धनतेरस का त्योहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व दीपावली का प्रथम दिन माना जाता है, जो धन, आरोग्य और समृद्धि का प्रतीक है। ‘धनतेरस’ शब्द दो शब्दों—‘धन’ और ‘तेरस’—से मिलकर बना है। ‘धन’ का अर्थ है—संपत्ति और समृद्धि, जबकि ‘तेरस’ का अर्थ पंचांग की तेरहवीं तिथि से है। इस दिन भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और कुबेर देवता की पूजा करने से धन, स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
साल 2025 में धनतेरस का पर्व शनिवार, 18 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। यह पर्व दिवाली से दो दिन पहले आता है और इस दिन नए बर्तन, सोना-चांदी, झाड़ू, या कोई भी मूल्यवान वस्तु खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है। पुराणों के अनुसार, इसी दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन को धन्वंतरि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
धनतेरस की पूजा संध्या काल, यानी प्रदोष काल में की जाती है। पूजा के लिए घर के उत्तर-पूर्व दिशा में एक स्वच्छ स्थान पर चौकी बिछाएं। उस पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर भगवान धन्वंतरि और कुबेर देवता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। फिर शुद्ध घी के दो दीपक जलाएं—एक कुबेर देव के लिए और दूसरा धन्वंतरि भगवान के लिए।
अब कुबेर देव को सफेद मिठाई और धन्वंतरि भगवान को पीली मिठाई का भोग लगाएं। तत्पश्चात कुबेर मंत्र ‘ॐ ह्रीं कुबेराय नमः’ का जप करें और धन्वंतरि स्तोत्र या गायत्री मंत्र का पाठ करें। पूजा के बाद परिवार के सभी सदस्य प्रसाद ग्रहण करें और दीपावली के मुख्य दिवस की पूजा की तैयारी भी इसी स्थान पर प्रारंभ की जाती है।
धनतेरस की रात यमराज के नाम से दीप जलाने की परंपरा है, जिसे ‘यम दीपदान’ कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन घर के मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके दीपक जलाने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। रात में कुल 13 दीपक घर के अंदर और बाहर जलाने चाहिए। यह दीपक न केवल यमराज की आराधना का प्रतीक है, बल्कि घर से नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करता है।
धनतेरस का संबंध केवल धन-संपत्ति से ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और आरोग्य से भी है। आयुर्वेद के प्रवर्तक भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से व्यक्ति को दीर्घायु और रोगमुक्त जीवन का आशीर्वाद मिलता है। वहीं, कुबेर देव की उपासना से घर में आर्थिक समृद्धि आती है।