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दशहरा 2026 में कब है?

दशहरा 2026 में कब है?

Dussehra 2026: अक्टूबर के महीने में इस दिन होगा रावण दहन, जानिए सही मुहूर्त और तिथि

दशहरा या विजयादशमी भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है, जिसे भगवान श्रीराम द्वारा रावण पर विजय की स्मृति में मनाया जाता है। यह पर्व माता दुर्गा द्वारा महिषासुर के संहार का भी प्रतीक है, इसलिए इसे शक्ति-उपासना का शुभ दिन माना गया है। 2026 में दशहरा मंगलवार, 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा, जबकि बंगाल में दुर्गा विसर्जन और विजयादशमी 21 अक्टूबर को होगी। इस दिन विजय मुहूर्त, अपराजिता पूजा और आयुध पूजन का विशेष महत्व होता है। पंचांग के अनुसार दशमी तिथि, नक्षत्र और अपराह्न काल के आधार पर ही रावण दहन का शुभ समय तय किया जाता है। आइए जानते हैं दशहरा 2026 की सही तिथि, मुहूर्त और पूजा परंपराएं।

दशहरा 2026 की तारीख 

विजयादशमी 2026 मंगलवार, 20 अक्टूबर को पड़ेगी। दशमी तिथि का आरंभ 20 अक्टूबर दोपहर 12:50 बजे होगा और यह 21 अक्टूबर दोपहर 02:11 बजे समाप्त होगी। बंगाल में विजयादशमी 21 अक्टूबर को मानी जाएगी और अपराह्न पूजा 1:14 बजे से 3:30 बजे तक की जाएगी। चूंकि मुख्य भारतीय परंपरा में दशहरा अपराह्न काल में व्याप्त दशमी पर मनाया जाता है, इसलिए उत्तर भारत में रावण दहन 20 अक्टूबर को होगा। पंचांग के नियम बताते हैं कि यदि दशमी पहले दिन के अपराह्न में हो, तो विजयादशमी उसी दिन मानी जाती है।

दशहरा 2026 का विजय मुहूर्त 

पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय का निर्णय विजय मुहूर्त में ही किया था। 2026 में विजय मुहूर्त दोपहर 1:59 बजे से 2:45 बजे तक रहेगा। यह अवधि लगभग 45 मिनट की होगी और अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस समय आयुध पूजा, शमी पूजन, नए कार्यों की शुरुआत और संकल्प लेना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसे वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तों में से एक का दर्जा प्राप्त है। जो भी साधना, पूजा या कार्य इस शुभ काल में किए जाते हैं, वे सिद्धि प्रदान करने वाले माने गए हैं। कई लोग इसी समय रावण दहन का आयोजन भी करते हैं ताकि विजय का प्रतीकात्मक अर्थ और अधिक प्रभावी हो सके।

दशहरा मनाने की परंपरा और अनुष्ठान 

विजयादशमी के दिन अपराजिता पूजा का विशेष महत्व है। इस पूजा में अष्टदल चक्र बनाकर देवी अपराजिता, जया और विजया का आह्वान किया जाता है। क्षत्रिय समुदाय इस दिन आयुध पूजन करते हैं, जिसमें शस्त्रों और उपकरणों की पूजा कर विजय और सुरक्षा की कामना की जाती है। व्यापारी वर्ग अपने बहीखातों की पूजा करते हैं, जबकि विद्यार्थी मां सरस्वती की उपासना करते हैं। कई जगह नवरात्रि की रामलीला का समापन इसी दिन होता है और रावण, कुम्भकर्ण व मेघनाथ के पुतले दहन किए जाते हैं। 

दशहरा की पौराणिक की कथा

दशहरा उन विरले पर्वों में है जो रामायण और महाभारत दोनों से जुड़ा हुआ है। रामायण में श्रीराम द्वारा रावण वध के कारण यह दिवस ‘दश-हरा’ कहलाया। वहीं महाभारत में अर्जुन ने अज्ञातवास के दौरान अपना गांडीव शमी वृक्ष में छिपाया था और विजयादशमी के दिन ही उसे पुनः निकालकर शत्रुओं को परास्त किया था। एक अन्य कथा में कहा गया है कि लंका पर चढ़ाई के समय शमी वृक्ष ने श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया था। दक्षिण भारत, विशेषकर मैसूर का दशहरा विश्वभर में प्रसिद्ध है।

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