माँ फुलारा शक्तिपीठ या अट्टहास शक्तिपीठ सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है, जहां मां सती का "निचला होंठ" गिरा था। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित लाभपुर नाम की जगह पर इशानी नदी के तट पर यह मंदिर मौजूद है। यह मंदिर लगभग 500 साल पुराना है।
संस्कृत के दो शब्दों को मिलाकर अट्टहास शब्द बनता है। इसका मतलब है जोरदार हँसी। मंदिर में पत्थर से बनी एक देवी है जो लगभग 15 फीट चौड़ी है। मंदिर के बगल में एक बड़ा तालाब है जहां मान्यता के अनुसार, जब श्री रामचंद्र को देवी दुर्गा की पूजा के लिए 108 नीले कमल की आवश्यकता हुई तो श्री हनुमान ने इसी तालाब से 108 नीले कमल एकत्र किए थे। यहां भगवान शिव को विश्वेश्वर के रूप में पूजा जाता है जो इस मंदिर की रक्षा भी करते है। हालांकि, तालाब अब अस्तित्व में नहीं है।
यह मंदिर तांत्रिक शक्तिवाद का एक महत्वपूर्ण केंद्र है और यहाँ कई तांत्रिकों को अनुष्ठान और पूजा करते देखा जाता है। मंदिर की मूल मूर्ति को एक संग्रहालय में रखा गया था और 1915 ई. में इसे फिर से स्थापित किया गया था। पत्थर की मूर्ति एक होंठ के आकार की है और लगभग 18 फीट ऊंची है। मंदिर में दो मूर्तियां भी स्थापित हैं - एक भवानी माता की और दूसरी पार्वती माता की। मंदिर के बगल में भगवान शिव को समर्पित एक छोटा सा मंदिर है।
देवी और उनके भैरव भगवान विश्वेश को सुबह और शाम चावल या अन्न भोग के साथ दैनिक पूजा और आरती की जाती है। वेश करते समय महिलाओं को साफ साड़ी पहननी होती है, जबकि पुरुषों को कुर्ता के साथ धोती या पायजामा पहनना होता है। यहां हर साल माघ पूर्णिमा के दौरान अट्टहास शक्तिपीठ मंदिर में 10 दिवसीय मेला आयोजित किया जाता है। यह मंदिर सुबह 5:30 से दोपहर 1:00 बजे तक और दोपहर 3:30 बजे से रात 8:30 बजे तक खुला रहता है जिसमे भक्त पूजा अर्चना कर सकते है।
आपको बस, ट्रेन या हवाई यात्रा से पहले कोलकाता जिसके बाद आपको अहमदपुर के लिए ट्रेन यात्रा करनी होगी। इस शक्तिपीठ का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन अहमदपुर रेलवे स्टेशन है। निरोल बस स्टैंड निकटतम बस स्टेशन है जो मंदिर से लगभग 5 किमी दूर है। रेलवे स्टेशन से, मंदिर तक पहुंचने के लिए स्थानीय परिवहन लेना पड़ता है। निकटतम हवाई परिवहन नेताजी सुभाष चंद्र हवाई अड्डे से है जो लाभपुर से लगभग 196 किलोमीटर दूर है। यहां एक ही स्थान पर विभिन्न देवताओं को समर्पित कई मंदिर स्थित हैं। मंदिर के पास आवास व्यवस्था आसानी से उपलब्ध है।
बालाजी बालाजी,
मेरी बिगड़ी बना दो मेरे बालाजीं,
दीपोत्सव यानी दिवाली के ठीक 10वें दिन एक और पर्व मनाया जाता है, जो हमें सिखाता है कि कैसे हमेशा बुराई पर अच्छाई की विजय होती है।
आंवला नवमी व्रत आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रखा जाता है। आंवला नवमी के दिन ही भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक नामक दैत्य को मारा था और साथ ही आंवला नवमी पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करने से पहले तीन वनों की परिक्रमा भी की थी।
मार्गशीर्ष मास हिंदू पंचांग का नौवां माह है, जो कि आश्विन मास के बाद आता है। इस वर्ष मार्गशीर्ष मास की गणना 16 नवंबर से 15 दिसंबर 2024 तक है।