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उज्जैन में हर साल वैकुंठ चर्तुदशी पर एक अनोखा दृश्य देखने को मिलता है जब भगवान शिव जिन्हें बाबा महाकाल के रूप में पूजा जाता है। वे भगवान विष्णु से मिलने के लिए निकलते हैं। इस अवसर पर बाबा महाकाल अपनी दिव्य पालकी में सवार होकर गोपाल मंदिर आते हैं और चार महीने से संभाले हुए सृष्टि के भार को भगवान नारायण को सौंपते हैं। यह आयोजन देवउठनी एकादशी के बाद होता है। जब भगवान विष्णु चातुर्मास की निद्रा से जागते हैं। इस मिलन में पूजा-अर्चना, आरती और विशेष भव्य सजावट के बीच भक्तों का भारी जमावड़ा लगता है। आइए इस लेख के माध्यम से इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
सनातन धर्म में कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी ग्यारस से सभी मंगल कार्यों की शुरुआत हो जाती है। इस दिन भगवान विष्णु अपनी चिर निद्रा से जागते हैं और सृष्टि संचालन का कार्य पुनः अपने हाथों में लेते हैं। लेकिन उज्जैन में औपचारिक रूप से यह दायित्व उन्हें बाबा महाकाल सौंपते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी और पूर्णिमा के दौरान उज्जैन में यह विशेष आयोजन होता है, जिसमें बाबा महाकाल अपनी सवारी से भगवान हरि से मिलने के लिए गोपाल मंदिर पहुंचते हैं।
वैकुंठ चतुर्दशी इस वर्ष 14 नवंबर यानी आज है। इसलिए आज रात लगभग 11 बजे बाबा महाकाल अपनी चांदी की पालकी में सवार होकर गोपाल मंदिर के लिए प्रस्थान करेंगे। यह सवारी सभा मंडप से शुरू होकर गुदरी चौराहा और पटनी बाजार से गुजरती है और रात में करीब 12 बजे गोपाल मंदिर में पहुंचती है। इस सवारी का स्वागत भव्य गार्ड ऑफ ऑनर के साथ होता है, जो इस यात्रा की दिव्यता को और बढ़ा देता है। इसके बाद बाबा महाकाल मंदिर में प्रवेश करते हैं और लगभग दो घंटे की पूजा और अभिषेक के उपरांत भगवान विष्णु को सृष्टि का भार सौंपकर एक बजे अपने महाकाल मंदिर लौट जाते हैं।
इस महोत्सव के दौरान भगवान महाकाल गोपाल जी को बिल्व पत्र की माला भेंट करते हैं। जबकि, गोपाल जी भगवान महाकाल को तुलसी की माला पहनाते हैं। इस विशेष अवसर पर महाकाल की ओर से गोपाल जी को वस्त्र, फल, मिष्ठान, और सूखे मेवे अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद दिव्य आरती का आयोजन होता है। इस आरती में भक्तगण बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। यह आरती और पूजन समारोह देवताओं की शक्तियों के पुनर्मिलन और सृष्टि के पुनः संचालन के प्रतीक स्वरूप होती है।
हरि-हर मिलन के इस अवसर पर महाकाल की सवारी और उनके मार्ग को बड़े स्तर पर सजाया जाता है। बाबा महाकाल की यात्रा देखने के लिए भक्तों का भारी जमावड़ा उमड़ता है। प्रशासन द्वारा भीड़ प्रबंधन के विशेष इंतजाम किए जाते हैं ताकि सभी भक्त सुरक्षित और व्यवस्थित तरीके से इस आयोजन में शामिल हो सकें। बाबा महाकाल की सवारी के दौरान आतिशबाजी और पुष्प वर्षा के विशेष आयोजन किए जाते हैं, जो इस रात को और भी दिव्य और भव्य बना देते हैं।
यह आयोजन यह भी दर्शाता है कि सनातन धर्म में देवताओं की शक्तियां समय-समय पर बंटती हैं और भगवान विष्णु को सृष्टि का भार पुनः सौंपा जाता है। इस प्रकार यह आयोजन जहां धार्मिक परंपराओं का पालन करता है, वहीं यह श्रद्धालुओं को धर्म और आस्था के प्रति दृढ़ भी करता है।
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