वराह जयंती (Varaha Jayanti)

जब हिरण्याक्ष का वध करने ब्रह्मदेव की नाक से निकले भगवान वराह, जानिए क्यों मनाई जाती है वराह जयंती


जब दुनिया में अंधकार की शक्तियां बढ़ जाती हैं तो उन्हें खत्म करने और दुनिया को फिर से प्रकाशमय करने के लिए भगवान धरती पर आते हैं। धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु कई बार पृथ्वी पर आए, जहां उन्होंने दु्ष्टों का नाश कर पृथ्वी के ताप को कम किया। इन्हीं अवतारों में से एक अवतार वराह अवतार है और इसी से वराह जयंती की कहानी जुड़ी है। 


हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वराह जयंती भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस बार 6 सितम्बर 2024 को वराह जयंती मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी और भक्त उपवास एवं व्रत इत्यादि का पालन करते हुए भगवान विष्णु के वराह रूप की पूजा करेंगे। ऐसे में आपके मन में ये सवाल जरूर आ रहा होगा कि भगवान विष्णु के दशावतार में से वराह जयंती को मुख्य रूप से क्यों मनाया जाता है। इसी सवाल का जवाब आज हम आपको भक्तवत्सल के इस लेख में बताएंगे और जानेंगे कि क्या है इस अवतार का महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा…..


क्यों मनाई जाती है वराह जयंती? 


वराह जयंती हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह अवतार के के जन्म का पर्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वराह अवतार में भगवान विष्णु एक शुकर के रूप में अवतरित हुए थे। अपने इस अवतार में उन्होंने हिरण्याक्ष नामक दैत्य का वध करके संपूर्ण जगत की रक्षा की थी। भगवान विष्णु ने वराह के रूप में कल्याणकारी अवतार बुरी शक्तियों का अंत करने के लिए लिये लिया था, ऐसे में उनकी जयंती पर पूजा करने वाले मनुष्य के सभी भूल व पाप नष्ट होते हैं। इसके अलावा वराह जयंती की पूजा करने के बाद जरूरतमंदों को धन, वस्त्र व अन्य चीजों का दान करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है।


वराह जयंती का महत्व


हिंदू धर्म में वराह जयंती के पर्व का एक विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और उनके वराह स्वरुप की पूजा करने से इंसान के जीवन में खुशियों का संयोग बनता है। ऐसा भी माना जाता है कि जो लोग वराह जयंती का व्रत सच्चे मन से रखते हैं, उनका सोया हुआ भाग्य जाग जाता है और उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहतर होती है।


2024 में कब मनाई जाएगी वराह जयंती


वराह जयंती हर साल भाद्रपद मास की तृतीया तिथि को मनाई जाती है. साल 2024 में ये तिथि 05 सितम्बर 2024 को दोपहर 12:21 मिनट से प्रारंभ होगी जो 06 सितम्बर 2024 को दोपहर 03:01 बजे तक रहेगी. उदया तिथि में ये तिथि 06 सिंतबर के दिन रहेगी यानी कि वराह जयंति 06 सितंबर के दिन मनाई जाएगी.


वराह जयंती के दिन के शुभ मुहूर्त


ब्रह्म मुहूर्त - 04:09 AM से 04:55 AM तक

प्रातः सन्ध्या - 04:32 AM से 05:41 AM तक

अभिजित मुहूर्त - 11:31 AM से 12:21 PM तक

विजय मुहूर्त - 02:01 PM से 02:51 PM तक

गोधूलि मुहूर्त - 06:11 PM से 06:34 PM तक

सायाह्न सन्ध्या - 06:11 PM से 07:20 PM तक

अमृत काल - 05:20 AM, से 07:08 AM (07 सितम्बर)

निशिता मुहूर्त - 11:33 PM से 12:19 AM, ( 07 सितम्बर)

रवि योग - 09:25 AM से 05:41 AM, (07 सितम्बर)


वराह जयंती की पूजा विधि इस प्रकार है:


1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे कपड़े पहनें।

2. घर के मंदिर में भगवान वराह की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

3. भगवान वराह को गंगाजल से स्नान कराएं और फिर पंचामृत से स्नान कराएं।

4. भगवान वराह को नए वस्त्र और फूल अर्पित करें।

5. भगवान वराह को फल, मिठाई और अन्न का भोग लगाएं।

6. भगवान वराह की आरती और पूजा करें।

7. वराह जयंती पर हिरण्याक्ष राक्षस के वध की कथा पढ़ें या सुनें।

8. दिन भर व्रत रखें और शाम को पूजा के बाद व्रत का पारायण करें।

9. गरीबों और ब्राह्मणों को दान दें।

10. भगवान वराह की कृपा के लिए प्रार्थना करें।


वराह जयंती के दिन इन बातों का ध्यान रखें:


