सनातन परंपरा की जड़ें बहुत हद तक प्रकृति से जुड़ी हुई है। हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद माह में कुछ व्रत और त्योहार ऐसे भी आते हैं, जो हरियाली को समर्पित हैं। इनसे जुड़ी कई पौराणिक कथाएं भी हैं। ऐसे ही एक दिन जब धरती की गोद में हरियाली की चादर बिछ जाती है, और बारिश की बूंदें मानो सावन के गीत गाती हैं, तब हिंदू महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं, इस त्योहार को कजरी तीज के रूप में जाना जाता है। इसे कजली तीज, बूढ़ी तीज व सातूड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता हैं।
कजरी तीज न केवल सुहागिन महिलाओं के लिए है, बल्कि यह एक ऐसा दिन है जब प्रकृति की हरियाली और सौंदर्य को निहारा जाता है और माता पार्वती की आराधना की जाती है। जिस तरह से हरियाली तीज, हरतालिका तीज का पर्व महिलाओं को लिए बहुत मायने रखता है। उसी तरह कजरी तीज भी सुहागन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण त्योहार है। कजरी तीज के दिन कुंवारी लड़कियां भी मनचाहे वर को पाने के लिए व्रत रखकर महादेव और मां पार्वती की पूजा करती हैं। भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में जानेंगे कजरी तीज के इस खास दिन के बारे में, इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में, इस व्रत को रखने का महत्व, साथ ही पूजा विधि और शुभ मुहूर्त के बारे में भी...
कजरी तीज का त्योहार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, जो अपने पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं। इस साल यानी 2024 में कजरी तीज पूजा के लिए तृतीया तिथि बुधवार 21 अगस्त 2024 को शाम 05:06 बजे शुरू होगी, जो 22 अगस्त 2024, गुरुवार को दोपहर 01:46 बजे तक चलेगी। वहीं, सूर्योदय तिथि के आधार पर 22 अगस्त को भी कजरी तीज का व्रत मान्य रहेगा। आप सुबह उठकर कजरी तीज पूजा करके इस त्योहार को मना सकते हैं।
कजरी तीज पर गेहूं, चना और चावल को सत्तू में मिलाकर पकवान बनाये जाते है। व्रत शाम को सूरज ढलने के बाद छोड़ते है। इस दिन विशेष तौर पर गाय की पूजा की जाती है। आटे की रोटियां बनाकर उस पर गुड़ चना रखकर गाय को खिलाया जाता है। इसके बाद व्रत तोड़ा जाता है। इस व्रत में माता गौरी को सुहाग की 16 सामग्री अर्पित की जाती हैं, वहीं भगवान शिव को बेलपत्र, गाय का दूध, गंगा जल, धतूरा आदि अर्पित किया जाता है। इस व्रत में शिव-गौरी की कथा का श्रवण विशेष फलदायी है।
कजरी तीज संतान प्राप्ति के लिए भी मनाई जाती है। यह त्योहार न केवल पति-पत्नी के प्रेम और सौहार्द का प्रतीक है, बल्कि संतान प्राप्ति के लिए भी पूजा की जाती है। कजरी तीज के दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। वे संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं और अपने परिवार की खुशहाली के लिए आशीर्वाद लेती हैं।
कजरी तीज को मनाने से जुड़ी भी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। माना जाता हैं कि सबसे पहले कजरी तीज का व्रत माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए किया था। पुराणों के अनुसार देवी पार्वती चाहती थीं कि भोलेनाथ उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार करें। इसलिए मां पार्वती ने 108 साल तक कठिन तप किया। इस तप से प्रसन्न होकर अंतत: भगवान शिव ने माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। कहा कि जो भी महिलाएं ये व्रत रखेंगी उनके पति की आयु लंबी होगी। साथ ही जो भी कुंवारी कन्याएं इस व्रत को रखेंगी उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होगी। तब ही से ये त्योहार मनाया जाने लगा।
कजरी तीज के दिन न केवल सुहागिन महिलाएं बल्कि कुंवारी लड़कियां भी मनचाहा वर पाने के लिए कजरी तीज का व्रत रखती है। कजरी तीज का व्रत करने से एक तरफ जहां पति को सुख सौभाग्य और लंबी उम्र का वरदान मिलता है तो वहीं दूसरी तरफ विधि-विधान पूर्वक भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा आराधना करने से मनोवांछित फल की भी प्राप्ति होती है। माना जाता है कि अगर किसी कन्या के विवाह में कोई बाधा आ रही है तो इस व्रत के प्रभाव से दूर हो जाती है। इस दिन विवाहित महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती के साथ चंद्रमा की पूजा करती हैं।
कजरी तीज कथा के अनुसार, एक गांव में ब्राह्मण परिवार रहता था। ब्राह्मण की पत्नी ने भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि पर कजरी तीज का व्रत किया। व्रत के दौरान उसने अपने पति से सत्तू लाने को कहा। सत्तू के लिए ब्राह्मण के पास धन नहीं था। तो ऐसे में उसने चोरी करने का फैसला लिया। इसके बाद वह रात के समय दुकान में सत्तू लेने के लिए घुस गया। उसी दौरान दुकान के मालिक की नींद खुल गई और उसने ब्राह्मण को पकड़ लिया और उसकी पत्नी सत्तू का इंतजार कर रही थी। वहीं, चांद निकल आया था। जब दुकान के मालिक ने उसकी तलाशी ली, तो उसके पास से सत्तू मिला। ऐसे में ब्राह्मण ने सारी बात बता दी। उसकी बात को सुनकर मालिक को उस पर बेहद तरस आया और कहा कि आज से वो उसकी पत्नी को अपनी बहन के रूप में मानेगा। अंत में मालिक ने ब्राह्मण को मेहंदी, सत्तू, गहने और धन देकर विदा किया। इसके पश्चात सभी ने कजली माता की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की।
गोवर्धन पूजा के दिन भक्त गोवर्धन महाराज की नाभि पर दीपक जलाते हैं। इस प्रथा के पीछे भगवान कृष्ण से जुड़ी एक रोचक कथा है।
भाई दूज का पर्व पांच दिवसीय दीपोत्सव का अंतिम दिन है। जिसे कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई का तिलक करती हैं, यमराज की पूजा करती हैं और उनकी दीर्घायु की कामना करती हैं।
माना जाता है कि भगवान चित्रगुप्त का जन्म ब्रह्मा जी के चित्त से हुआ है। इन्हें देवताओं के मुख्य लेखपाल और यम के सहायक के रूप में पूजा जाता है।
माना जाता है कि भगवान चित्रगुप्त का जन्म ब्रह्मा जी के चित्त से हुआ है। इन्हें देवताओं के मुख्य लेखपाल और यम के सहायक के रूप में पूजा जाता है।