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मां भुवनेश्वरी जयंती (Maa Bhuvaneshwari Jayanti)

जब दुर्गम राक्षस का वध करने मां ने धारण किया भुवनेश्वरी रूप, पूजा विधि के साथ जानिए शुभ मुहूर्त और महत्व


मां भुवनेश्वरी दस महाविद्याओं में चतुर्थ देवी है, जिनकी पूजा से विशेष सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। भुवनेश्वरी माता के बारे में जानने से पहले दस महाविद्याओं को समझते हैं। दस महाविद्याएं हिंदू धर्म में दस प्रमुख देवियों को संदर्भित करती हैं, जो शक्ति और ज्ञान की प्रतीक हैं। ये देवियां विभिन्न रूपों में पूजी जाती हैं और प्रत्येक की अपनी विशेषताएं और महत्व हैं। देवी भागवत में इन देवियों के बारे में उल्लेख मिलता है- 


काली, तारा महाविद्या, षोडशी भुवनेश्वरी । 
भैरवी, छिन्नमस्तिका च विद्या धूमावती तथा ॥ 
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका। 
एता दश-महाविद्याः सिद्ध-विद्याः प्रकीर्तिताः ॥


इस श्लोक में दसों महाविद्याओं- काली, तारा, त्रिपुरी, भुवनेश्वरी, भैरवी,  छिन्नमस्तिका, धूमावती ,बगला,मातंगी, कमला के बारे में जानकारी मिलती है। शक्तिवाद में दस महाविद्या देवियों में से चौथी मां भुवनेश्वरी की जयंती हर वर्ष भाद्रपद मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। महादेवी के उच्चतम पहलुओं में से एक हैं। देवी भागवत पुराण में उन्हें आदि पराशक्ति के रूप में पहचाना गया है।  मां भुवनेश्वरी ने, मनुष्यों को जीवन के पंच तत्वों का मूल समझाया, और यह भी बताया, कि ब्रह्मांड में मानव जाति का क्या महत्व है। भुवनेश्वरी शब्द, दो शब्दों के मेल से बना हुआ है, ‘भुवन’ और ईश्वरी। इसका अर्थ है समस्त संसार के ऐश्वर्य की धात्री। इस दिन विशेष कार्य में सिद्धि पाने के लिए मां भुवनेश्वरी के निमित्त व्रत रखा जाता है, और  तंत्र सीखने वाले साधक इस दौरान मां भुवनेश्वरी की विशेष साधना करते हैं। भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में मां शक्तियां, उनके स्वरूप, व्रत कथा, मां के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा और इस दिन की पूजा के शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में जानेंगे...


मां भुवनेश्वरी के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा 


लेख में आगे बढ़ने से पहले मां भुवनेश्वरी की उत्पत्ति से जुड़ी कथा को जानना बहुत जरूरी है। देवी भागवत में प्राप्त वर्णन के अनुसार, एक समय दुर्गम नामक एक दैत्य ने अपने अत्याचारों से समस्त देवी-देवताओं को त्रस्त कर दिया। दुर्गम दैत्य के अधर्म से व्याकुल होकर देवताओं एवं ब्राह्मणों ने हिमालय पर्वत की ओर प्रस्थान किया। वहां जाकर सर्वकारण स्वरूपा भगवती भुवनेश्वरी की आराधना की। समस्त देवी-देवताओं की आराधना से प्रसन्न होकर देवी भगवती भुवनेश्वरी स्वयं वहां प्रकट हुईं। देवी भुवनेश्वरी का वह स्वरूप मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। देवी ने अपने हाथों में बाण, कमल का पुष्प तथा शाक-मूल धारण किया हुआ था। मां भुवनेश्वरी ने देवी-देवताओं की विनती सुनी और अपने नेत्रों से अश्रु की सहस्र धाराएं प्रकट कीं।  जिससे समस्त नदियों एवं समुद्रों में अथाह जल भर गया तथा समस्त पेड़-पौधे, जड़ी-बूटी तथा औषधियों की सिंचाई हो गयी। माता भुवनेश्वरी के हाथों में शाकों और फल-मूलों के होने के कारण, वह देवी ‘शताक्षी’ तथा ‘शाकम्भरी’ के नामों से विख्यात हुईं। देवी भुवनेश्वरी ने ही दुर्गमासुर का संहार कर, उसके द्वारा अपहृत वेदों को, पुनः देवताओं को सौंपा था। इसी घटने के पश्चात, भगवती भुवनेश्वरी, ‘दुर्गा’ के नाम से भी पूजित हुईं।


