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घर में पूजा कैसे करें -
घर में दैनिक पूजा सभी सनातन धर्म के अनुयायी (मानने वाले) करते हैं, लेकिन ये पूजा किस प्रकार से की जाये, कब की जाये, कौन सी दिशा में बैठ के की जाये इत्यादि प्रश्न हमेशा हमारे सामने रहते है। भक्तवत्सल पोर्टल आपको ये जानकारी काफी गुरुजनों से चर्चा करने के बाद उपलब्ध करा रहा है।
सर्वप्रथम पूजा कब करें - वैसे तो पूजा कभी भी की जा सकती हैं लेकिन इष्ट उपासना के लिए ब्रह्म मुहूर्त सबसे अच्छा माना जाता है, लेकिन आधुनिक जीवन शैली के कारण अगर ब्रह्म मुहूर्त में उठना संभव न हो तो सूर्योदय के तुरंत बाद पूजा की जानी चाहिए। विशेष प्रकार की पूजाओं के लिए पंडित से मुहूर्त दिखवाकर पूजा करें, विशेष पूजा से तात्पर्य जैसे की दिवाली पूजा, होली पूजा, महाशिवरात्रि पूजा, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजा और ऐसे ही कुछ अन्य महत्वपूर्ण अवसर जिन्हे हिन्दू धर्म में काफी महत्त्व दिया गया है।
पूजा कौन सी दिशा में बैठ के करें - सर्वप्रथम हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं की वास्तु के अनुसार घर में पूजा का स्थान उत्तर पूर्व में ही माना गया है, फिर भी अगर अगर पूजा घर में पूजा नहीं कर पा रहे हैं या किसी कारणवश घर के बाहर पूजा कर रहे हैं तो कोशिश करें की आपका मुँह पूर्व या उत्तर दिशा की और हो। हमारे शास्त्रों में एवं ज्ञानिओं द्वारा ये भी बताया गया है की कई विशिष्ट पूजाएँ देवता की दिशा के अनुसार भी की जाती हैं लेकिन दैनिक पूजा को उत्तर या पूर्व दिशा में करना ही उत्तम माना गया है। यहाँ पे ये बता देना भी जरुरी है की हमारे वेद, पुराणों और शास्त्रों में ये भी बताया गया है की ईश्वर तो कण कण में उपस्थित है तो किसी विकट या मुश्किल परिस्तिथि में दिशा या मुहूर्त देखे बिना भी ईश्वर की आराधना की जा सकती है ।
हमारे धर्म शास्त्रों में पूजा के कुछ प्रमुख प्रकार बताये गए हैं -
१) पंचोपचार पूजा - इसमें पांच उपचारों से देवता की पूजा की जाती है एवं पांच उपचार हैं - चन्दन, पुष्प, धुप, दीप एवं नेवैद्य।
२) दशोपचार पूजा - इसमें दस उपचारों से ईश्वर की पूजा का विधान है एवं दस उपचार माने गए हैं - पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, पुष्प, धूप, दीप एवं नेवैद्य।
३) षोडशोपचार पूजा - षोडशोपचार पूजा सोलह उपचारों को देवता को समर्पित करके की जाती है एवं सोलह उपचार इस प्रकार हैं - पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, उपवस्त्र (जनेऊ/यज्ञोपवीत), गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आभूषण, ताम्बूल (पान), स्तवन, तर्पण तथा नमस्कार।
४) मानस पूजा - मन से ईश्वर के स्वरुप की कल्पना करते हुए उसकी पूजा करना, महत्वपूर्ण बात ये है की इस प्रकार की पूजा आप कभी भी और कहीं भी कर सकते हैं जैसा की ऊपर बताया गया है।
सामग्री - ऊपर बताये गए पूजा के प्रकारों एवं अन्य सभी विशिष्ट पूजाओं को ध्यान में रखते हुए भक्त वत्सल पोर्टल एक वृहद सूची दे रहा है जो हर प्रकार की पूजा में उपयोग लायी जा सकती है -
रोली, चन्दन, अक्षत, दूध, दही, घी (गौमाता का हो तो उत्तम), शहद, शकर, गंगाजल, इत्र, अष्टगंध, जनेऊ, मौली (लाल धागा), पान, गोल सुपारी (कसेली), लौंग, इलायची, दीपक, पंचमेवा, दक्षिणा, ऋतुफल, नारियल (पानी वाला ), गुलाल, दूर्वा, बेलपत्र, पुष्प
पूर्ण श्रद्धा एवं भाव से की गयी किसी भी प्रकार की पूजा अवश्य ही फलीभूत होती है इसमें किसी भी प्रकार का संशय न करें, अगर ऊपर दिए गए साधन न भी उपलब्ध हों तो उपलब्ध सामग्री से पूर्ण श्रद्धा से पूजा करें और ईश्वर का आशीर्वाद लें|
कौन से मन्त्रों का प्रयोग करें ---
