Logo

करवा चौथ 2026 कब है?

करवा चौथ 2026 कब है?

Karwa Chauth 2026: पति की दीर्घायु के लिए किया जाने वाला करवा चौथ व्रत, जानिए तिथि और मुहूर्त

करवा चौथ भारत के उत्तर और पश्चिमी क्षेत्रों में आस्था और सौभाग्य से जुड़ा प्रमुख व्रत माना जाता है। विवाहित स्त्रियां इस दिन पूरे दिन का कठोर निर्जला उपवास रखती हैं और रात में चन्द्रमा को अर्घ देकर व्रत का समापन करती हैं। 2026 में करवा चौथ गुरुवार 29 अक्टूबर को होगा, जब चतुर्थी तिथि रात्रि तक रहेगी और पूजा का शुभ मुहूर्त 05 बजकर 38 मिनट से 06 बजकर 56 मिनट तक मान्य रहेगा। इसी दिन करक चतुर्थी और संकष्टी व्रत का संयोग भी रहेगा। आइए जानते हैं 2026 के करवा चौथ की तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत से जुड़ी मान्यताएं।

करवा चौथ 2026 की तिथि और शुभ मुहूर्त

29 अक्टूबर 2026 को कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तिथि रात्रि 10 बजकर 09 मिनट तक रहेगी और इसी दिन करवा चौथ का व्रत किया जाएगा। व्रत का समय सुबह 06 बजकर 31 मिनट से प्रारम्भ होगा और चन्द्रोदय 08 बजकर 11 मिनट पर होगा। पूजा का शुभ मुहूर्त 05 बजकर 38 मिनट से 06 बजकर 56 मिनट तक रहेगा जिसकी अवधि लगभग 1 घंटा 17 मिनट की होगी। शास्त्रों में इसी समय शिव परिवार की पूजा, दीप अर्पण और करवा की स्थापना की जाती है। महिलाएं इस मुहूर्त में कथा सुनती हैं और रात्रि में छलनी से चन्द्र दर्शन कर अर्घ अर्पित करती हैं।

करवा चौथ का महत्व और धार्मिक मान्यता

करवा चौथ केवल व्रत नहीं बल्कि दाम्पत्य प्रेम, विश्वास और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन किया गया व्रत सौभाग्यवती योग को स्थिर करता है और पति को दीर्घ आयु तथा उन्नति का आशीर्वाद प्रदान करता है। इस व्रत को करक चतुर्थी भी कहा जाता है क्योंकि पूजा के समय मिट्टी के करवे का प्रयोग किया जाता है। अनेक ग्रंथों में वर्णित वीरावती कथा और करवा कथा इस व्रत के महत्व को और अधिक स्पष्ट करती है, जिनमें नारी के संकल्प, प्रेम और तप के परिणामस्वरूप पति को नया जीवन प्राप्त होने का वर्णन मिलता है।

करवा चौथ व्रत के नियम 

व्रत सूर्योदय से पहले सरगी ग्रहण कर आरम्भ होता है जिसे सामान्यतः सास तैयार करती हैं। इसके बाद महिलाएं दिनभर बिना जल ग्रहण किए व्रत का पालन करती हैं। शाम के समय शिव परिवार, गणेश जी और करवे की स्थापित प्रतिमा की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान कथा सुनना अनिवार्य माना जाता है। चन्द्रोदय के बाद छलनी से चन्द्र दर्शन कर अर्घ चढ़ाया जाता है। फिर पति पत्नी को जल पिलाकर व्रत खुलवाता है। मान्यता है कि व्रत को पूर्ण निष्ठा और पूरी विधि से करने पर अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

सरगी और क्षेत्रीय परम्पराओं का महत्व

पंजाब और उत्तर भारत में सरगी करवा चौथ का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। यह प्रातःकाल के भोजन का वह थाल है जिसे सास अपनी बहू को प्रेम और आशीर्वाद के साथ देती हैं। सरगी में फल, फेरी, मिष्ठान, सूखे मेवे और पारम्परिक व्यंजन शामिल रहते हैं। राजस्थान और यूपी में गौर माता की पूजा करने की परम्परा है जिसमें गोबर से बनाई गई प्रतिमा की आराधना की जाती है। शाम को सभी महिलाएं श्रृंगार कर एकत्रित होती हैं और करवा फेरियों की रस्म निभाती हैं जिसमें थाली एक दूसरे को देकर सुहाग और सौभाग्य का आदान प्रदान किया जाता है।

करवा चौथ कथा और उससे जुड़ा संदेश

करवा चौथ की कथा स्त्री के अद्भुत तप, त्याग और अटूट विश्वास को दर्शाती है। चाहे वह वीरावती की कहानी हो या करवा की कथा, दोनों ही कथाओं में पत्नी का संकल्प पति के जीवन के लिए सुरक्षा कवच बन जाता है। कथा यह सिखाती है कि व्रत केवल भोजन त्याग का नाम नहीं बल्कि मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संयम है। इसी भाव से किया गया व्रत स्त्री को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देता है और दाम्पत्य जीवन में स्थिरता और शांति स्थापित करता है।

इन्हें भी पढ़े

........................................................................................................
HomeBook PoojaBook PoojaChadhavaChadhavaKundliKundliPanchangPanchang