मां भुवनेश्वरी का स्वरूप 


पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी दुर्गा का सौम्य अवतार माने जाने वाली भुवनेश्वरी ने अपने सिर पर चंद्रमा को सजा रखा है। मां भुवनेश्वरी का स्वरूप तेजवान है, जिनके प्रकाश से पूरी सृष्टि में उजाला फैलता है। त्रिनेत्र वाली देवी भुवनेश्वरी की चार भुजाएं हैं, जिनमें से एक हाथ वरदान देने की मुद्रा में हैं तो वहीं दूसरे हाथ में उन्होंने अंकुश धारण किया हुआ है तो वहीं बाकी दो हाथ पाश एवं अभय मुद्रा में हैं। 


मां भुवनेश्वरी जयंती 2024 कब मनाई जाएगी? 


वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 14 सितंबर को भारतीय समयानुसार शाम 08 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, द्वादशी तिथि का समापन 15 सितंबर को शाम 06 बजकर 12 मिनट पर होगा। भुवनेश्वरी जयंती पर निशाकाल में जगत की देवी मां दुर्गा की पूजा की जाती है। अत: 15 सितंबर को भुवनेश्वरी जयंती मनाई जाएगी।


भुवनेश्वरी जयंती 2024 शुभ योग 


ज्योतिषियों की मानें तो भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर दुर्लभ सुकर्मा योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का निर्माण दोपहर 03 बजकर 14 मिनट पर शुरू हो रहा है। इस योग में मां भुवनेश्वरी की पूजा करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति होगी। इसके साथ ही भुवनेश्वरी जयंती पर शिववास योग का निर्माण हो रहा है। शिववास योग में शिव पार्वती जी की पूजा करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होगी।


भुवनेश्वरी देवी की पूजा विधि 

सामग्री:


- भुवनेश्वरी देवी की मूर्ति या चित्र
- जल
- फूल
- अक्षत (चावल)
- चंदन
- कुमकुम
- धूप
- दीप
- नैवेद्य (भोग)
- फल


मां भुवनेश्वरी जयंती पूजा विधि:


1. स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
2. पूजा स्थल पर भुवनेश्वरी देवी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
3. देवी को जल, फूल, अक्षत, चंदन, और कुमकुम अर्पित करें।
4. धूप और दीप जलाएं।
5. नैवेद्य (भोग) और फल अर्पित करें।
6. भुवनेश्वरी देवी की आरती करें।
7. देवी की कथा सुनें और उनकी महिमा को समझें।
8. पूजा के अंत में प्रसाद वितरित करें।
9. इस दिन कन्या भोज का भी मुख्य प्रावधान है।
10. दस वर्ष से कम उम्र की कन्या को भुवनेश्वरी का एक रूप माना जाता है। इन कन्याओं के पैर धोकर पूजा की जाती है, फिर उन्हें भोजन कराया जाता है। इसके बाद उन्हें कपड़े और अन्य उपहार दिए जाते हैं।


मंत्र:

- "ॐ भुवनेश्वरायै नमः"
- "ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः"
-  "ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नम"


मां भुवनेश्वरी जयंती पूजा का समय:


