कर्नाटक के मैसूर में स्थित इस शक्तिपीठ में माता सती को दुर्गा के चामुंडेश्वरी देवी में और भगवान शिव को भीषणभैरव के नाम से पूजा जाता है। लोक कथाओं के अनुसार, चामुंडी पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर माँ दुर्गा द्वारा राक्षस महिषासुर के वध का प्रतीक माना जाता है।
मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था। यहां पर देवी सती के बाल/केश गिरे थे। दक्षिण भारत में इसे क्रोंचा पीठम के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर का निर्माण द्रविड़ वास्तुशैली में हुआ है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले ही महिषासुर की विशालकाय प्रतिमा स्थापित है। जिसमें राक्षस के एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में एक विशाल सर्प है।
नवरंग हॉल, अंतराल मंडप और प्रकार मंदिर के प्रमुख हिस्से हैं। मंदिर के गर्भगृह पर विमानम का निर्माण किया गया है, जिसके शिखर पर 7 स्वर्ण कलश स्थापित हैं। मंदिर के अंदर गर्भगृह में देवी की प्रतिमा सोने से बनी है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर को ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था कि वह केवल एक स्त्री द्वारा ही मारा जाएगा। इसके अलावा अन्य कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता था। वर प्राप्त करने के बाद महिषासुर ने देवताओं और ऋषियों पर अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया। इससे दुखी देवताओं ने महिषासुर से छुटकारा पाने के लिए महाशक्ति भगवती की आराधना की।
देवी भगवती ने देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर उन्हें महिषासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया। इसके बाद देवी भगवती और महिषासुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ। देवी ने सभी असुर सेना का वध कर अंत में महिषासुर का मस्तक काट दिया। देवी के इस रूप में चामुंडा का नाम दिया गया।
इतिहासकारों के अनुसार, मूल मंदिर 12वीं शताब्दी में होयसल राजवंश के शासकों द्वारा बनाया गया था, जबकि इसकी मीनार संभवतः 17वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के शासकों द्वारा बनाई गई थी। 1659 में, पहाड़ी के 3000 फुट शिखर तक जाने के लिए एक हजार सीढ़ियों की एक सीढ़ी बनाई गई थी।
मंदिर में नंदी की कई छवियां हैं। थोड़ी दूरी पर एक छोटे से शिव मंदिर के सामने पहाड़ी की 700 वीं सीढ़ी पर एक विशाल ग्रेनाइट का नंदी है। माना जाता है कि इसे दूसरी शताब्दी ई. में गढ़ा गया था, यह नंदी 15 फीट ऊंचा और 24 फीट लंबा है और इसके गले में उत्तम घंटियां हैं। नंदी का निर्माण एक ही पत्थर से किया गया है।
यह मंदिर आषाढ़ शुक्रवार, नवरात्रि और अम्मानवर वर्धन्ति जैसे त्योहारों के उत्सव के लिए प्रसिद्ध है। आषाढ़ माह में शुक्रवार को विशेष रूप से शुभ माना जाता है यह दिन मैसूर के महाराजा द्वारा देवी की उत्सव मूर्ति की प्रतिष्ठा की वर्षगांठ पर मनाया जाता है।
इस अवसर पर, देवी की मूर्ति को एक स्वर्ण पालकी में मंदिर के चारों ओर ले जाया जाता है। मैसूर दशहरा कर्नाटक के राज्य त्यौहार के रूप में मनाया जाता है, जिसे कन्नड़ में नाडा हब्बा कहा जाता है।
नवरात्रि के दौरान, देवी के नौ अलग-अलग पहलुओं को दर्शाने के लिए मूर्ति को 9 अलग-अलग तरीकों से सजाया जाता है, जिन्हें नवदुर्गा के रूप में जाना जाता है। नवरात्रि के 7वें दिन, जो देवी कालरात्रि को समर्पित है, महाराजाओं द्वारा दान किए गए बहुमूल्य गहने मैसूर के जिला कोषागार से लाए जाते हैं और मूर्ति को सजाने के लिए मंदिर को दिए जाते हैं।
मंदिर सुबह 7.30 से दोपहर 2.00 बजे, दोपहर से 3.30 से शाम 6.00 बजे और शाम 7.30 से रात्रि 9.00 तक खुलता है।
चामुंडेश्वरी शक्तिपीठ कर्नाटक में मैसूर से 13 किलोमीटर दूर चामुंडी पहाड़ियों पर स्थित है।नजदीकी हवाईअड्डा बेंगलुरू में स्थित है, जो यहाँ से 139 किलोमीटर दूर स्थित है। मैसूर जंक्शन से मंदिर की दूरी लगभग 13 किलोमीटर है।
फुलेरा दूज का त्योहार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित होता है और धूमधाम से मनाया जाता है।
फुलेरा दूज फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाले त्योहार है। यह त्योहार वसंत पंचमी के आने का संकेत देता है। इस दिन देश भर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को सजाया जाता है।
चंद्र दर्शन हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो अमावस्या के बाद पहली बार चंद्रमा के दर्शन से जुड़ा हुआ है। इस दिन चंद्रदेव की पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे मन की शांति, सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
फुलेरा दूज भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के प्रेम का प्रतीक का त्योहार है। यह त्योहार हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। वहीं यह त्योहार वसंत ऋतु के आगमन का संकेत भी होता है।