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भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला ऋषि पंचमी पर्व हमारे जीवन में पवित्रता और ज्ञान का संगम है। आमतौर पर ऋषि पंचमी हरतालिका तीज के दो दिन बाद और गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाई जाती है। ऋषि पंचमी को भाई पंचमी और गुरु पंचमी भी कहा जाता है। यह एक ऐसा दिन है जब हम अपने जीवन को सुधारने, अपने मन को शुद्ध करने और अपने आत्मा को जागृत करने के लिए प्रेरित होते हैं। दरअसल इस दिन हम उन सात ऋषियों को याद करते हैं जिन्होंने मानवता को ज्ञान और पवित्रता का मार्ग दिखाया है। हम उनकी शिक्षाओं को याद करने के साथ-साथ उनकी पूजा करते हैं और अपने जीवन में उनके सिद्धांतों को अपनाने का प्रयास करते हैं। ऋषि पंचमी का पर्व हमें याद दिलाता है कि ज्ञान और पवित्रता के बिना जीवन अधूरा है। यह हमें अपने जीवन को सुधारने और अपनी आत्मा को जागृत करने के लिए प्रेरित करता है।
भक्तवत्सल के इस लेख में हम ऋषि पंचमी के महत्व, पौराणिक कथा, पूजा विधि और इसके पीछे की धार्मिक और आध्यात्मिक अवधारणाओं को समझेंगे....
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की शुरूआत 7 सितंबर को शाम 5 बजकर 37 मिनट पर होगी और पंचमी 8 सितंबर को शाम 7 बजकर 58 मिनट पर रहेगी। ऐसे में उदयातिथि की मान्यता के अनुसार ऋषि पंचमी का पर्व 8 सितंबर को मनाया जाएगा।
8 सितंबर को ऋषि पंचमी की पूजा का शुभ मुहूर्त दिन में 11 बजकर 3 मिनट से दोपहर 1 बजकर 34 मिनट तक है। इस दिन पूजा के लिए 2 घंटे 30 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा। ऋषि पंचमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:31 बजे से 05:17 बजे तक है। उस दिन शुभ मुहूर्त या अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:53 बजे से दोपहर 12:43 तक है। इस साल की ऋषि पंचमी के दिन 2 शुभ योग भी बन रहे हैं। सबसे पहले इंद्र योग बन रहा है, जो प्रात:काल से लेकर देर रात 12 बजकर 05 मिनट तक है। वहीं रवि योग दोपहर में 3 बजकर 31 मिनट से अगले दिन 9 सितंबर को सुबह 6 बजकर 3 मिनट तक है। रवि योग में सभी दोषों को दूर करने की क्षमता है क्योंकि इसमें सूर्य का प्रभाव अधिक माना जाता है। ऋषि पंचमी पर स्वाति और विशाखा नक्षत्र हैं। स्वाति नक्षत्र सुबह से लेकर दोपहर 3 बजकर 31 मिनट तक है।
कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः.
ऋषि पंचमी का दिन मुख्य रूप से सप्तऋषियों को समर्पित है। धार्मिक कथाओं के अनुसार वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज ये सात ऋषि हैं। साथ ही मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और सप्तऋषियों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। यदि गंगा में स्नान करना संभव नहीं है तो आप घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। इस दिन सप्त ऋषियों की पूजा करने से घर में सुख और समृद्धि आती है। परिवार में शांति रहती है। ऐसा माना जाता है कि मासिक धर्म के दौरान रसोई या खाना बनाने का काम करने से रजस्वला दोष लग सकता है। लेकिन यह व्रत रखने से महिलाओं को इस दोष से मुक्ति मिलती है साथ ही व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पा लेता है। इस दिन माहेश्वरी समाज की बहनें अपने भाइयों को रक्षासूत्र या राखी बांधती हैं।
1. स्नान: पूजा करने से पहले स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।
2. पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को साफ-सुथरा करें और वहां एक चौकी या आसन रखें।
3. सात ऋषियों की मूर्ति: चौकी या आसन पर सात ऋषियों की मूर्ति या चित्र रखें।
4. दीपक जलाना: दीपक जलाकर सात ऋषियों को प्रकाश दें।
5. फूल और फल चढ़ाना: सात ऋषियों को फूल और फल चढ़ाएं।
6. मंत्र जाप: सात ऋषियों के मंत्रों का जाप करें।
7. पूजा आरती: सात ऋषियों की पूजा आरती करें।
8. प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद वितरित करें।
1. कश्यप ऋषि: "ॐ कश्यपाय नमः"
2. अत्रि ऋषि: "ॐ अत्रिये नमः"
3. भारद्वाज ऋषि: "ॐ भारद्वाजाय नमः"
4. विश्वामित्र ऋषि: "ॐ विश्वामित्राय नमः"
5. गौतम ऋषि: "ॐ गौतमाय नमः"
6. जमदग्नि ऋषि: "ॐ जमदग्नये नमः"
7. वशिष्ठ ऋषि: "ॐ वशिष्ठाय नमः"
इन मंत्रों का जाप करने से सात ऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
ऋषि पंचमी के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत ग्रंथ की रचना शुरू की थी। यह ग्रंथ हिंदू धर्म का एक महानतम ग्रंथ माना जाता है। जिसमें धर्म, कर्म, युद्ध, प्रेम, त्याग आदि विषयों का विस्तृत वर्णन मिलता है। ऋषि पंचमी के दिन महाभारत रचना का प्रारंभ यह दर्शाता है कि ज्ञान और सत्य का प्रसार कितना महत्वपूर्ण है।
ऋषिपंचमी से जुड़ी कथा आप भक्तवत्सल के कथा वाले सेक्शन में जाकर पढ़ सकते हैं। साथ ही यदि आप पहली बार ऋषि पंचमी का व्रत रख रहे हैं, तो भक्तवत्सल का ऋषिपंचमी से जुड़ा व्रत का आर्टिकल भी जरूर पढ़ें।
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