- भुवनेश्वरी जयंती 
- शुक्रवार
- पूर्णिमा
- नवरात्रि


मां भुवनेश्वरी जयंती पूजा का महत्व


भुवनेश्वरी देवी की पूजा करने से व्यक्ति को सुख, समृद्धि, और ज्ञान प्राप्त होता है। यह पूजा विशेष रूप से महिलाओं के लिए लाभदायक है, जो अपने परिवार और समाज में सम्मान और स्थान प्राप्त करना चाहती हैं।


भुवनेश्वरी जयंती 2024 पर व्रत विधि, नियम और लाभ


भुवनेश्वरी माता का व्रत एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो माता भुवनेश्वरी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है, जो अपने परिवार और समाज में सुख, समृद्धि और सम्मान प्राप्त करना चाहती हैं।


मां भुवनेश्वरी जयंती व्रत की विधि:


1. व्रत के दिन सुबह स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
2. माता भुवनेश्वरी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें।
3. माता को जल, फूल, अक्षत, चंदन, और कुमकुम अर्पित करें।
4. धूप और दीप जलाएं।
5. नैवेद्य (भोग) और फल अर्पित करें।
6. माता भुवनेश्वरी की आरती करें।
7. व्रत के दौरान उपवास करें या फलाहार करें।
8. शाम को माता की पूजा करें और आरती करें।
9. व्रत के अंत में प्रसाद वितरित करें।


मां भुवनेश्वरी जयंती व्रत के नियम:


1. व्रत के दिन सुबह स्नान करना आवश्यक है।
2. व्रत के दौरान उपवास या फलाहार करना आवश्यक है।
3. व्रत के दौरान किसी भी प्रकार का भोजन नहीं करना चाहिए।
4. व्रत के दौरान माता भुवनेश्वरी की पूजा करना आवश्यक है।
5. व्रत के अंत में प्रसाद वितरित करना आवश्यक है।
6.  व्रत कथा भी सुनना चाहिए 
7. भुवनेश्वरी देवी की उत्पत्ति से जु़ड़ी कथा का ही इस दिन पाठ किया जाता है। 


मां भुवनेश्वरी जयंती व्रत के लाभ:


1. माता भुवनेश्वरी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
2. सुख, समृद्धि और सम्मान प्राप्त होता है।
3. परिवार में शांति और सौहार्द बना रहता है।
4. व्यक्ति को ज्ञान और बुद्धि प्राप्त होती है।
5. व्यक्ति को अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद मिलती है।


भारत में इन स्थानों पर हैं भुवनेश्वरी देवी के मंदिर


- पुदुक्कोथाई, तमिलनाडु में देवी भुवनेश्वरी।

- पुरी, उड़ीसा में जगन्नाथ मंदिर के अंदर माता भुवनेश्वरी। वहां देवी सुभद्रा को भुवनेश्वरी के रूप में पूजा जाता है।
- कटक में कटक चंडी मंदिर।
- गुजरात के गोंडल में भुवनेश्वरी माता।
- गुवाहाटी में कामाख्या मंदिर।
- दक्षिण भारत में वेल्लाकुलंगरा के पास चुरक्कोडु में भुवनेश्वरी अम्मा।
- कृष्ण की नगरी मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के सामने भुवनेश्वरी महाविद्या।
- महाराष्ट्र के सांगली जिले में श्री क्षेत्र औदुम्बर।

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नाग स्तोत्रम् (Nag Stotram)

ब्रह्म लोके च ये सर्पाःशेषनागाः पुरोगमाः।

सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् (Siddha Kunjika Stotram)

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥ Na kavacham narglastotram kilakam na rahasyakam .
na suktam napi dhyanam ch na nyaso na ch varchanam ॥2॥

वैशाख कृष्ण बरूथिनी नाम एकादशी (Veshakh Krishn Barothini Naam Ekadashi)

भगवान् कृष्ण ने कहा- हे पाण्डुनन्दन ! अब मैं तुम्हें बरूथिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य सुनाता हूँ सुनिये।

शिवशंकर जी की आरती

सत्य, सनातन, सुंदर, शिव! सबके स्वामी ।
अविकारी, अविनाशी, अज, अंतर्यामी ॥

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