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भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी का प्रेम संसार में प्रसिद्द है। दुनिया भर के मंदिरों में जहां भी श्री कृष्ण विराजमान हैं, वहां राधा रानी भी उनके साथ विराजती है। श्री कृष्ण और राधा एक साथ मंदिरों, पूजा घरों और लोगों के मन में प्रेम कहानियों के माध्यम से विद्यमान है। जहां समय के प्रत्येक क्षण में राधा कृष्ण निरंतर साथ रहते हैं। वहीं उनकी जन्मतिथियों में भी उनका ये साथ स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
दरअसल श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ है और श्री राधा का उसी माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को। यानी इन दोनों का जन्म एक ही मास में एक ही तिथि को हुआ था। मान्यता के अनुसार, श्री राधा और कृष्ण का मिलन उनके जन्म से पहले ही लिखा जा चुका था और इसके लेखक स्वयं भगवान श्री कृष्ण थे। ब्रज में जिस तरह कृष्ण के जन्म को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। ठीक उसी तरह राधा रानी का जन्मोत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। भक्तवत्सल के इस लेख में हम जानेंगे कि क्या है श्री राधा जी के जन्म की पौराणिक मान्यताएं और कैसै मनाई जाती है राधा अष्टमी?
हिंदू पंचांग के अनुसार, जन्माष्टमी के 15 दिन बाद भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन श्रीकृष्ण की प्रिय राधा रानी का जन्मोत्सव आता है। इसे राधाष्टमी के नाम से पूरे ब्रज मंडल में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।राधावल्लभ संप्रदाय, गौड़ीय संप्रदाय समेत सभी संप्रदायों में राधारानी के जन्मोत्सव पर विशेष आयोजन किए जाते है। इस बार राधा अष्टमी का पर्व 11 सितंबर को मनाया जाएगा। यह दिन दोनों विवाहित और अविवाहित स्त्रियों के लिए ख़ास होता है. जिसमे वह राधा रानी की शुभ मुहूर्त में पूजा और ख़ास व्रत का पालन करती है।
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 10 सितंबर को रात 11 बजकर 11 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 11 सितंबर को रात 11 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में 11 सितंबर को राधा अष्टमी मनाई जाएगी। राधा अष्टमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 03 मिनट से लेकर दोपहर 1 बजकर 32 मिनट के बीच में कभी पूजा कर सकते हैं।
योग - ज्योतिष के मुताबिक, इस बार राधा अष्टमी पर प्रीति योग बन रहा है. जिसका समापन रात 11:55 बजे होगा। इसके बाद आयुष्मान योग बनेगा। रवि योग रात 9:22 बजे बनेगा और सुबह 6:05 बजे समाप्त होगा। राधा अष्टमी पर भद्रावास योग का निर्माण भी हो रहा है जो सुबह 11:35 बजे तक रहेगा। इस योग में राधा रानी और भगवान कृष्ण की पूजा करने से मनवांछित फल मिलता है।
- सुबह उठें स्नान ध्यान कर व्रत का संकल्प लें।
- पूजन स्थल की साफ-सफाई कर गंगाजल से शुद्ध करें और पांच रंग का मंडप बनाकर ध्वजा, पुष्पमाला, वस्त्र, पताका, तोरण आदि से उसे सजाएं।
- मंडप के भीतर षोडश दल के आकार का कमलयंत्र बनाएं और उस कमल के मध्य में दिव्य आसन पर श्री राधा कृष्ण की युगलमूर्ति पश्चिमाभिमुख स्थापित करें।
- सपरिवार पूजा करें, राधा रानी और कृष्णजी को धूप, दीप, फल-फूल, अगरबत्ती, मिठाई अर्पित करें, उनकी स्तुति और आरती गाएं।
- इसके बाद अकेले बैठकर इन मन्त्रों का जाप करें -
ॐ वृषभानु: जायै विद्महे, कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा: प्रचोदयात्।
ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै विद्महे गान्धर्विकायै विधीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्।
- इसके बाद व्रत कथा का पाठ करें।
-एक समय फलाहार कर, मंदिर में दीपदान करें।
पान का बीड़ा - राधाष्टमी के मौके पर राधा रानी को पान के बीड़े जरूर चढ़ाए जाते हैं। कहते हैं कि पान के बीड़े भगवान श्रीकृष्ण को बहुत पसंद होने के कारण यह राधा जी का भी प्रिय भोग है।
मालपुआ - राधा अष्टमी के दिन राधा रानी को मालपुए का भोग अवश्य लगाना चाहिए, क्योंकि उनको मालपुए अति प्रिय हैं। राधारानी के बनाए मालपुए भगवान श्रीकृष्ण को भी बहुत पसंद थे।
