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वैकुंठ चतुर्दशी के दिन मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही भगवान शिव व विष्णु की कृपा भी प्राप्त होती है। 14 नवंबर को मणिकर्णिका स्नान का विधान है। बता दें कि यह पवित्र स्नान हिंदू धर्म का एक पवित्र अनुष्ठान है। जो वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर गंगा नदी में किया जाता है। इस स्नान को मोक्ष प्राप्ति और पापों से मुक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस घाट पर स्नान करने से व्यक्ति पापों से मुक्त हो जाता है और उसे भगवान शिव का आशीष प्राप्त होता है।
मणिकर्णिका घाट का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां भगवान शिव और माता पार्वती ने तपस्या की थी। साथ ही साथ यहां भगवान विष्णु के पदचिन्ह भी स्थित हैं। इसे मोक्षदायिनी घाट भी कहा जाता है क्योंकि यहां अंतिम संस्कार और स्नान से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस घाट का नाम "मणिकर्णिका" इसलिए पड़ा क्योंकि यहां माता पार्वती का कुंडल गिरा था। इसे मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है, जिससे आत्मा को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु वाराणसी में तपस्या कर रहे थे। इस दौरान माता पार्वती का कुंडल वहां गिरा, जिससे इस स्थान का नाम "मणिकर्णिका" पड़ा। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इस स्थान को इसलिए पवित्र माना और वचन दिया कि यहां अंतिम संस्कार करने या स्नान करने से जीवात्मा को मोक्ष की प्राप्ति होगी। इस प्रकार इस घाट पर स्नान को आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना गया है।
दरअसल, मणिकर्णिका घाट पर स्नान करते समय श्रद्धालुओं को कुछ विशिष्ट विधियां और प्रक्रियाएं अपनानी चाहिए जो इस प्रकार हैं।
मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने के कई धार्मिक लाभ बताए गए हैं। माना जाता है कि यह स्नान आत्मा को पवित्र करता है और जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति दिलाता है। इससे मानसिक शांति भी मिलती है। इसके अतिरिक्त, वैकुंठ चतुर्दशी के दिन इस घाट पर स्नान करने से व्यक्ति को भगवान शिव और गंगा माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस प्रकार मणिकर्णिका घाट का स्नान एक पवित्र अनुष्ठान है जो मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को प्रशस्त करता है और व्यक्ति के जीवन को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से संतुलित और पवित्र बनाता है।
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