। उन्होंने कहा कि श्राप तो पूर्ण रूप से समाप्त नहीं होगा, लेकिन इसका प्रभाव कम अवश्य होगा। उन्होंने कहा—"जो लोग भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी की रात चंद्रमा का दर्शन करेंगे, उन पर झूठे आरोप लगेंगे और उन्हें बेवजह कलंक का सामना करना पड़ेगा।"
तभी से यह मान्यता बन गई कि गणेश चतुर्थी की रात चंद्र दर्शन अशुभ होता है। हिंदू पंचांग और परंपरा के अनुसार, इस दिन गलती से भी चांद को देखने से बचना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति भूलवश चंद्रमा देख ले, तो उसे निर्दोष होते हुए भी बदनामी झेलनी पड़ सकती है।
शास्त्रों में इस दोष से बचने का उपाय भी बताया गया है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति गलती से गणेश चतुर्थी की रात चंद्रमा देख ले, तो उसे "श्रीकृष्ण" या "कृष्ण-कृष्ण" नाम का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से चंद्रदर्शन दोष का प्रभाव समाप्त हो जाता है और कलंक से मुक्ति मिलती है।
धार्मिक मान्यता है कि गणेश चतुर्थी का यह नियम भक्तों को अहंकार से दूर रहने और सदाचार अपनाने का संदेश देता है। चंद्रमा की कथा से यह शिक्षा मिलती है कि किसी के रूप-स्वरूप का उपहास नहीं करना चाहिए। भगवान गणेश का आशीर्वाद लेने वाला भक्त जीवन में सम्मान, सफलता और सुख पाता है, जबकि अभिमान पतन का कारण बनता है।
इसलिए हर साल गणेश चतुर्थी पर भक्त बड़ी श्रद्धा के साथ बप्पा का स्वागत करते हैं, लेकिन इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से बचते हैं। यह परंपरा केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि जीवन मूल्यों से भी जुड़ी हुई है।