शास्त्रों की मानें तो माता सती की ठोड़ी महाराष्ट्र के नासिक के पास गोदावरी नदी के किनारे नंदूरी गांव में गिरी। जो कलवन तालुका में आता है। माता की ठोड़ी गिरने के चलते यहां एक शक्तिपीठ का निर्माण किया गया। जिसे सप्तश्रृंगी भ्रामरी या भद्रकाली शक्तिपीठ कहा जाता है। यह मंदिर सप्तश्रृंगी पहाड़ी पर स्थित है इसलिए यहां देवी को सात पहाड़ों की देवी भी कहा जाता है। इस पीठ को चिबुका के नाम से भी जाना जाता है।
माता सती को सप्तश्रृंगी या भ्रामरी और भगवान शिव को विकृताक्ष और सर्व सिद्धि के नाम से पूजा जाता है। मंदिर में देवी की मूर्ति का रंग काला है और इसलिए उन्हें भद्रकाली के रूप में भी पूजा जाता है।
देवी की मूर्ति लगभग 10 फीट लंबी है। इसमें देवी 18 हाथों में विभिन्न शस्त्र लिए विराजमान हैं। मूर्ति हमेशा सिंदूर से लिपटी रहती है, जिसे इस क्षेत्र में शुभ माना जाता है। पहाड़ी की तलहटी में, जहां से मंदिर के लिए सीढ़ियां शुरू होती है, वहां पत्थर में बना एक भैंसे का सिर है, जिसे राक्षस माना जाता है।
ऋषि मार्कंडेय एक कथा का वर्णन करते हैं। इसके अनुसार, महिषासुर नाम के राक्षस ने मनुष्यों को परेशान कर रखा था। उसे भगवान ब्रह्मा से अमरता का वरदान प्राप्त था। मार्कंडेय के अनुसार, केवल एक महिला ही महिषासुर के विनाश का कारण बन सकती थी जिसके लिए सभी देवताओं आदिशक्ति का आह्वान किया। देवी ने महिषासुर से युद्ध किया और उसका वध कर दिया।
मार्कंडेय ने बताया की यह युद्ध सप्तश्रृंगी माता मंदिर के भीतर सात पहाड़ियों पर हुआ था और देवी को वध के लिए सभी देवताओं से 18 हथियार मिले थे।
रामायण में भी इससे जुड़ी एक कहानी मिलती है जहां सप्तश्रृंग पर्वत पर दंडकारण्य नामक जंगल का एक हिस्सा था। ऐसा उल्लेख है कि भगवान राम, सीता के साथ अम्बा की प्रार्थना करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए यहाँ आए थे।
शक्तिपीठ की नासिक से सीधी कनेक्टिविटी है। नासिक के इंटरनेशनल एयरपोर्ट से इसकी दूरी 24 किमी है। निकटतम रेलवे स्टेशन नासिक रोड है जो मात्र 4 किमी दूर है। बस और टैक्सी की कनेक्टिवटी भी आसान है।
श्री गुरु चरण चितलाय के धरें ध्यान हनुमान ।
बालाजी चालीसा लिखे “ओम” स्नेही कल्याण ।।
बन्दहुँ वीणा वादिनी धरि गणपति को ध्यान |
महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण ||
जय जय जय प्रभु रामदे, नमो नमो हरबार।
लाज रखो तुम नन्द की, हरो पाप का भार।
जैसे अटल हिमालय और जैसे अडिग सुमेर ।
ऐसे ही स्वर्ग द्वार पै, अविचल खड़े कुबेर ॥