सामा-चकेवा और मुढ़ी-बतासे

मुढ़ी और बतासे का मिलता है प्रसाद, हर्षोल्लास से मनाया जाता है सामा-चकेवा पर्व   


सामा-चकेवा मिथिलांचल में भाई-बहन के प्रेम और अपनत्व का प्रतीक है। यह पर्व कार्तिक शुक्ल सप्तमी से कार्तिक पूर्णिमा तक नौ दिन चलता है। इस पर्व में बहनें मिट्टी से बनी सामा-चकेवा, चुगला और अन्य प्रतीकात्मक मूर्तियाँ सजाकर सामूहिक रूप से पूजा करती हैं। पारंपरिक गीतों के साथ रात्रि में सामा-चकेवा का विशेष श्रृंगार किया जाता है और भाइयों को मुढ़ी-बतासे का प्रसाद दिया जाता है। विसर्जन के दिन भाई अपनी बहन के सुखद भविष्य की कामना करते हैं और बहनें सामा-चकेवा की मूर्तियों का विसर्जन करती हैं। यह पर्व मिथिलांचल की जीवंत लोक संस्कृति को संजोए हुए है।


भाई बहन का अभिन्न पर्व 


सामा-चकेवा मिथिलांचल की संस्कृति का एक अभिन्न पर्व है, जो भाई-बहन के प्रेम और उनके स्नेहिल संबंध को प्रकट करता है। इस पर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल सप्तमी से होती है और यह नौ दिनों तक मनाया जाता है, जिसका समापन कार्तिक पूर्णिमा पर होता है। इस अवधि के दौरान, मिथिलांचल के गांवों, शहरों और चौक-चौराहों पर सामा-चकेवा के गीत गूंजते रहते हैं, जिससे पूरे क्षेत्र का माहौल उत्साह और भक्ति से भर जाता है।


जानिए पर्व का महत्व


सामा-चकेवा की परंपरा मिथिलांचल के लोक जीवन से गहराई से जुड़ी हुई है। इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री श्यामा और उनके भाई शाम्भ के प्रसंग से जुड़ा है। श्यामा, जो धार्मिक प्रवृत्ति वाली थीं। उन्हें एक झूठे आरोप के कारण पक्षी बनने का श्राप मिला था। इसके पश्चात उनके भाई शाम्भ ने अपने बहन और बहनोई की मुक्ति के लिए तपस्या की जिससे भगवान कृष्ण ने प्रसन्न होकर उन्हें श्राप से मुक्ति का उपाय बताया। तभी से मिथिलांचल में सामा-चकेवा का यह पर्व जिसमें बहनें मिट्टी की मूर्तियाँ सजाती हैं और अपने भाइयों की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं, लोकप्रिय हो गया।


सामा-चकेवा पर्व के रस्म-रिवाज


इस पर्व के दौरान बहनें बांस के बने डाला में सामा, चकेवा, चुगला और अन्य मिट्टी की मूर्तियाँ रखकर सामूहिक पूजा करती हैं। रात्रि के समय सामा-चकेवा का विशेष श्रृंगार किया जाता है और उसे खेतों और चौराहों में ओस पीने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस दौरान महिलाएं सामा-चकेवा और चुगला पर आधारित पारंपरिक गीत गाती हैं जो भाई-बहन के रिश्ते के प्रति उनके समर्पण को प्रकट करते हैं। चुगला की मूर्ति को खासतौर पर गालियाँ दी जाती हैं और उसकी मूर्ति को प्रतीकात्मक रूप से जलाने की भी प्रथा है। इसे समाज के बुराई और ईर्ष्या का प्रतीक माना गया है।


मूर्तियों का विसर्जन 


विसर्जन के दिन भाइयों का इस पर्व में विशेष महत्व होता है। इस अवसर पर बहनें अपने भाइयों के लिए गमछा या धोती में मुढ़ी और बतासे का प्रसाद लेकर आशीर्वाद देती हैं। इसके बाद सामा-चकेवा की मूर्तियों का विसर्जन नदी, तालाब या खेतों में किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान बहनें सामा-चकेवा से अगले वर्ष पुनः आने का आह्वान करती हैं जो मिथिलांचल के सांस्कृतिक मूल्यों को सजीव बनाए रखने की एक अनूठी परंपरा है।


पर्व का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव


सामा-चकेवा मिथिलांचल की जीवंत लोकसंस्कृति का प्रतीक है। आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के बावजूद यह पर्व यहाँ के निवासियों के बीच आज भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह किसी विशेष जाति या धर्म का पर्व नहीं, बल्कि पूरे मिथिलांचल का सामूहिक त्योहार है। इससे ना केवल परिवारों में बल्कि समाज में भाईचारे और प्रेम का संदेश फैलता है।


........................................................................................................
सुन लो चतुर सुजान, निगुरे नहीं रहना - भजन (Sunlo Chatur Sujan Nigure Nahi Rehna)

निगुरे नहीं रहना
सुन लो चतुर सुजान निगुरे नहीं रहना...

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का मुहूर्त

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है। इसी लिए विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता गणेश जी को समर्पित गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि का बनी रहती है।

Shri Adinath Chalisa (श्री आदिनाथ चालीसा)

शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन को, करुं प्रणाम |
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम ||

तुम उठो सिया सिंगार करो, शिव धनुष राम ने तोड़ा है (Tum Utho Siya Singar Karo Shiv Dhanush Ram Ne Toda Hai)

तुम उठो सिया सिंगार करो,
शिव धनुष राम ने तोड़ा है,

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

यह भी जाने