रबड़ी - राधा जी को रबड़ी का भोग बहुत पसंद है। मान्यता है कि इस भोग को प्यार और श्रद्धा के साथ चढ़ाने से राधा जी सहित भगवान श्रीकृष्ण भी शीघ्र प्रसन्न होते है।
दही अरबी की सब्जी- यह ब्रज का पारंपरिक नमकीन व्यंजन है, जिसका भोग राधाष्टमी के दिन राधा जी को लगाया जाता है।
पंचामृत - पंचामृत भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय भोग होने कारण राधा जी का भी प्रिय है, जो दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल को मिलाकर बनाया जाता है।
मोहन थाल - मोहनथाल मिठाई एक स्वादिष्ट का नाम भगवान कृष्ण के नाम पर रखा गया है । यह ब्रज, राजस्थान और गुजरात क्षेत्रों में आम है जहाँ पुष्टिमार्ग परंपरा का प्रभाव अधिक है।मोहनथाल बेसन, घी, मेवा और चीनी से बनाया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तरह ही राधाष्टमी भी ब्रज धाम के मुख्य पर्व में से एक है। राधाष्टमी को भी मथुरा, वृंदावन और बरसाने के लोग एक साथ मिलकर मनाते है। राधाष्टमी पर नगर में दिव्य और भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। राधाष्टमी पर्व पर बांके बिहारी मंदिर में सदियों पुरानी रासलीला का भी आयोजन होता है। इस लीला में लड्डू गोपाल अपनी मां यशोदा से सगाई कराने की मांग करते हैं और मां यशोदा पर दबाव बनाते हैं कि वे उनका विवाह कराएं।
इस दिन भोर में ही श्री कृष्ण का महाभिषेक होगा और सुबह दधिकांधा में भक्तों को उपहार लुटाए जाते है। स्वामी हरिदास की साधना स्थली निधिवन राज मंदिर में स्वामीजी के श्रीविग्रह का महाभिषेक होगा और बधाई गाई जाती है। इसी के साथ हरिदासीय संप्रदाय के मुख्य स्थल टटिया स्थान पर भी भोर में चार बजे चंदनयात्रा के बाद स्वामी हरिदासजी के करुआ के दर्शन भक्तों को कराए जाते है।
राधा अष्टमी के दिन राधा रानी जी के साथ श्री कृष्ण की आराधना करने से सुखी और खुशहाल दांपत्य जीवन का आशीर्वाद मिलता है। वहीं जिन दंपतियों के बीच आपसी मतभेद अधिक है वे इस दिन राधा रानी के साथ भगवान कृष्ण की पूजा करें जिससे उनके बीच का सारा कलह दूर हो जाएगा। धार्मिक मान्यताओं में राधा जी को लक्ष्मी जी का अवतार भी माना गया है। इसीलिए इस दिन लक्ष्मी पूजन भी किया जाता है। जिससे घर में कभी पैसे की कमी और किसी भी प्रकार की आर्थिक तंगी नहीं होगी।
राधा श्रीकृष्ण के साथ गोलोक में निवास करती थीं। एक बार देवी राधा गोलोक में नहीं थीं, उस समय श्रीकृष्ण अपनी एक सखी विराजा के साथ गोलोक में विहार कर रहे थे। राधाजी यह सुनकर क्रोधित हो गईं और तुरंत श्रीकृष्ण के पास जा पहुंची और उन्हें भला-बुरा कहने लगीं। यह देखकर कान्हा के मित्र श्रीदामा को बुरा लगा और उन्होंने राधा को पृथ्वी पर जन्म लेने का शाप दे दिया। राधा को इस तरह क्रोधित देखकर विराजा वहां से नदी रूप में चली गईं।
इस शाप के बाद राधा ने श्रीदामा को राक्षस कुल में जन्म लेने का शाप दे दिया। देवी राधा के शाप के कारण ही श्रीदामा ने शंखचूड़ राक्षस के रूप में जन्म लिया। वही राक्षस, जो भगवान विष्णु का अनन्य भक्त बना और देवी राधा ने वृषभानुजी की पुत्री के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया। लेकिन राधा वृषभानु जी की पत्नी देवी कीर्ति के गर्भ से नहीं जन्मीं।
जब सुदामा और राधा ने एक-दूसरे को शाप दिया तब श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि आपको पृथ्वी पर देवी कीर्ति और वृषभानु जी की पुत्री के रूप में रहना है। वहां आपका विवाह रायाण नामक एक वैश्य से होगा। रायाण मेरा ही अंशावतार होगा और पृथ्वी पर भी आप मेरी प्रिया बनकर रहेंगी। उस रूप में हमें विछोह का दर्द सहना होगा। अब आप पृथ्वी पर जन्म लेने की तैयारी करें। तब देवी कीर्ति के गर्भ में योगमाया की प्रेरणा से वायु का प्रवेश हुआ और उन्होंने वायु को ही जन्म दिया, जब वह प्रसव पीड़ा से गुजर रहीं थी। उसी समय वहां देवी राधा कन्या के रूप में प्रकट हो गईं। यह भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी का दिन था जिसमे राधा रानी का धरती पर जन्म हुआ था। तभी से हर साल इस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
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