अक्सर गंभीर बीमारी में तमाम इलाज के बावजूद राहत नहीं मिलती। मेडिकल रिपोर्ट्स सामान्य आती हैं, लेकिन रोगी की हालत जस की तस बनी रहती है। ऐसी स्थिति में जब आधुनिक चिकित्सा भी जवाब दे दे, तब आध्यात्मिक उपायों की ओर रुख करना चाहिए। तंत्र शास्त्र में बताए गए कुछ विशेष मंत्रों और यज्ञ विधियों से ऐसे रोगों से मुक्ति संभव है।
तंत्र शास्त्र के अनुसार, कई बार रोगों का मूल कारण व्यक्ति के वर्तमान या पूर्व जन्म के पाप होते हैं। ऐसे में जब दवाएं असर नहीं करतीं, तब आध्यात्मिक साधना से ही राहत मिलती है। इसीलिए आयुर्वेद भी रोगमुक्ति के लिए देवताओं की शरण लेने की बात करता है।
इस रोग निवारण पूजा के लिए रात्रि 11 बजे से 2 बजे के बीच या सुबह 4 से 7 बजे के बीच का समय श्रेष्ठ माना गया है। पूजा स्थल पर भगवान अमृतेश्वर मृत्युंजय शिव का आवाहन करें। आटे से बने दीपक में गाय का शुद्ध घी डालकर जलाएं और कंबल के आसन पर बैठ जाएं।
1. अमृतेश्वर मृत्युंजय मंत्र:
2. गायत्री मंत्र:
जप करते समय रोगी की मानसिक रूप से स्वस्थ होने की कामना करें। इसके बाद उसी मंत्र से यज्ञ करें, जिसमें गाय के घी से 108+108 बार आहुति दें।
यज्ञ की पूर्णाहुति एक सूखे नारियल के गोले से दें।
पूरे श्रद्धा और विधिविधान से यह प्रक्रिया करने पर रोगी को शीघ्र लाभ होता है। रिपोर्ट्स के अनुसार, कई मामलों में तो अगले ही दिन सुधार नजर आता है। जब सब उपाय असफल हो जाएं, तब ईश्वर की शक्ति में विश्वास कर यह आध्यात्मिक प्रयोग अवश्य आज़माना चाहिए।
हिंदू धर्म में, सूर्यदेव के राशि परिवर्तन करने की तिथि पर संक्रांति मनाई जाती है। सूर्य देव 14 जनवरी को राशि परिवर्तन करेंगे। इस शुभ अवसर पर मकर संक्रांति पूरे देश में धूम-धाम से मनाई जाएगी।
ज्योतिष शास्त्र में मंगल और गुरू दोनों महत्वपूर्ण ग्रह माने गए हैं। अब मकर संक्रांति के दिन दोनों ही अर्द्ध केंद्र योग बनाने वाले हैं। ये ग्रह जिन पर भी मेहरबान हो जाते हैं, उनकी किस्मत को रातों रात बदल सकते हैं।
मकर संक्रांति, हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन गंगा में स्नान का काफी महत्व है। इस दिन महाकुंभ में स्नान किया जा सकता है।
सनातन हिंदू धर्म में सूर्य देवता से जुड़े कई प्रमुख त्योहार मनाने की परंपरा है। इन्हीं में से एक है मकर संक्रांति। शास्त्रों में मकर संक्रांति पर स्नान-ध्यान और दान करने से विशेष फल प्राप्त होता है।