  • इस दिन काले रंग के कपड़े न पहनें।
  • इस दिन तामसिक भोजन न करें।
  • इस दिन दान-पुण्य करें।
  • इस दिन भगवान वराह की पूजा और आरती करें।


वराह जयंती के दिन तुलसी पूजा का भी खास महत्व 


वराह जयंती के दिन तुलसी पूजा का भी विशेष महत्व है। भगवान विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय है। इसलिए इस दिन तुलसी के पत्तों से भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। 


भगवान विष्णु के वराह अवतार से जुड़ी पौराणिक कथा


धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु ने पृथ्वी को बचाने के लिए वराह रूप में अवतार लिया था। पुरातन समय में एक बार हिरण्याक्ष ने ब्रह्मदेव को कठिन तप करने के बाद प्रसन्न कर लिया। उसके कठिन तप से ब्रह्मा जी बहुत खुश हुए और प्रकट हुए। हिरण्याक्ष ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि उसे युद्ध में कोई भी आदमी, भगवान या जानवर परास्त न कर सके, और इन तीनों में से कोई भी उसकी मृत्यु न कर सके। हिरण्याक्ष की बात सुनकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दे दिया और वहां से चले गए।


वरदान मिलते ही हिरण्याक्ष बहुत घमंडी हो गया और धरती पर आतंक का पर्याय बन गया। सभी उसके प्रकोप से डरने लगे। धरती पर उपस्थित मानव इतने परेशान हो गए कि वे भगवान से प्रार्थना करने लगे कि उन्हें कैसे भी हिरण्याक्ष से बचाएं। एक बार जब हिरण्याक्ष ने धरती को उठाकर समुद्र के नीचे पाताल लोक में छिपा दिया। इससे देवता भी परेशान हो गए।


जब ब्रह्मा जी सो रहे थे तो हिरण्याक्ष ने उनके पास से वेंदों को भी चुरा कर अपने पास रख लिया था। अत्यंत बलशाली और अपने घमंड से प्रेरित हरिण्याक्ष का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता गया। इसके बाद चिंतित देवीदेवताओं ने कहा कि हरिण्याक्ष ने जो ब्रह्मा जी वरदान मांगा है उसमें सभी जानवरों का नाम लिया है लेकिन उसने सूअर यानी वराह का नाम नहीं लिया है।


जिसके बाद भगवान विष्णु ब्रह्मदेव की नाक से वराह रूप में प्रकट हो गए। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। इसके बाद सभी देवी देवताओं के आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। उन्होंने अपनी थूथनी की सहायता से पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए। जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया। इसके पश्चात भगवान वराह अंतर्धान हो गए। 


कहा जाता है कि वराह जयंती के दिन वराह अवतार की इस कथा को पढ़ने और सुनने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है और इंसान को सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है। बोलिए वराह भगवान की जय।

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मान अकबर का घटाया है (Maan Akbar Ka Ghataya Hain)

मां ज्वाला तेरी देवीय शक्ति, नमन करूं श्रीनायक।
मान भक्तों का बढ़ाया है रे, मान भक्तों का बढ़ाया है।

महाकाल की नगरी मेरे मन को भा गई (Mahakal Ki Nagri Mere Maan Ko Bha Gayi)

मेरे भोले की सवारी आज आयी,
मेरे शंकर की सवारी आज आयी,

हरियाली तीज (Hariyali Teej)

हरियाली तीज, जिसे श्रावण तीज के नाम से भी जाना जाता है, एक पारंपरिक हिंदू त्योहार है जो भारत और नेपाल में मनाया जाता है। हरियाली तीज का अर्थ है "हरियाली की तीज" या "हरित तीज"। यह नाम इसलिए पड़ा है क्योंकि यह त्योहार मानसून के मौसम में मनाया जाता है, जब प्रकृति में हरियाली का प्रवेश होता है। यह पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर जुलाई या अगस्त में पड़ती है। इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा का विधान है।

श्री पार्वती माता की आरती (Shri Parvati Mata Ki Aarti)

ॐ जय पार्वती माता, मैया जय पार्वती माता।
ब्रह्म सनातन देवी, शुभ फल की दाता॥

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