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जयंति शक्तिपीठ, मेघालय (Jayanti Shaktipeeth, Meghalaya)

जयंति शक्तिपीठ, मेघालय (Jayanti Shaktipeeth, Meghalaya)

मां दुर्गा के सपने के बाद जंयतिया राजा ने करवाया शक्तिपीठ का निर्माण, रामकृष्ण मिशन ने किया जीर्णोद्धार


प्राचीन हिमालय का हिस्सा रही पश्चिमी जयंतिया पहाड़ी पर जयंती शक्तिपीठ स्थित है। जो कि नर्तियांग जिले में स्थित है। इस मंदिर को माँ दुर्गा का स्थायी निवास मानते हैं। यहां माता का बायीं जंघा कटकर गिरी थी। इस मंदिर में माँ दुर्गा जयंतेश्वरी और भगवान शिव कामधिश्वर के नाम से पूजा जाता है। मंदिर की स्थापना लगभग 600 वर्ष पूर्व हुई थी। उस समय जयंतिया साम्राज्य के शासक राजा धन मानिक हुआ करते थे। उन्होंने नर्तियांग को जयंतिया शासनकाल की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था।


राजा धनमानिक देव के सपने में आई देवी दुर्गा


मंदिर के पीछे कहानी है कि एक रात राजा धन मानिक को सपना आया। जिसमें स्वयं माँ दुर्गा ने राजा को नर्तियांग क्षेत्र के महत्व के बारे में बताया और कहा कि वे इस क्षेत्र में एक मंदिर का निर्माण करें। माँ दुर्गा की आज्ञा पाकर राजा ने नर्तियांग में माँ दुर्गा के मंदिर का निर्माण कराया जो जयंतेश्वरी मंदिर के नाम से जाना गया।


महाराष्ट्र का देशमुख घराना है मंदिर का राजपुरोहित


मंदिर में दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान केले के पेड़ को सजाया जाता है। इसकी पूजा माँ दुर्गा के रूप में की जाती है। 4 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार के अंत में इस केले के पेड़ को मेघालय की मिंट्डू नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसके अलावा इस अवसर पर माँ दुर्गा को गन सैल्यूट (बंदूक की फायरिंग का सम्मान) भी दिया जाता है। नर्तियांग के इस मंदिर में राजपुरोहित की भूमिका महाराष्ट्र का क्षत्रिय देशमुख परिवार पीढ़ियों से निभाता आ रहा है। वर्तमान में राजपुरोहित की भूमिका का निर्वहन कर रहे ओनी देशमुख है परिवार की 30वीं पीढ़ी के पुजारी हैं।

मंदिर के गुंबद को सोने की परत से ढका गया है। मंदिर या शक्तिपीठ के चारों ओर तीन गुफाएँ हैं जिसमे त्रिदेवों की मूर्तियाँ- भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान ईश्वर —पहली गुफा में पाया जा सकता है। भगवान शिव की मूर्ति दूसरी गुफा और तीसरी गुफा में है। मंदिर में मूल रूप से एक फूस की छत थी, जो कि अधिकांश घासी घरों की छत की शैली है।

 रामकृष्ण मिशन ने इस मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद इसे टिन की छत और अधिक टिकाऊ निर्माण दिया गया। मंदिर की मुख्य देवी, देवी दुर्गा को एक मूर्ति द्वारा दर्शाया गया है। लेकिन मुख्य मंदिर के परिसर के पास एक शिव मंदिर भी है। चूंकि मंदिर म्युनडू नदी के ठीक ऊपर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, इसलिए नीचे बहती नदी को देखा जा सकता है।


मेघालय की राजधानी से मात्र 30 किमी दूर


शक्तिपीठ मेघालय की राजधानी शिलांग से 30 किमी दूर है। निकटतम हवाई अड्डा उमरोई की दूरी लगभग 67 किमी है। यहाँ से कोलकाता और गुवाहाटी के लिए हवाई सेवा उपलब्ध है। इसके अलावा मेघालय के मेंदीपाथर में रेलवे स्टेशन स्थित है जहाँ से गुवाहाटी के लिए ट्रेन उपलब्ध है। इन सभी स्थानों से सड़क मार्ग का उपयोग करके नर्तियांग पहुँचा जा सकता है।\


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लाल लाल चुनरी सितारो वाली (Laal Laal Chunari Sitaron Wali)

लाल लाल चुनरी सितारों वाली,
सितारो वाली,

लाली लाली लाल चुनरियाँ (Laali Laali Laal Chunariya)

लाली लाली लाल चुनरियाँ,
कैसे ना माँ को भाए ॥

लचकि लचकि आवत मोहन (Lachaki Lachaki Awat Mohan)

लचकि लचकि आवत मोहन,
आवे मन भावे

लड्डू गोपाल मेरा, छोटा सा है लला मेरा (Laddu Gopal Mera Chota Sa Hai Lalaa)

लड्डू गोपाल मेरा, लड्डू गोपाल ।
छोटा सा है लला मेरा, करतब करे कमाल,

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