वैसें तो पूजा पूरी विधि से की जाये तो सर्वोत्तम है लेकिन व्यस्त दिनचर्या के कारण अगर न संभव हो तो किसी भी प्रकार से ऊपर दी हुई पूजाओं में से कोई भी पूजा कर सकते हैं। अगर आपके पास पर्याप्त समय है या घर का कोई भी सदस्य पूर्ण विधि के साथ अगर पूजा कर सकता है तो उत्तम है।
आसन कोन सा उपयोग में लाएं
पूजा में कुशा, कम्बल के आसन पवित्र माने गए हैं, कई प्रकार की विशेष पूजा एवं साधनाओं के लिए मृग/बाघ छाल के आसन भी प्रयोग में लाये जाते हैं जो अब सरलता से उपलब्ध नहीं हैं या कानूनन अमान्य हैं।
पवित्रीकरण - आसन बिछा के बैठें और अपने बाएं/उलटे हाथ में जल लेकर पवित्रीकरण का मंत्र का मंत्र पढ़ते हुए अपने दाएं/सीधे हाथ से जल अपने ऊपर छिड़कें, पवित्रीकरण का मंत्र -
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा ।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः ॥
आचमन - निम्न मंत्र बोलते हुए अपने उलटे/बाएं हाथ में जल लेकर आचमन करें -
ऊँ माधवाय नमः
ऊँ केशवाय नमः
ऊँ नारायणाय नमः
इसके बाद "ऊँ हृषिकेषाय नमः" बोलते हुए हाथ धो लें।
आसन पूजा - सामग्री में से रोली/चन्दन, अक्षत एवं पुष्प द्वारा अपने आसन की पूजा करें (आसन के नीचे त्रिकोण का चिन्ह बनायें रोली या चंदन से) निम्न मंत्र बोलते हुए -
ऊँ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरू चासनम्।।
शिखा बंधन - शास्त्रों में शिखा या चोटी को ही ऊर्जा का स्तोत्र माना गया है इसलिए शिखा बंधन का विधान है, निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए शिखा बंधन का उपक्रम करें -
ॐ चिद्रूपिणी महामाये दिव्यतेजः समन्विते।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरूष्व मे ॥
अगर किसी उपासक की शिखा नहीं है तो शिखा वाली जगह को ही स्पर्श करके मंत्र पढ़ें।
प्राणायाम - अपनी प्राणवायु (साँस) को धीरे धीरे गहरी खींचकर अंदर रोकना और फिर धीरे धीरे छोड़ना प्राणायाम की श्रेणी में आता है। प्राणायाम करते समय ये भाव रखें की हमारी सभी बुरी आदतें, बुरे विचार तथा बुरे कर्म हम श्वांस के द्वारा बाहर छोड़ रहे हैं एवं प्रभु के आशीर्वाद स्वरुप सद्बुद्धि, सद्गति और सद्कर्मों को ग्रहण कर रहे हैं। निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए प्राणायाम करें -
दाहिने हाथ के अंगूठे से दाहिनी नाक के छेद को बंद करें और बाएं छिद्र से साँस अंदर खींचे, फिर मध्यमा एवं अनामिका से बाएं छिद्र को बंद करके दाएं छिद्र से साँस छोड़ दें।
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ।। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।। ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं ब्रह्मभूर्भुवः स्वः ॐ ।।
न्यास - न्यास का अर्थ है स्थापित करना या स्थापना। बाहर और भीतर के अंगों में अपने इष्ट और मन्त्रों के स्थापन ही न्यास कहलाता है, हमारे इस मानव शरीर में अपवित्रता के वास होता है इसीलिए न्यास विधि द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों में अपने इष्ट और मन्त्रों के स्थापन द्वारा इसे पवित्र किया जाता है। बायें हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को उनमें भिगोकर बताए गए स्थान को मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें -
ॐ वाङ्मे आस्येऽस्तु (मुख को स्पर्श करें)
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु (नासिका के दोनों छिद्रों को स्पर्श करें)
ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु (दोनों कानों को स्पर्श करें)
ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु (दोनों बाहों को स्पर्श करें)
ॐ ऊर्वोर्मेओजोऽस्तु (दोनों जंघाओं को स्पर्श करें)
ॐ अरिष्टानिमेऽअङ्गानि तनूस्तान्वा में सह सन्तु (समस्त शरीर को स्पर्श करें)
