Krishna Janmashtami 56 Bhog: जन्माष्टमी का त्योहार हर साल पूरे भारत में बड़े उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव की खुशियों में मंदिरों और घरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जन्माष्टमी पर कान्हा की विधिपूर्वक पूजा करने और व्रत रखने से जीवन में खुशियां आती हैं। वहीं, इस दिन पूजा का एक सबसे खास हिस्सा है 56 भोग। अक्सर आपने ऐसा सुना होगा कि जन्माष्टमी के दिन कृष्ण भगवान को 56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कान्हा को 56 ही क्यों है, 50 या 100 भोग अर्पित क्यों नहीं किए जाते हैं? ऐसे में आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा।
एक बार ब्रजवासी इंद्रदेव को खुश करने के लिए बड़ी पूजा का आयोजन कर रहे थे। बाल गोपाल कृष्ण ने अपने पिता नंदलाल से पूछा कि यह सब क्यों किया जा रहा है। नंद बाबा ने समझाया कि इंद्रदेव वर्षा के देवता हैं और उनकी पूजा से अच्छी बारिश होती है जिससे फसल उगती है। लेकिन कृष्ण ने कहा कि हमें इंद्रदेव की पूजा की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि यही पर्वत हमें फल, सब्जियां और हमारे पशुओं के लिए चारा देता है। कृष्ण की बात मानकर सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की। यह सुनकर इंद्रदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रज पर भारी वर्षा कर दी, जिससे वहां बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। तब कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सात दिनों तक उसे ऊपर उठाए रखा ताकि गांव वाले और उनके पशु-पक्षी सुरक्षित रह सकें।
सात दिन बाद जब इंद्रदेव का क्रोध शांति हुआ और बारिश रुक गई, तो सभी ने देखा कि कृष्ण ने पूरे सात दिनों तक कुछ भी नहीं खाया था। माता यशोदा अपने लाडले कान्हा को दिन में आठ बार भोजन कराती थीं। अपने प्यारे बेटे के सात दिन तक भूखे रहने की चिंता और प्रेम में, माता यशोदा समेत सभी ब्रजवासियों ने मिलकर कुल 56 प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाए और उन्हें कृष्ण को भोग लगाया। इसी वजह से जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग अर्पित करने की परंपरा आज तक चली आ रही है।
छप्पन भोग में मिठाई, नमकीन, फल, अनाज, दूध से बने व्यंजन और पेय पदार्थ शामिल होते हैं। पारंपरिक भोग में माखन, मिश्री, पेड़ा, लड्डू, रबड़ी, पूरी, कचौरी, हलवा, खिचड़ी, मौसमी फल और ठंडे पेय जैसे कई स्वादिष्ट चीजें शामिल होती हैं।