हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह में दो एकादशी आती हैं। एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल या गौर पक्ष में। इस्कॉन परंपरा में एकादशी को केवल उपवास नहीं बल्कि आत्मशुद्धि और भगवान श्रीकृष्ण के स्मरण का विशेष अवसर माना जाता है। इस दिन अनाज का त्याग कर भक्ति, जप, कीर्तन और सेवा को जीवन का केंद्र बनाया जाता है। वर्ष 2026 में पड़ने वाली सभी इस्कॉन एकादशी भक्तों को पूरे वर्ष साधना से जोड़े रखने का अवसर प्रदान करती हैं।
वर्ष 2026 में जनवरी से दिसंबर तक कुल 24 इस्कॉन एकादशी व्रत रखे जाएंगे। इनमें षट् तिला, भैमी, विजया, आमलकी, पापमोचनी, कामदा, वरूथिनी, मोहिनी, अपरा, पद्मिनी, परम, पाण्डव निर्जला, योगिनी, शयन, कामिका, पवित्रोपना, अन्नदा, पार्श्व, इन्दिरा, पाशांकुशा, रमा, उत्थान, उत्पन्ना और मोक्षदा एकादशी शामिल हैं।
इन सभी एकादशियों के लिए पारण समय द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद निर्धारित किया गया है। इस्कॉन परंपरा में पारण का विशेष ध्यान रखा जाता है, क्योंकि सही समय पर व्रत तोड़ना उतना ही आवश्यक माना गया है जितना उपवास रखना।
इस्कॉन एकादशी का मूल उद्देश्य भगवान श्रीकृष्ण की शुद्ध भक्ति को जीवन में स्थापित करना है। शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत करने से पापों का नाश होता है और चित्त की शुद्धि होती है।
वैष्णव परंपरा में माना जाता है कि एकादशी के दिन अनाज में पाप का वास होता है, इसलिए इस दिन अन्न का त्याग कर फल, कंद, दूध या जल के माध्यम से उपवास किया जाता है। नियमित रूप से इस्कॉन एकादशी का पालन करने से साधक के भीतर संयम, वैराग्य और आध्यात्मिक बल का विकास होता है।
एकादशी के एक दिन पहले दशमी को केवल एक समय सात्विक भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान श्रीकृष्ण या विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
दिनभर जप, कीर्तन, भागवत गीता और श्रीमद्भागवत का पाठ करें। इस्कॉन परंपरा में हरे कृष्ण महामंत्र का जप विशेष रूप से किया जाता है। उपवास जल रहित, केवल जल, फलाहार या दूध के साथ अपनी क्षमता अनुसार किया जा सकता है।
द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद निर्धारित पारण समय में भगवान को भोग अर्पित कर व्रत का पारण करें।
एकादशी के दिन सभी प्रकार के अनाज, दालें और उनसे बने पदार्थ वर्जित होते हैं। प्याज, लहसुन और तामसिक भोजन से पूर्ण रूप से दूर रहना चाहिए। दिन में सोना, निंदा, क्रोध और असत्य से बचना चाहिए। इस दिन मन, वाणी और कर्म से भगवान का स्मरण करते रहना ही व्रत की सार्थकता मानी जाती है।
इस व्रत से भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मानसिक शांति, आत्मिक बल और भक्ति में वृद्धि होती है। पाप कर्मों का क्षय होता है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। जो भक्त श्रद्धा और नियमपूर्वक इस्कॉन एकादशी का पालन करते हैं, उनके लिए यह व्रत मोक्ष की ओर ले जाने वाला साधन माना गया है।
इन्हें भी पढ़े