दिग्बन्धन या दिशा बंधन - पूजा या साधना में आने वाली विभिन्न प्रकार की बाधाओं को रोकने के लिए दिशा बंधन का विधान है, ऐसा माना गया है कि देवपूजा एक पवित्र कार्य होता है जो साधक अपनी मनोकामना पूर्ति अथवा इष्ट की कृपा प्राप्ति हेतु करता है इसलिए कई प्रकार की नकारात्मक शक्तियां कई प्रकार से आपकी पूजा में व्यवधान या परेशानियां उत्पन्न करते हैं और इन्ही सबसे बचने के लिए दिग्बन्धन किया जाता है। बाएं हाथ में पीली सरसों लेके दाएं हाथ से सभी दिशाओं में छिड़कते हुए निम्न मंत्र पढ़ें (सरसों के अभाव में जल या अक्षत लेकर भी ये विधि की जा सकती है) -
ॐ अपसर्पन्तु ते भूता: ये भूता: भूमि संस्थिता: ये भूता: विघ्नकर्तारस्ते नशयन्तु शिवाज्ञया,
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा: सर्वतो दिशम्, सर्वेषामविरोधेन पूजाकर्म समारम्भे ॥
मंत्र पढ़ने के बाद अपनी दायीं ऐड़ी से तीन बार जमीन पर प्रहार करें।
संकल्प -
दाहिने हाथ में अक्षत, जल, चन्दन/रोली, एक सिक्का, एवं पुष्प लेकर निम्न मंत्र पढ़ें -
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः, श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूलोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखंडे आर्यवर्तान्तरगतेदेशे अमुक नगरे अमुक ग्रामे अमुक नाम संवत्सरे अमुक ऋतौ मासोत्तममासे अमुक मासे अमुक पक्षे अमुक तिथौ अमुक वासरे अमुक नक्षत्रे अमुक योगे अमुक करणे अमुक राशिस्थिते चन्द्रे अमुक राशिस्थिते सूर्य शुभ राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायाँ अमुक नाम्नोअहं अमुक गोत्रोउत्पन्नोअहम् सपरिवारस्य सकुटुंबस्य श्री अमुक देवता प्रीत्यर्थे पूजनं च अहं करिष्ये।
मंत्र पढ़ने के बाद हाथ की सामग्री को देवता के सामने या नीचे छोड़ दें।
गणपति आवाहन एवं पूजन -
सृष्टि के प्रथम पूज्य देवता श्रीगौरीपुत्र गणेश का ध्यान करते हुए निम्न मंत्र पड़ते हुए आवाहन करें -
(किसी भी देवी देवता के आवाहन के समय हाथ में पंचोपचार सामग्री अथवा जल, पुष्प, अक्षत और रोली अवश्य लें।)
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्।।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, लम्बोदराय सकलायजगद्विताय।
नागाननाय श्रुति यज्ञविभूषिताय, गौरी सुतायगणनाथ नमो नमस्ते॥
ॐ गणानां त्वा गणपति गूम हवामहे
प्रियाणां त्वा प्रियपति गूम हवामहे
निधीनां त्वा निधिपति गूम हवामहे
वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।।
एह्येहि हेरम्ब महेशपुत्र ! समस्तविघ्नौघविनाशदक्ष !।
माङ्गल्यपूजाप्रथमप्रधान गृहाण पूजां भगवन् ! नमस्ते।।
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च।
हाथ की सामग्री को गणेश जी को अर्पित कर दें।
प्रभु शिवशंकर का आवाहन एवं स्थापन - भगवान गणेश के बाद देवाधिदेव महादेव का स्मरण, आवाहन एवं स्थापन करें।
हाथ में सामग्री लेके निम्न मंत्र का उच्चारण करें -
ॐ मृत्युंजय परेशान जगदाभयनाशन ।
तव ध्यानेन देवेश मृत्युप्राप्नोति जीवती ।।
वन्दे ईशान देवाय नमस्तस्मै पिनाकिने ।
आदिमध्यांत रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे ।।
नमस्तस्मै भगवते कैलासाचल वासिने ।
नमोब्रह्मेन्द्र रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे ।।
त्र्यंबकाय नमस्तुभ्यं पंचस्याय नमोनमः ।
नमो दोर्दण्डचापाय मम मृत्युम् विनाशय ।।
नमोर्धेन्दु स्वरूपाय नमो दिग्वसनाय च ।
नमो भक्तार्ति हन्त्रे च मम मृत्युं विनाशय ।।
देवं मृत्युविनाशनं भयहरं साम्राज्य मुक्ति प्रदम् ।
नाना भूतगणान्वितं दिवि पदैः देवैः सदा सेवितम् ।।
अज्ञानान्धकनाशनं शुभकरं विध्यासु सौख्य प्रदम् ।
सर्व सर्वपति महेश्वर हरं मृत्युंजय भावये ।।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् श्रीसदाशिव आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च।
हाथ की सामग्री को भगवान शंकर को अर्पित कर दें।
