माता सती की कोहनी/ऊपरी होठ :
18 कुलों की कुलदेवी है अवंती शक्तिपीठ, राजा अशोक की राजधानी और कृष्ण, राम की शिक्षा स्थली
अवंती मां शक्तिपीठ मंदिर, मध्य प्रदेश के प्राचीनतम शहर उज्जैन में स्थित है। इसे गढ़ कालिका मंदिर भी कहा जाता है। देवी को अवंतिका यानी उज्जैन की अधिष्ठात्री देवी माना गया है।
इस शक्तिपीठ में माता सती का कौन सा अंग गिरा था इसको लेकर विवाद है। कुछ मतों का मानना है कि यहां माता की कोहनी गिरी थी। वहीं अन्य मत कहते हैं यहां माता का ऊपरी होंठ गिरा था।
अवंती शक्तिपीठ में भगवान शिव, भैरव और अवंती माँ श्री महाकाली के रूप में पूजे जाते है। इसके अलावा मां अवंती गढ़कालिका 18 कुलों की कुलदेवी भी हैं। मराठा, क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, क्षुद्र आदि कुल अवंती माता को पूजते हैं और धार के पंवार राजवंश की भी कुलदेवी मां गढ़कालिका हैं। इसके अलावा गढ़ कालिका मां को देवी भागवतम् में ग्रह कालिका की देवी के रूप में जाना जाता है। कथा के अनुसार राजा अशोक ने इस स्थान के मूल निवासी से शादी की और शासन करने के लिए अवंती को अपनी राजधानी शहर के रूप में स्थापित किया था। स्थानीय लोगों के अनुसार यह वही स्थान है, जहाँ भगवान श्री कृष्ण और श्री राम ने शिक्षा प्राप्त की थी।
राक्षस अंधकालेश्वर से जुड़ी शक्तिपीठ की कथा
अवंतिका माता शक्तिपीठ मंदिर को लेकर कहानी है कि एक अंधकालेश्वर नाम का के राक्षस ने धरती पर आतंक मचा रखा था। तब माता पार्वती ने समस्त लोकों की रक्षा के लिए काली का रूप धारण किया। राक्षस को भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला था कि जहाँ भी उसका खून बहाया जाएगा, वहाँ उसके जैसे राक्षस प्रकट होंगे। युद्ध के दौरान, देवी ने अपनी जीभ फैलाकर राक्षस द्वारा छोड़े गए सारे खून को सोख लिया और उसे मार डाला। उसके बाद से इस स्थान का नाम अवंती पीठ पड़ा।
शक्तिपीठ उज्जैन के रेलवे स्टेशन से सिर्फ 4 किलोमीटर दूर है। इंदौर से इसकी दूरी 52 किमी दूर है। दोनों शहर हवाई, रेल और सड़क मार्ग से सुगमता से जुड़े हैं।
देवी बगलामुखी 10 महाविद्याओं में से एक आठवीं महाविद्या हैं, जो पूर्ण जगत की निर्माता, नियंत्रक और संहारकर्ता हैं। उनकी पूजा करने से भक्तों को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन की अनेकों बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, परशुराम द्वादशी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार, भगवान परशुराम को समर्पित हैI
परशुराम द्वादशी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार, भगवान परशुराम की पूजा को समर्पित है। परशुराम द्वादशी विशेष रूप से संतान प्राप्ति के लिए मनाया जाता है।
परशुराम द्वादशी का पर्व भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी को समर्पित है, जो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह व्रत विशेष रूप से संतान के प्राप्ति की कामना रखने वाले लोगों के लिए फलदायी होता हैं।