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वृश्चिक संक्रांति पौराणिक कथाओं के अनुसार एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योंहार है। यह हिंदू संस्कृति में सौर दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान सूर्य जी की पूजा के लिए विशेष माना होता है। वृश्चिक संक्रांति के समय सूर्य उपासना के साथ ही मंगल ग्रह शांति एवं पूजा करने से मंगल ग्रह की कृपा होती है।
मान्यता है कि यदि कुंडली में मंगल शुभ प्रभाव में नहीं है या किसी प्रकार से मंगल के शुभ फलों की प्राप्ति नही हो पाती है तो उस स्थिति में वृश्चिक संक्रांति के समय पर मंगल देव का पूजन अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। इस समय पर मंगल मंत्र जाप, दान एवं हवन इत्यादि के काम द्वारा मंगल शांति संभव हो पाती है। वृश्चिक संक्रांति पर स्नान-ध्यान और दान-पुण्य किया जाता है। धार्मिक मत है कि संक्रांति तिथि पर सूर्य देव की उपासना करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। इसके साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो यह घटना संक्रांति कहलाती है। इस दौरान ग्रहों के राजा सूर्य मंगल की राशि वृश्चिक में प्रवेश करते हैं। इसलिए इसे वृश्चिक संक्रांति कहते हैं। संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा, गंगा स्नान और दान-पुण्य किया जाता है। वृश्चिक सक्रांति में भी सूर्य पूजन लाभदायी होता है।
एक मान्यता यह भी है कि दक्षिणायन को भगवान की रात का प्रतीक है, और उत्तरायण को भगवान के दिन का प्रतीक माना जाता है। इस समय के अवसर पर सूर्य दक्षिण की ओर अपनी यात्रा कर रहा होता है। इस अवसर पर लोग पवित्र स्थानों पर गंगा, गोदावरी, कृष्णा, यमुना नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं, यह समय सूर्य सभी राशियों को भी प्रभावित करता है। वृश्चिक संक्रांति के मौके पर भक्त विभिन्न रूपों में सूर्य देव की पूजा करते हैं। इस अवधि के दौरान कोई भी पुण्य कार्य या दान अधिक फलदायी होता है। जैसे वृश्चिक संक्रांति के दिन उड़द, चावल, सोना, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का विशेष महत्व होता है।
देवीपुराण के अनुसार जो मनुष्य संक्रांति काल में भी तीर्थ स्नान नहीं करता है, वह सात जन्मों तक रोगी और निर्धन रहता है।
मान्यता है कि वृश्चिक राशि एक जल तत्व युक्त राशि है, ऎसे में इस शीतलता का प्रभाव भी गोचर को प्रभावित करने वाला होगा। वृश्चिक राशि के लोगों को हनुमान जी और माता काली की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है। वृश्चिक संक्रांति के दिन तीर्थों में स्नान का भी खास महत्व होता है।
वृश्चिक संक्रांति का समय भी शीत ऋतु के समय को भी दर्शाता है। इस समय सूर्य की गर्मी में कमी भी आती है तथा इस समय पर सूर्य की किरणों में मौजूद शीतलता प्रकृति में भी अपना असर डालती है।
इसलिए ये समय प्रकृति के अनुरुप स्वयं को ढ़ालने के लिए भी आवश्यक होता है। सूर्य देव की पूजा करने के साथ-साथ संक्रांति तिथि पर किसी पवित्र नदी में स्नान और दान करने से भी पुण्य मिलता है।
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