कालो के काल है,
मृत्यु के है वो राजा,
भस्मी लगाएं बाबा,
उज्जैन के वो राजा ॥
दीदार करना चाहूं,
दर्शन को प्यासी अखियां,
चरणों में रहना चाहूं,
बस दिल की एक आशा,
उज्जैन में भी आऊ,
दर्शन भी करना चाहूं,
महाकाल की वो महिमा,
सबको सुनाना चाहूं ॥
मेरे दिल की एक आशा,
तेरे दर पे मरना चाहूं,
मरने के बाद भोले,
भस्मी तुम्हें लगाऊं,
उज्जैन में भी आऊ,
दर्शन भी करना चाहूं,
महाकाल की वो महिमा,
सबको सुनाना चाहूं ॥
महाकाल तुमको प्यारी,
वह भस्म आरती है,
मुर्दे की राख से ही,
वह होती आरती है,
‘सत्यम’ को वर दे बाबा,
बस दिल से तुझको चाहूँ,
महाकाल भस्म आरती,
मैं भी तो करना चाहूँ ॥
कालो के काल है,
मृत्यु के है वो राजा,
भस्मी लगाएं बाबा,
उज्जैन के वो राजा ॥
भारतीय संस्कृति में नदियों का महत्व बहुत अधिक है, उन्हें मां का दर्जा दिया जाता है। गंगा नदी के प्रति लोगों की आस्था से अधिकतर लोग परिचित हैं। हालांकि, देश भर में खासकर मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी का काफी महत्व है। इस बार 4 फरवरी को नर्मदा जयंती मनाई जा रही है।
गंगा नदी की तरह ही मां नर्मदा को भी बहुत ही पवित्र और पूजनीय माना गया है। भारत में छोटी-बड़ी 200 से अधिक नदियां हैं, जिसमें पांच बड़ी नदियों में नर्मदा भी एक है। इतना ही नहीं, मान्यता है कि नर्मदा के स्पर्श से ही पाप मिट जाते हैं। इसलिए, प्रतिवर्ष माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती मनाई जाती है।
प्रतिवर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा जयंती मनाने का विधान है। इस दिन मां नर्मदा की विशेष रूप से यह जयंती मनाई जाती है।
नर्मदा नदी पहाड़, जंगल और कई प्राचीन तीर्थों से होकर गुजरती हैं। वेद, पुराण, महाभारत और रामायण सभी ग्रंथों में इसका जिक्र है। इसका एक नाम रेवा भी है। माघ माह में शुक्ल पक्ष सप्तमी को नर्मदा जयन्ती मनायी जाती है।