देवी दुर्गा का ध्यान, आवाहन एवं स्थापन -
हाथ में सामग्री लेके निम्न मंत्र का उच्चारण करें -
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्मताम्।।
या देवी सर्व भूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
श्री दुर्गादेव्यै ध्यानं समर्पयामि, आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च।
हाथ की सामग्री को जगतमाता दुर्गा को अर्पित कर दें।
भगवान विष्णु का ध्यान, आवाहन एवं स्थापन -
हाथ में सामग्री लेके निम्न मंत्र का उच्चारण करें -
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।
श्रीभगवान विष्णुः ध्यानं समर्पयामि, आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च।
हाथ की सामग्री को परमेश्वर भगवान विष्णु को अर्पित कर दें।
अपने गुरु गोविन्द का ध्यान, आवाहन, स्थापन करें -
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः
गुरू साक्षात परंब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः॥
अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं,
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नमः ॥
ॐ परम तत्वाय नारायण गुरुभ्यों नम: ध्यानं समर्पयामि, आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च।
हाथ की सामग्री को परम पूज्य गुरुदेव को अर्पित कर दें।
जिनके अपने कोई गुरु नहीं हैं वे भगवान श्रीकृष्ण को अपना गुरु मान कर उन्हें अर्पित करें क्यूंकि कहा गया है "कृष्णं वन्दे जगद्गुरुं"
नवग्रह का ध्यान करें -
ब्रह्मा मुरारिः त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु॥
हाथ की सामग्री को नवग्रह मंडल को अर्पित कर दें, अगर नवग्रह मंडल नहीं बनाया है तो सामने अर्पित कर दें नवग्रह देवताओं का ध्यान करते हुए।
कलश स्थापना एवं पूजन -
एक मिट्टी, ताम्बे या पीतल का कलश लेकर उसमें जल भर लें, कलश में पुष्प, अक्षत, रोली, सिक्का तथा गोल सुपारी डाले। अशोक या आम के पांच पत्ते कलश डालें, कलश के मुख पर मिट्टी या किसी और धातु की अक्षत से भरी हुई प्लेट रखें और फिर उसपे लाल कपड़े में लपेटा हुआ नारियल स्थापित करे। सभी तीर्थो के जल का आवाहन कुम्भ कलश में करें।
ऊँ कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रूद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः।।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू ।।
अस्मिन् कलशे सर्वाणि तीर्थान्यावाहयामि नमस्करोमि।
उपरोक्त मंत्र पढ़ते हुए कलश कुम्भ देवता को नमस्कार करें।
दीपक - देवता के दाएं तरफ दीपक स्थापित करें एवं दीप देवता की गन्धाक्षत, पुष्प से पूजा करें
ॐ अग्निर्ज्योति: ज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्यो ज्योति: ज्योति: सूर्य: स्वाहा, अग्निर्वर्च ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्योवर्च ज्योतिर्वर्चः स्वाहा, ज्योतिः सूर्य: सूर्यःज्योतिः स्वाहा।
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा, शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोस्तुते।
सभी देवताओं का ध्यान, आवाहन एवं पूजन
पुनः हाथ में पुष्प अक्षत आदि सामग्री लेकर मंत्र पढ़ें -
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः।
उमामहेश्वराभ्यां नमः।
वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः।
मातापितृचरणकमलेभ्यो नमः।
इष्टदेवताभ्यो नमः।
कुलदेवताभ्यो नमः।
ग्रामदेवताभ्यो नमः।
वास्तुदेवताभ्यो नमः।
स्थानदेवताभ्यो नमः।
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः।
सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
सभी इष्ट देवताओं का ध्यान करते हुए सामग्री अर्पित कर दें।
इसके बाद षोडषोपचार विधि से देवता का पूजन करें -
१) आसन - आसान के लिए पुष्प, अक्षत अर्पित करें
