हिंदू धर्म में कालाष्टमी का विशेष स्थान है। इस दिन भगवान शिव के रक्षक और दंडाधिकारी स्वरूप कालभैरव की पूजा की जाती है। मान्यता है कि कालभैरव समय और कर्म के अधिपति हैं तथा काशी के कोतवाल के रूप में भी पूजित होते हैं। जो भक्त श्रद्धा और नियमपूर्वक कालाष्टमी का व्रत रखते हैं, उनके जीवन से भय, रोग, शत्रु बाधा और नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। वर्ष 2026 में आने वाली सभी मासिक कालाष्टमी तिथियां कालभैरव उपासकों के लिए विशेष साधना का अवसर प्रदान करती हैं।
कालाष्टमी प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2026 में कुल 13 कालाष्टमी पड़ रही हैं। जनवरी से दिसंबर तक अलग अलग मासों में कालाष्टमी व्रत रखा जाएगा। जून 2026 में अधिक मास के कारण अधिक कालाष्टमी भी आएगी। दिसंबर माह की कालाष्टमी को कालभैरव जयंती के रूप में मनाया जाएगा, जिसे भैरव अष्टमी भी कहा जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार जिस दिन अष्टमी तिथि रात्रि काल में प्रबल होती है, उसी दिन कालाष्टमी का व्रत करना श्रेष्ठ माना जाता है। इसी नियम के आधार पर द्रिक पंचांग द्वारा व्रत की तिथियां निर्धारित की जाती हैं।
कालाष्टमी व्रत का उल्लेख शिव पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से कालभैरव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। जीवन में चल रहे भय, दुर्घटना योग, कोर्ट कचहरी के मामले, शत्रु बाधा और अकाल मृत्यु का भय दूर होता है।
जो लोग तंत्र बाधा, नकारात्मक ऊर्जा या ग्रह दोष से परेशान रहते हैं, उनके लिए कालाष्टमी व्रत अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। कालभैरव को न्यायप्रिय देवता माना जाता है, इसलिए यह व्रत कर्मों के शुद्धिकरण और आत्मिक बल प्रदान करता है।
कालाष्टमी के दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। दिनभर उपवास रखें या फलाहार करें। संध्या या रात्रि के समय कालभैरव की पूजा का विशेष महत्व है।
पूजा स्थल पर भगवान कालभैरव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। उन्हें सरसों के तेल का दीपक, काले तिल, काले फूल, धूप और नैवेद्य अर्पित करें। कालभैरव अष्टक, कालभैरव मंत्र या ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ मंत्र का जप करें।
पूजा के बाद कुत्ते को भोजन कराना अत्यंत शुभ माना जाता है। अगले दिन ब्राह्मण या जरूरतमंद को दान देकर व्रत का पारण करें।
मार्गशीर्ष मास की कृष्ण अष्टमी को कालभैरव जयंती मनाई जाती है। उत्तर भारतीय पूर्णिमांत पंचांग में यह मार्गशीर्ष मास में और दक्षिण भारतीय अमांत पंचांग में कार्तिक मास में मानी जाती है, हालांकि तिथि दोनों में एक ही होती है।
मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने भैरव रूप धारण कर अधर्म का नाश किया था। इस दिन की गई पूजा शीघ्र फल देने वाली मानी जाती है और साधक को विशेष सिद्धि प्राप्त होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। तब भगवान शिव ने कालभैरव के रूप में प्रकट होकर ब्रह्मा के अहंकार का नाश किया। इसी कारण कालभैरव को दंडाधिकारी और रक्षक देवता कहा गया।
एक अन्य कथा के अनुसार काशी में निवास करने वाले भक्तों की रक्षा के लिए भगवान शिव ने कालभैरव को कोतवाल नियुक्त किया। तभी से कालभैरव को काशी का रक्षक माना जाता है और कालाष्टमी पर उनकी विशेष पूजा की जाती है।
इस व्रत को करने से भय और संकट दूर होते हैं। नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव समाप्त होता है। रोग और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है। शत्रु बाधा और न्याय संबंधी समस्याओं में राहत मिलती है। जीवन में आत्मविश्वास और सुरक्षा की भावना बढ़ती है।