अनेक रत्न संयुक्तं, नानामणि गणान्वितम् ।
भावित हेममयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
आसनार्थे पुष्पं समर्पयामि
२) पाद्य - जल अर्पित करें
ऊँ तीर्थोदकं निर्मलऽच सर्वसौगन्ध्यसंयुतम्।
पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगृह्यताम्।।
पादप्रक्षालनार्थाय जलं समर्पयामि
३) अर्घ्य - अष्टगंधयुक्त जल अर्पित करें
ऊँ गन्ध-पुष्पाक्षतैर्युक्तं अध्र्यंसम्मपादितं मया।गृह्णात्वेतत्प्रसादेन अनुगृह्णातुनिर्भरम्।।
४) आचमन - शुद्ध गंगाजल अर्पित करें
ऊँ कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु शीतलं, त्वमाचमनायेदं पीयूषसदृषं पिब।।
५) स्नान - के लिए चन्दन मिश्रित जल अर्पित करें
ऊँ मन्दाकिन्याः समानीतैः कर्पूरागरूवासितैः
पयोभिर्निर्मलैरेभिःदिव्यःकायो हि षोध्यताम।।
स्नान्ते जलं समर्पयामि
६) वस्त्र - वस्त्र के रूप में देवता को मौली (लाल धागा) भी अर्पित किया जा सकता है अथवा वस्त्र जो उपलब्ध हों
ऊँ सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे। मया सम्पादिते तुभ्यं गृह्येतां वाससी षुभे।।
७) आभूषण - आभूषण न उपलब्ध हों तो अक्षत अर्पित करें
ऊँ अलंकारान् महादिव्यान् नानारत्नैर्विनिर्मितान्, धारयैतान् स्वकीयेऽस्मिन् शरीरे दिव्यतेजसि।।
८) गन्ध - चन्दन, अष्टगंध, इत्र आदि अर्पित करें
ऊँ श्रीकरं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्, वपुषे सुफलं ह्येतत् शीतलं प्रतिगृह्यताम्।।
९) पुष्प अथवा माला - पुष्प और फूल माला अर्पित करें।
ॐ माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्त्तितः, मयाऽऽहृतानि पुष्पाणि पादयोरर्पितानी ते।
१०) धूप - भगवान को धूप दिखाएँ
ऊँ वनस्पतिरसोद्भूतः सुगन्धिः घ्राणतर्पणः, सर्वैर्देवैः ष्लाघितोऽयं सुधूपः प्रतिगृह्यताम्।
११) दीप - ईश्वर को दीप दिखाने का प्रयोजन करें
ऊँ साज्यः सुवर्तिसंयुक्तो वह्निना द्योतितो मया, गृह्यतां दीपकोह्येष त्रैलोक्य-तिमिरापहः।
१२) नैवेद्य - मिठाई का भोग लगाएं
ऊँ षर्कराखण्डखाद्यानि दधि-क्षीर घृतानि च, रसनाकर्षणान्येतत् नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।
(13) आचमन - अगर संभव हो गंगाजल अर्पित करें
ऊँ गंगाजलं समानीतं सुवर्णकलषस्थितम्, सुस्वादु पावनं ह्येतदाचम मुख-शुद्धये।
(14) ताम्बूल - पान के पत्ते के ऊपर गोल सुपारी (कसेली), लौंग, दक्षिणा रखकर अर्पित करें
ऊँ लवंगैलादि-संयुक्तं ताम्बूलं दक्षिणां तथा, पत्र-पुष्पस्वरूपां हि गृहाणानुगृहाण माम्।
(15) आरती - आरती करें
ऊँ चन्द्रादित्यौ च धरणी विद्युदग्निस्तथैव च, त्वमेव सर्व-ज्योतींषि आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम्।
(16) परिक्रमा - परिक्रमा करें
ऊँ यानि कानि च पापानि जन्मांतर-कृतानि च। तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणाय च पदे पदे।
क्षमा प्रार्थना - पूजा में हुई त्रुटियों के लिए प्रभु से क्षमा याचना करें
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं,
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरा,
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं तथैव च,
यद्पूजितम मयादेव, परिपूर्णं तदस्तु में।।
ऊँ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख-भाग्भवेत् ।
यद्यपि ऊपर दी गयी पूजा विधि संपूर्ण है लेकिन विशिष्ट अवसरों और अलग अलग साधनाओं के लिए पूजा विधि अलग हो सकती है और कई अन्य प्रकार के मंत्र प्रयोग में लाये जा सकते है, लेकिन ऊपर दी गयी विधि से आप दैनिक पूजा से लेके कोई अन्य विशेष पूजा निर्विघ्न एवं निश्चिंत होकर संपन्न कर सकते हैं।।
जय सनातन धर्म की
........................................................................................................'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।